फिल्मिया घमंड: अब तथ्यपरक “जूतांजलि” देना बहुत जरूरी है

Shatrughan Sinha
शत्रुघ्न सिन्हा
आज शत्रुघ्न सिन्हा को ABP न्यूज पर यह कहते हुए सुना कि “भाजपा जब 2 सीटों वाली पार्टी थी मैं तब से पार्टी में हूं। पार्टी को यहां तक पहुंचाने में मेरा भी योगदान है। मैं भाजपा का पहला स्टार प्रचारक था। अटल जी के चुनाव में उनके क्षेत्र लखनऊ में प्रचार के लिए किसी और को नहीं, केवल मुझे बुलाया जाता था।”

ऐसा कहकर शत्रुघ्न सिन्हा ने क्योंकि अपने बड़बोलेपन के सींग अटल जी की तरफ घुमा दिए हैं, इसलिये उसको आईना दिखाना बहुत जरूरी है। ऐसे दावे करने वाले शत्रुघ्न सिन्हा को सम्भवतः यह लगता है कि राजनीति की दुनिया भी फिल्मी दुनिया की तरह कपोल कल्पनाओं पर आधारित मनगढ़ंत सपनों की ही दुनिया है, जिसमें सच्चाई से कोसों दूर, चाहे जैसी गप्प लफ़्फ़ाज़ी को सच मान लिया जाएगा।

लेकिन सच किसी शत्रुघ्न सिन्हा की मर्जी का मोहताज नहीं होता है
अतः पहले बात स्टार प्रचारक के तमगे की। शत्रुघ्न सिन्हा को पता नहीं क्यों यह याद नहीं कि भाजपा के जन्म से पहले, जनसंघ के दिनों में भी अटल जी को सुनने के लिए उनकी जनसभाओं में लाखों की भीड़ उमड़ा करती थी। पिछले 50 सालों के दौरान अटल जी के कट्टर राजनीतिक विरोधी रहे दिग्गज़ भी समय-समय पर यह स्वीकारते रहे हैं कि भारतीय राजनीति में अपनी वाणी से लोगों को मंत्रमुग्ध कर देनेवाले अटल जी सरीखा दूसरा राजनेता भारतीय राजनीति में आजतक नहीं हुआ है।

अब रही बात अटल जी को जिताने के लिए केवल शत्रुघ्न सिन्हा को विशेष रूप से लखनऊ बुलाये जाने की, तो इस सन्दर्भ में मेरा इतना ही कहना है कि शत्रुघ्न सिन्हा! तुम कुछ तो शर्म करो, चुल्लू भर पानी मे डूब मरो।


मुलायम सिंह और सुब्रतराय ने हराने के लिए क्या नहीं किया
मित्रों संयोग से लखनऊ में अटल जी द्वारा 1991 से 2004 तक लड़े गए सभी 5 लोकसभा चुनावों को मैंने बहुत करीब से देखा है। इनमें से 4 चुनाव तो एकतरफ़ा थे। पहले दिन से ही अटल जी की जीत तय मान ली जाती थी। लेकिन 1996 की चुनावी लड़ाई बहुत जटिल हो गयी थी। क्योंकि मुलायम सिंह ने फ़िल्म स्टार राज बब्बर को अटल जी के सामने उतार दिया था और सहारा समूह के सुब्रत रॉय ने राज बब्बर को जिताने के लिए अपनी सारी तिजोरियों के साथ ही साथ अपने सारे घोड़े खोल दिये थे। पूरे प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश से लखनऊ बुला लिए गए सहारा समूह के लगभग 50 हज़ार कर्मचारियों ने राज बब्बर के चुनाव प्रचार में अपनी ताकत झोंक रखी थी। लगभग ढाई लाख की संख्या वाले सेक्युलर शांतिदूत दोगुने उत्साह से अटल जी की हार की पटकथा लिखने को बेचैन हो रहे थे। अमिताभ, धर्मेन्द्र, विनोद खन्ना सरीखे 4-5 बड़े सितारों को छोड़कर बाकी बचे बम्बईय्या फिल्मी सितारों का मेला राज बब्बर के समर्थन में पूरे चुनाव प्रचार के दौरान लगा रहा था।

अटल जी की हार पक्की करने के लिए शराब और पैसा प्रचण्ड दरियादिली के साथ खुले हाथों से बांटा जा रहा था। सच तो यह है कि उस अत्यन्त आक्रामक प्रचार अभियान के सामने भाजपाई प्रचार अभियान बहुत फीका और बेअसर नज़र आने लगा था। इसके जवाब में अटल जी ने फैसला किया था कि वह अपने चुनाव क्षेत्र में एक के बजाय दो दिन प्रचार करेंगे। अटल जी क्योंकि अपने चुनाव क्षेत्र में केवल एक ही दिन प्रचार करते थे, अतः दो दिन प्रचार के उनके फैसले से राजधानी लखनऊ में सनसनी फैल गयी थी। आम जनता में सन्देह और आक्रोश में डूबी यह चर्चाएं होने लगी थीं कि क्या अटल जी चुनाव हार जाएंगे?

इसका नतीजा यह निकला था कि मतदान वाले दिन लखनऊ के मतदान केंद्रों में अटल जी के समर्थन में सैलाब उमड़ पड़ा था। मैं स्वयं साक्षी हूं कि कई ऐसे बुजुर्ग स्त्री-पुरुष उस दिन मतदान केन्द्र पहुंच गए थे, जिन्होंने अपनी आयु व बीमारी के चलते कई चुनावों से वोट डालना बन्द कर दिया था। इसका परिणाम यह निकला था कि लखनऊ में अटल जी के 1996 के जिस चुनाव को सबसे जटिल माना जा रहा था। उनकी हार की शंकाएं जताई जा रही थीं। उस चुनाव में अटल जी को 52.25% वोट मिले थे। अर्थात लखनऊ की जनता ने यह सुनिश्चित कर दिया था कि अटल जी की हार असम्भव है।

जब आडवाणी के जीते हुए सीट से शत्रुघ्न सिन्हा ने हार का मुँह देखा था
ऐसे लोकप्रिय जननायक रहे अटल जी की चुनावी विजयों का जिम्मेदार होने का दावा करने वाले शत्रुघ्न सिन्हा की खुद की राजनीतिक औकात क्या और कितनी थी यह इसी से समझा जा सकता है कि 1991 में लालकृष्ण आडवाणी ने 2 स्थानों से चुनाव जीतने के बाद जब नई दिल्ली लोकसभा सीट से इस्तीफा दिया था तो उसके बाद हुए उपचुनाव में कांग्रेसी उम्मीदवार राजेश खन्ना के सामने शत्रुघ्न सिन्हा को उम्मीदवार बनाया गया था और शत्रुघ्न सिन्हा को हार का मुंह देखना पड़ा था। यह वह दौर था जब पूरे देश में प्रचण्ड रामलहर चल रही थी। दिल्ली भाजपा का गढ़ थी और शत्रुघ्न सिन्हा को जीती हुई सीट पर उम्मीदवार बनाया गया था। इसके अतिरिक्त एक और बात शत्रुघ्न सिन्हा के पक्ष में थी कि दिल्ली के सभी बड़े कांग्रेसी दिग्गजों ने अपने सारे आपसी मतभेद भुलाकर राजेश खन्ना की हार पक्की करने के लिए अपनी सारी ताक़त झोंक दी थी। उस समय के अखबारों में ऐसी रिपोर्टों की बाढ़ सी आयी हुई थी और स्वयं राजेश खन्ना ने अपने अनेकों इंटरव्यू में खुलकर यह बात कही थी।  

लेकिन इतनी अनुकूल परिस्थितियों में स्वयं चुनाव हार जाने वाला व्यक्ति जब यह दावा करे कि चुनाव जीतने के लिए अटल जी को मेरी जरूरत पड़ती थी तो फिर ऐसे व्यक्ति को तथ्यों भरी जूतांजलि देना तो जरूरी है।


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