बोफोर्स घोटाले की पूरी कहानी! भाग-07

बोफोर्स घोटाले की पूरी कहानी !

(पिछले भाग -06 में पढ़े है कि राजीव गांधी द्वारा स्वीडेन सरकार से बोफोर्स घोटाले की जांच से मना किया गया, जिससे स्वीडेन में भारतीय राजदूत बीएम ओझा आश्चर्य में पड़ जाते है। भारत मे राजीव और वीपी सिंह के बीच भाषण द्वारा आरोप लगाया जाता है। कांग्रेस से वीसी शुक्ला, आरिफ मुहम्मद, अरुण नेहरू और वीपी सिंह का निष्कासन किया जाता है। अब आगे …)

कांग्रेस से वीपी सिंह और अरुण नेहरू को निकाल दिया गया, लेकिन कुछ दिन पहले ही ये लोग सरकार चला रहे थे। अब न तो सरकार में रहे, न ही पार्टी में। और इस घटना के कुछ दिन पहले एक मोड़ आया था और उसके केंद्र में थे राजीव गांधी के बेहद करीबी दोस्त अरुण सिंह

रक्षा राज्यमंत्री अरुण सिंह ने राजीव गांधी को एक नोट भेजा
अरुण सिंह केंद्र सरकार में रक्षा राज्यमंत्री थे, दून स्कूल में राजीव गांधी के साथ पढ़े थे। अरुण सिंह ने राजीव को एक नोट भेजा। नोट में लिखा था कि “स्वीडेन की नेशनल ऑडिट ब्यूरो (National Audit Bureao) ने ये बात साफ कर दी है कि बिचौलियों को पैसा दिए गए है। मैंने राज्यसभा में जो बयान दिया था, उसे मैं सही मानता हूं कि बिचौलियों को पैसा देना हमारी नीतियों के खुलाफ है। यह बात स्वीडेन सरकार और बोफोर्स कम्पनी को बताया और समझाया गया था!”

अरुण सिंह यही नही रुके, उन्होंने कहा कि, “हमे स्वीडेन सरकार को और बोफोर्स कम्पनी को यह कह देना चाहिए कि इस संबंध में हमे पूरी जानकारी नही दी, तो हम यह कॉन्ट्रैक्ट रद्द कर देंगे। क्योकि बतौर सरकार हमे चुनौती दी जा रही है।”

अरुण सिंह के नोट पर सेनाध्यक्ष की राय मांगी गई
अरुण सिंह द्वारा राजीव गांधी को भेजे गए नोट पर तत्कालीन सेनाध्यक्ष जनरल केo सुंदरजी से राय मांगी गई। के० सुंदरजी ने साफ कहा कि “हमे बोफोर्स को करार तोड़ने की धनमकी देनी चाहिए, अगर फिर भी बिचौलियों के बारे में जानकारी न दे तो, हमे करार तोड़ लेना देनी चाहिए। इसमें तोप की खरीददारी में ज्यादा से ज्यादा 2 वर्ष की देरी होगी। हम इतना रिस्क ले सकते है।”

फ़ाइल प्रधानमंत्री राजीव गांधी के पास पहुची
तत्कालीन “रक्षा राज्यमंत्री” द्वारा लिखा हुआ नोट (फ़ाइल) जब राजीव गांधी के पास पहुची तो राजीव गांधी फ़ाइल पर कमेंट में लिखते है -
“सभी पहलुओं को जांचे बगैर रक्षा राज्यमंत्री अरुण सिंह ने अपने व्यक्तिगत प्रतिष्ठा को राष्ट्र सुरक्षा से ऊपर रखा, यह दुखद है। क्या उन्होंने सुरक्षा स्थिति की जांच खुद की ?, सौदे के कैंसल करने से जो आर्थिक नुकसान होगा, क्या उसके बारे में सोच है ?, खरीददारी को एक तरफा ढंग से तोड़ने पर भारत सरकार की प्रतिष्ठा का क्या होगा ?, क्या उसके बारे में सोचा है ?, मेरी जितनी जानकारी है, उसके मुताबिक स्वीडिश ऑडिट रिपोर्ट भारत सरकार के विचारों का खंडन नही करती है। बेवजह बौखलाने और प्रतिक्रिया देना, किसी समस्या का हल नही है।”

राजीव गांधी द्वारा जांच न कराने पर अरुण सिंह का इस्तिफा
राजीव गांधी के सबसे करीबी मित्रो में से एक और रक्षा राज्यमंत्री अरुण सिंह जांच की मांग कर रहे थे। लेकिन राजीव गांधी इसके लिए तैयार नही हुए। अरुण सिंह ने 18 जुलाई 1987 को मंत्री पद से इस्थिपा दे दिया।

पूर्व रक्षा राज्यमंत्री अरुण सिंह बताते है कि “राजीव को ऐसा लगा होगा कि अपने गलत वक्त पर उनका साथ छोड़ दिये। हाँ बिल्कुल! लेकिन छोड़ने के पीछे कारण अलग थे। मुझे इस बात का कोई अंदाजा नही है कि पैसा किसने लिए? लेकिन ये जरूर जानता था कि रिश्वत ली गई है। उस समय यह साफ हो गया था, जैसा कि मैं पहले कहता था। और इसी वजह से मुझे अपना दोस्त गवाना पड़ा। मैं ये कहता था कि जिन्होंने ने ये रिश्वत ली, उन्हें कौन पकड़ेगा? मेरे बॉस राजीव गांधी, सरकार का प्रतिनिधित्व करते थे।”

जेपीसी का गठन हुआ, लेकिन सिर्फ लीपापोती के लिए
रक्षा राज्यमंत्री व राजीव गांधी के बचपन के मित्र अरुण सिंह द्वारा बोफोर्स घोटाले की जांच की मांग करने व राजीव गांधी द्वारा जांच की मांग न मानने पर  इस्थिफे के बाद संसद के अंदर-बाहर विरोध और तेज हुआ। आखिरकार जांच के लिए 30 सदस्यों वाली “जोइन्ट पार्लियामेंट्री कमेटी” (जे.सी.पी.) बनाई गई। जोइन्ट कमेटी ने सरकार को क्लीन चिट दी।

लोकसभा के संसद इस. जयपाल रेड्डी ने सांसद में कहा कि “अगर बोफोर्स घोटाला भारत के इतिहास में सबसे बड़ा स्कैम है तो जॉइंट पार्लियामेंट्री की रिपोर्ट, पार्लियामेंट की इतिहास में सबसे बड़ा लीपा-पोती है।”

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साभार: “ABP NEWS” के कार्यक्रम “प्रधानमन्त्री
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