![]() |
बोफोर्स घोटाले की पूरी कहानी ! |
(पिछले भाग -05 में पढ़े है कि तत्कालीन स्वीडेन के राजदूत बीएम ओझा अपने किताब में लिखते है कि राजीव गांधी बोफोर्स तोप खरीदने के फैसला स्वीडेन में लेते है, और बोफोर्स को 410 तोप का आर्डर मिल जाता है। लेकिन स्वीडेन रेडियो द्वारा घोटाले की खबर आते ही भारत सरकार द्वारा स्वीडेन सरकार से खंडन करने के लिए कहते है। लेकिन स्वीडेन सरकार जांच करना चाहती है। राजीव गांधी स्वीडेन के प्रधानमंत्री से जांच कराने से मना करते है। अब आगे ..!)
उधर स्वीडेन में बोफर्स कम्पनी के ऊपर रिश्वत देने का आरोप लगाया गया। तो इधर राजीव गांधी ने स्वीडेन के प्रधानमंत्री को फोन करके कहा कि “बोफोर्स खुद कह रहे है कि उन्होंने रिश्वत नही दी, तो फिर आगे जांच करने की जरूरत क्या है ?”
बीएम ओझा (भारत सरकार के स्वीडेन में तत्कालीन राजदूत) ने जब यह बात सुनी तो सन्न रह गए! कि हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री, स्वीडेन के प्रधानमंत्री को फोन करके ऐसी बात वह कहते है? ओझा ने स्वीडेन के अफसर से कहा “शायद आपने कुछ गलत सुना हो? शायद अंग्रेजी समजहने में कुछ दिक्कत हुई होगी ?”
चार्ल्स जोहानोबर्ग ने कहा कि “नही! ऐसी बात नही है, अंग्रेजी हमारी मातृभाषा नही है, लेकिन हम अंग्रेजी समझ सकते है। हम वहाँ खुद मौजूद थे, जब दोनों देश के प्रधानमंत्री बात कर रहे थे।”
राजीव गांधी ने रैली के माध्यम से जबाब दिया
भारत सरकार किसी भी घोटाले से इनकार कर रही थी, और दूसरी ओर राजदूत बीएम ओझा के अनुसार स्वीडेन सरकार से भी जांच रोकने के लिए कहा जा रहा था। लेकिन संसद के बाहर-भीतर आरोप लगने बंद नही हुए।
इसका जबाब राजीव गांधी ने 16 मई 1987 को नई दिल्ली की एक रैली में दिया -
“भारत की आजादी कैसे छीनी? कहा छीनी ? तब, जब मीर जाफर और राजा जयचंद जैसे लोगो ने विदेशी ताकतों से हाथ मिलाया। आप ऐसे लोगो से शतर्क रहे, जो विदेशी तकयो से हाथ मिलाकर अपने देश के हितों को बेच रहे है! …..”
दिल्ली की रैली में राजीव गांधी राजा और गद्दार शब्द का इस्तेमाल किसके लिए किया ? यह बात किसी से छिपी नही थी। वीपी सिंह एक पुराने रियासत मांडा के राजा हुए करते थे। यह साफ था कि निशाना उन्ही पर था।
राजीव गांधी का जबाब वीपी सिंह ने भी दिया
राजीव गांधी का जबाब वीपी सिंह ने दिया -
“हम तो कहते है कि असली मीर जाफर और जयचंद वो है जो देश का पैसा लूट-लूटकर विदेशी बैंकों में जमा कर रहे है। हमारी इकोनॉमी को बर्बाद कर रहे है और दूसरे देश फल-फूल रहे है।”
वीपी सिंह, अरुण नेहरू व आरिफ मुहम्मद का कांग्रेस से निष्कासन
राजीव गांधी और वीपी सिंह की लड़ाई सड़क पर लड़ी जाने जाने लगी। लड़ाई में दोनों बहुत दूर तक निकल गए थे। राजीव गांधी के कांग्रेस के अंदर वीपी सिंह के अलावा कई विरोधी खड़े हो गए थे। जिसमें वीसी शुक्ला, आरिफ मुहम्मद खान, और अरुण नेहरू नाम शामिल थे। आरिफ मुहम्मद खान “शाहबानो केस” को लेकर राजीव गांधी से दूर हो चुके थे।
15 जुलाई 1987 को कांग्रेस के असंतुष्ट नेताओ की हरिद्वार में बैठक हुई। उस दिन शाम को बैठक में शामिल होने वाले नेताओं में से आरिफ मुहम्मद, अरुण नेहरू और विद्याचरण शुक्ला को कांग्रेस से निष्कासित कर दिया गया। कांग्रेस के नेताओ के निकाले जाने का विरोध जताते हुए वीपी सिंह ने राज्यसभा से इस्थिपा दे दिया। जबाब में राजीव गांधी ने वीपी सिंह को कांग्रेस से निकाल दिया।
आगे पढ़ें ...
साभार: “ABP NEWS” के कार्यक्रम “प्रधानमन्त्री”
★★★★★★★