बोफोर्स घोटाले की पूरी कहानी! भाग-08

बोफोर्स घोटाले के पूरा सच !

(पिछले भाग -07 में पढ़े है कि राजीव गांधी के दून स्कूल के मित्र व रक्षा राज्यमंत्री अरुण सिंह ने स्वीडेन से प्राप्त सूचना के आधार पर जांच की बात करते है, लेकिन राजीव गांधी किसी भी कीमत पर तैयार नही थे। अरुण सिंह मंत्री पद से स्थिफ़ा दे देते है। जांच के लिए 30 सदस्यों वाली जेपीसी का गठन होता है। जो सिर्फ लीपापोती ही करता है। अब आगे …!)

संसद की जे.पी.सी. (joint Parliamentary Commety) अपने रिपोर्ट में राजीव सरकार को क्लीन चिट देती, उससे पहले चित्रा सुब्रमनियम और एन. राम ने “द हिन्दू” (दिनांक 23 अप्रैल 1988) में एक बड़ी खबर छापी!

रिपोर्ट में लिखा था कि बोफोर्स ने स्विस बैंक के “पिट्को” नाम के एक “कोडर एकाउंट” में पैसा जमा कराया है और ये एकाउंट जेपी हिंदुजा का है।”

बोफोर्स प्रमुख “मार्टिन आर्डोबो” की डायरी में कोड भाषा मे लिखा हुआ था
लेकिन सरकार ने कहा कि इस एकाउंट का बोफोर्स तोप की खरीददारी से कोई संबंध नही है। बोफोर्स तोप के मामले में कुछ और नाम सामने आए, जब चित्रा सुब्रमनियम के हाथ एक डायरी आयी। यह डायरी किसी और कि नही, बल्कि मार्टिन आर्डोबो की है। जिस समय भारत सरकार और बोफोर्स के बीच एग्रीमेंट हो रहा था, उस समय मार्टिन आर्डोबो बोफोर्स के प्रमुख थे। और यह डायरी उस एग्रीमेंट के लेनदेन की है, लेकिन कोड भाषा मे! जैसे कि “Q”, जैसे कि “R”!

  • आखिर ये Q और R कौन है ??
  • ये जो भी हो, उनका इस एग्रीमेंट के लेनदेन से क्या रिश्ता है ??

बोफोर्स कांड की परते एक सस्पेंस थ्रिलर की तरह खुलती जा रही थी। बड़े-बड़े नाम सामने आ रहे थे। डायरी मिलने के बाद साफ हो गई कि बोफोर्स के करार में 3 कंपनिया शामिल थी-
(1) पिट्को
(2) स्विसिका
(3) A. E. Services

  • ★ पिट्को, जीपी हिंदुजा की कंपनी थी!
  • ★ स्विसिका, विन चड्ढा की!
  • A. E. SERVICES का मालिक कौन था ?

सही तरीके से जांच की मांग हो रही थी, स्वीडेन की सरकार भी पूरी तरह से जांच करने के लिए तैयार थी। लेकिन उस समय जांच नही हुई और हुई भी तो सिर्फ लीपा-पोती।

आम चुनाव 1989 में कांग्रेस को बुरी मिली
आम चुनाव 1989 में कांग्रेस की हार हुई, 1984 में 400 से ज्यादा सीटें जितने वाली कांग्रेस को भारी नुकसान उठाना पड़ा। 1989 में कांग्रेस 195 सीटों पर ही जीत पाई। हालांकि कांग्रेस सबसे बड़े दल के रूप में उभरे। राष्ट्रपति ने राजीव गांधी को सरकार बनाने का न्योता दिया। लेकिन राजीव गांधी ने इनकार कर दिया।

वीपी सिंह ने बीजेपी और वामदलों के समर्थंन से सरकार बनाई
इस चुनाव में वीपी सिंह के “राष्ट्रीय मोर्चे” को 146 सीटे मिली थी। वीपी सिंह एक तरफ वामपंथी दल से और दूसरी तरफ बीजेपी से समझौता किया। बीजेपी के पास 86 सांसद थे और वामदलों के पास 52 सांसद। इस तरह राष्ट्रीय मोर्चे को 248 सांसदों का समर्थंन प्राप्त हो गया।

वीपी सिंह की सरकार मात्र 11 महीने में गिर गई
वीपी सिंह प्रधानमंत्री चुने गए, वीपी सिंह ने राजीव गांधी और कांग्रेस के भ्रष्टाचारों का पर्दाफाश का वादा किया था। वीपी सिंह ने बोफोर्स दलाली मामले की जांच का जिम्मा सीबीआई को सौप दिया। वीपी सिंह की सरकार जांच को कही नतीजे पर पहुचा पाती, उससे पहले ही उनकी सरकार मात्र 11 महीने में गिर गई।

बोफोर्स मामले में बड़ा खुलासा स्विट्ज़रलैंड की अदालत ने किया
वर्ष 1993 में बोफोर्स मामले में बड़ा खुलासा स्विट्ज़रलैंड की अदालत में हुआ। वहां पता चला कि AE SERVICES का असली मालिक ओत्तावियो क्वात्रोची और उनकी पत्नी मारिया क्वात्रोची है। बोफोर्स के खुलासे के बाद क्वात्रोची भारत मे ही था। लेकिंन जब 1993 में स्विस कोर्ट ने AE SERVICES से उसका संबंध जोड़ दिया तो भारत से भाग गया।

वरिष्ठ पत्रकार राम बहादुर राय बताते है कि “क्वात्रोची उस परिवार (नेहरू परिवार) के सदस्य थे। और क्वात्रोची राजीव गांधी के प्रधानमंत्री रहने का नाजायज इस्तेमाल किया, इस बात का प्रमाण है। क्वात्रोची भारत से भागा, उसके बाद  तीन जगह मिला। लेकिन तीनो जगह सीबीआई ने कोई खास कोशिश नही की।”

वर्ष 1999 में सीबीआई का विभिन्न लोगो पर चार्जशीट फ़ाइल किया
यह आरोप लगाया जा रहा है कि ओत्तावियो क्वात्रोची का संबंध नेहरू परिवार से थी। बहरहाल सीबीआई ने 1999 में इस मामले में चार्जशीट फ़ाइल की। इसमें सीबीआई ने विन चड्ढा, ओत्तावियो क्वात्रोची, पूर्व रक्षा सचिव एस के भटनागर, बोफोर्स कंपनी और उसके प्रमिख मार्टिन आर्डोबो के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की।

  • ★ वर्ष 2000 में सीबीआई ने सप्लीमेंट्री चार्ज शीट दायर की, जिसमे श्रीचंद्र हिंदुजा, गोपीचंद्र हिंदुजा और प्रकाशचंद्र हिंदुजा को भी आरोपी बनाया गया।
  • ★ वर्ष 2002 में घोटाले के दो प्रमुख आरोपी विन चड्ढा और एस के भटनागर का देहांत हो गया। वर्ष 2004 में दिल्ली हाई कोर्ट ने केस को खारिज कर दिया।
  • ★ वर्ष 2005 में श्रीचंद्र हिंदुजा, प्रकाशचंद्र हिंदुजा और गोपीचंद्र हिंदुजा के खिलाफ केस डिसमिस कर दिया गया।
  • ★ वर्ष 2013 में ओत्तावियो क्वात्रोची की मौत हो गई। सीबीआई ने दिल्ली की एक अदालत में बोफोर्स केस बंद करने अपील दायर की थी, जिसे कोर्ट ने मां लिया था।

आखिर बोफोर्स का रिश्वत खोर कौन था ?
एक सरकार गिरी तो दूसरी बनी, वो गिरी तो तीसरी बनी। इसी बीच कारगिल की लड़ाई हुई, और कारगिल की लड़ाई में पहली बार बोफोर्स तोप का इस्तेमाल हुआ। और कहा जाता है कि बोफोर्स तोप का गोला एकदम ठीक निशाने पर जाकर पड़ता था, और इस जंग में भारत के जीत का एक कारण यह भी था।

बहरहाल बोफोर्स की तोप अच्छी है, प्रभावी है। इस बात पर तो कभी बहस हुई ही नही। बहस तो थी कि रिश्वतखोर कौन है ? तब से आजतक कई राजनीतिक लड़ाईया लड़ी गई कि इसका गुनाहगार कौन है ? बोफर्स का रिश्वतखोर कौन है ??








साभार: “ABP NEWS” के कार्यक्रम “प्रधानमन्त्री
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