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बोफोर्स घोटाले का पूरा सच ! |
(पिछले भाग-04 में पढ़े है कि तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, वीपी सिंह को प्रधानमंत्री बनने का लालच देते है, लेकिन वीपी सिंह अस्वीकार कर देते है। सबमरीन में 7% कमीशन की सूचना को गलत मानते हुए, राजीव गांधी जांच से इनकार करते है, वीपी सिंह रक्षामंत्री से इस्थिफे दे देते है। स्वीडेन के रेडियो से प्रसारित होता है कि बोफोर्स ने भारतीय नेताओं और अधिकारियों को तोप सौदे में कमीशन दिया है। अब आगे …!)
बोफोर्स तोप खरीदने के लिए राजीव गांधी का फैसला
तोप खरीदने में दो कंपनियों के बीच टक्कर थी, एक फ्रांस की “सोफमा” और दूसरी “बोफोर्स”! दाम और खरीददारी को लेकर दिसंबर 1985 से लेकर 23 मार्च 1986 तक बातचीत चली। और इसके बाद 24 घंटे के अंदर राजीव गांधी ने खरीददारी को अपनी सहमति दे दी।
लेकिन क्या खरीददारी से पहले ही तय हो चुका था कि बोफोर्स के तोप ही खरीदे जाएंगे ?
स्वीडेन में उस समय भारत के राजदूत “बीएम ओझा” ने एक पुस्तक में लिखा है कि “राजीव गांधी ने “ओलोफ पलमे” (तत्कालीन प्रधानमंत्री) के अंतींम संस्कार के लिए आये थे। 15 मार्च 1986 को उनकी मुलाकात स्वीडेन के नए प्रधानमंत्री से हुई (यानी कि बोफोर्स सौदे से ठीक आठ दिन पहले)। 15 मार्च 1986 को अंतींम संस्कार से पहले राजीव गांधी स्वीडेन के नए प्रधानमंत्री “इन्वार कालसन” से मिले। पहले उन्होंने अलोफ पलमे के मृत्यु की संवेदना व्यक्त की फिर उसके बाद सीधे मुद्दे पर आ गए। उन्होंने इन्वार कालसन से कहा कि “तोप बोफोर्स कंपनी से ही खरीदी जाएगी और उन्होंने फ़ाइल में लिख भी दिया है!”
बोफोर्स तोप के आर्डर से स्वीडेन में खुशिया मनाई गई
राजीव गांधी के कहे मुताबिक इस मुलाकात के ठीक 8 दिन बाद, बोफोर्स को 410 तोप देने का कॉन्ट्रैक्ट मिल गया। जिस दिन बोफोर्स को तोप सप्लाई का ठेका मिला, उस दिन स्वीडेन में बोफर्स कम्पनी के हेड क्वार्टर में भारतीय तिरंगा फहराया गया, पूरे स्वीडेन में खुशियां मनाई गई।
राजीव गांधी ने स्वयं स्वीडेन सरकार से बोफोर्स घोटाले की जांच करने से मना किया
लेकिन एक वर्ष बाद हालात बदल गए। 16 अप्रैल 1987 को स्वीडेन रेडियो स्टेशन से घोटाले की खबर चलाई गई। दूसरे ही दिन संसद और उसके बाहर राजीव गांधी सरकार को घेरा जाने लगा। राजीव गांधी सरकार ने शुरुआत में कोशिश की कि “स्वीडेन इन आरोपो का खंडन करे!” ।
स्वीडेन में भारत के राजदूत बीएम ओझा ने लिखा है कि “इस अनुरोध के साथ वह स्वीडेन के अधिकारी चार्ल्स जोहनाबर्ग से मिले।” चार्ल्स जोहनाबर्ग ने मुझसे कहा कि “आरोप स्वीडेन की प्राइवेट कंपनी के खिलाफ लगा है। इसलिए स्वीडेन सरकार किसी प्रकार का खंडन नही करे, ये सही नही होगा, इसलिए पहला-पहला कदम जाँच होनी चाहिए, न कि रेडियो खबर का खंडन!”
बीएम ओझा ने लिखा है कि “ये बात मैंने तुरंत भारत सरकार को बताए थे।” और भारत सरकार ने भी बीएन ओझा से जांच करने के लिए स्वीडेन से तुरंत औपचारिक अनुरोध करने को कहा। लेकिन कुछ दिन बाद स्वीडेन की सरकार ने किसी भी जाँच करने से इनकार कर दिया। मैंने चार्ल्स जोहानोबर्ग से पूछा कि “आप लोग बार-बार जांच करने से इनकार क्यो कर रहे है? जोहानोबर्ग ने कहा कि “27 अप्रैल को आपके प्रधानमंत्री ने हमारे प्रधानमंत्री से बात की है,”! राजीव गांधी ने कहा कि “बोफोर्स ने ये साफ कर दिया है कि उसने किसी भी दलाल को पैसा नही दिया है, इसलिए स्वीडिश सरकार की तरफ से किसी भी जांच की जरूरत नही है।”
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साभार: “ABP NEWS” के कार्यक्रम “प्रधानमन्त्री”
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