बोफोर्स घोटाले की पूरी कहानी! भाग-04

बोफर्स का पूरा सच !

(पिछले भाग -03 में पढ़ा कि वीपी सिंह को प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने वित्तमंत्रालय से रक्षामंत्रालय में बैठा दिया। फेयर एंड फैक्ट्स मामले में वीपी सिंह पर कांग्रेस के ही नेता हमला करने लगे। वीपी सिंह ने सबमरीन्स की खरीद में 7% कमीशन दिए जाने की बात सामने आने पर जांच का आदेश दिया। राजीव गांधी वीपी सिंह से बहुत नाराज हुए। अब आगे …!)

तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह का वीपी सिंह को प्रधानमंत्री का लालच
कांग्रेस के दो बड़े नेताओं, राजीव गांधी और वीपी सिंह के रास्ते अलग-अलग हो रहे थे। प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति का रिश्ता पहले ही खराब चल रहा था। 25 मार्च 1987 को एक और मोड़ आया, जब राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह, वीपी सिंह से मिले !

ज्ञानी जैल सिंह: मेरे आफिस में जासूसी हो रही है, मेरे यहाँ बात सुनने के लिए यंत्र लगाए गए है। मैं इसीलिए आपको मुग़ल गार्डन ले आया हूँ।
वीपी सिंह: अपने यहाँ मुझे किस खास बातचीत के लिए बुलाया है ? कहिये क्या बात है ?
ज्ञानी जैल सिंह: आप प्रधानमंत्री बनना चाहेंगे? मैं आपको सपथ दिलाऊंगा, मुझे पता लगा है कि आपके पास 150 संसद है और आपको तो बहुमत मिलना ही चाहिए!
वीपी सिंह: आपका के सोचना गलत है !

वीपी सिंह उस समय रक्षामंत्री थे, उन्होंने राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था। कहा तो ये भी गया था कि तत्कालीन उपराष्ट्रपति आर. वेंकट रमन को भी प्रधानमंत्री बनने का प्रस्ताव दिया था। इस बात का जिक्र आर वेंकट रमन ने अपनी बायोग्राफी “माई प्रेसिडेंसीएल ईयर” में किया है। इस तरह के दावे एन डी तिवारी और अर्जुन सिंह ने भी किये है। लेकिन वीपी सिंह के लिहाज से यह तय हो चुका था कि अब राजीव गांधी की मंत्रिमंडल में उनके लिए जगह नही है।

पनडुब्बी घोटाले के बारे में वीपी सिंह और राजीव गांधी संवाद
राजीव गांधी कहते है कि “क्यो HDW किसी का नाम बताएंगी ? वो तो कई देशों के राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों को पैसा देती होगी, अगर वो कमीशन खाने वालों का नाम बताएंगे तो व्यापार नही कर पाएंगे!
वीपी सिंह: HDW को ठेका देना हमारा काम नही है। HDW को ठेका मिले न मिले, इससे उसे क्या लेना देना ?

वीपी सिंह कैबिनेट छोड़ने का मन बना चुके थे, जांच का एलान करना उनकी इसी रणनीति का हिस्सा था। इस मुलाकात के बाद उन्होंने अपना इस्थिपा तैयार कर लिया। वीपी सिंह इस्थिपा में लिखे कि, हमारे नजरिये में बड़ा अंतर है। ऐसे हालात में मैं नही समझता कि मंत्रिमंडल में मुझे बना रहना चाहिए। इसलिए रक्षामंत्री पद से इस्थिपा देता हूँ।”

बोफोर्स घोटाले की पहली जानकारी स्वीडेन के रेडियो ने दी!
वीपी सिंह 12 अप्रैल 1987 को अपना मंत्रिमंडल छोड़ा था, लेकिन कांग्रेस पार्टी नही। वीपी सिंह के इस्थिपे के 4 दिन बाद 16 अप्रैल 1987 को रेडियो पर एक ऐसी खबर आई, जिसने भारत की राजनीति को हमेशा के लिए बदल दिया।

स्वीडन के रेडियो की खबर थी कि, “स्वीडन की हथियार बनाने वाली कंपनी बोफोर्स ने 155mm HOWITZER GUNS के कांट्रेक्ट के सिलसिले में भारतीय राजनीतिज्ञों और अधिकारियो को कई लाख डॉलर की रिश्वत दी थी!”

ये खबर यूरोपीय देश स्वीडन देश के रेडियो से ब्रॉडकास्ट हुई थी। इसे सुनने वालों में जिनेवा में रहने वाली भारतीय मूल की पत्रकार चित्र सुब्रमनियम भी थी।

चित्रा सुब्रमनियम बताती है कि “ये एक बड़ी ही सिंपल स्टोरी थी, एस्टर की छुट्टी थी, दिन 16 या 17 अप्रैल (1987) के होगा। रायटर पर यह स्टोरी चल रही थी। मेरे एक सहकर्मी ने मेरे टाइपराइटर पर एक नोट रखा था। स्टोरी में ये बात कही गई थी कि  ‘बोफोर्स ने अपनी सबसे बड़ी डील हासिल करने के लिए भारत मे रिश्वत दी है।’ इस खबर का संदर्भ ये था कि बोफोर्स की जांच किसी और मामलर में हो रही थी, बोफोर्स कुछ दूसरे देशों को हथियार बेच रहा था। इस दौरान भारत मे रिश्वत की बात सामने आ गई। हाँ! ये बात जरूर है कि मैंने ये स्टोरी ब्रेक नही की, स्वीडिश रेडियो ने की।”

चित्रा सुब्रमनियम और “द हिन्दू” के संपादक एन राम ने इस खबर की पड़ताल शुरू की, और एक के बाद एक खबर आने शुरू हो गए। चित्रा सुब्रमनियम के रिपोर्ट ने भारत की राजनीति में भूचाल ला दिया। स्वीडिश रेडियो का आरोप था कि “हथियार कंपनी बोफोर्स ने भारत के साथ हुए रक्षा सौदे के लिए 64 करोड़ के रिश्वत मानी है।”

स्वीडिश रेडियो के खबर के चार दिन बाद (20-04-1987) संसद में प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने बयान दिया कि “बोफोर्स डील में कोई मिडल-मैन नही है, और किसी प्रकार का कमीशन नही दिया गया है।”

वरिष्ठ पत्रकार तवलीन सिंह कहती है कि “बोफोर्स घुस कांड का जो मामला सामने आया है उसे हम हिंदुस्तानी ने नही, बल्कि स्वीडन से मामला आया है। तो उस वक्त राजीव गांधी ने कहा कि ‘न मैंने, न मेरे परिवार के सदस्यों ने कोई पैसा नही लिया है।”

(जिस समय बोफोर्स खरीदने का फैसला हुआ था, उस समय रक्षा मंत्रालय राजीव गांधी के पास ही था।)
चित्रा सुब्रमनियम बताती है कि, “जब लोगो को बोफोर्स के घोटाले का पता चला तब राजीव गांधी ने कहा कि ‘न वो और नही उनके परिवार और दोस्तो का इसमें लेना देना है।’ यही शक की सुई उनकी तरफ घूमी, क्योकि उनपर कोई यरोप नही लगा रहा था। उस समय तो बस इतनी ही जानकारी थी कि कुछ भारतीय इसमें शामिल है!”

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साभार: “ABP NEWS” के कार्यक्रम “प्रधानमन्त्री

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