“टाइगर जिंदा है !” फिल्म एक एजेंडा वाली मूवी है!



फिल्म के लेखक तथा निर्देशक है "अली अब्बास जफर" (वही “सुल्तान” वाले) फिल्म देखने के बाद कहीं से लगा ही नहीं कि ये मूवी किसी भारतीय ने बनाई होगी। फिल्म के शुरुआत में ये दिखाया जाता है कि एक भारतीय मुसलमान 'कुरान' से ज्यादा महत्व 'भारतीय तिरंगा' को देता है ।

अनिल त्रिवेदी:

ये तो सच्ची बात है ही  "भारतीय मुसलमान देशभक्त होता है" ये दिखाया तो ठीक था। पर पाकिस्तानी ISI कहां से इन्सानियत के देवता हो गये है??

फिल्म में ये दिखाया गया है कि सिरिया में "चालीस नर्सें" ISIS के चंगुल में फंस गयी है। जिनमें पचीस भारतीय और पंद्रह पाकिस्तानी नर्सें हैं और भारतीय खुफिया एजेंसी और भारत सरकार इतने स्वार्थी और निर्दयी है कि वो पंद्रह पाकिस्तानीयों को वहीं छोड़ने का और सिर्फ पचीस भारतीयों को ही वापस लाने का प्लान बनाते है। जबकी असलियत में हर मोर्चों पर पाकिस्तानीयों को भी भारतीय एजेंसियों ने सुरक्षित निकाला है।

खैर .. पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी ISI जो की कश्मीर में आतंकवाद का जनक है, मुंबई हमलों का अपराधी है और भारतीय जवानों का सरेआम सिर काटने का ऑर्डर देने में आगे रहता है। उस ISI को फिल्म में "मानवता" के लिये काम करते हुये दिखाया गया है। ISI को RAW के साथ पुरा सहयोग करते दिखाया है।

पुरी फिल्म में हर सीन में यही साबित किया गया है की सब जंगो का एकमात्र कारण अमेरिका है। अमेरिका, ही भारत और पाकिस्तान में बम फोडता है। अमेरिका, ही कश्मीर में आतंकी भेजता है। वहीं पाकिस्तान तो बहोत ही मासूम है, अमेरिका के बहकावे में आ जाता है।

फ़िल्म में ISIS के सरगना का बचाव
फिल्म में ISIS के सरगना का भी बचाव किया गया है ये कहकर की उसको अमेरिकियों ने सिर्फ उसके नाम की वजह से उसे तीन साल तक प्रताड़ित किया, तब जाकर वो "आतंकवादी" बना है। इसमें मज़हब का कोई रोल ही नहीं है। मतलब ये कि ISIS में भर्ती होने वाले लोग अमेरिका के सताये हुये हैं, और पीड़ित हैं। वो मजहबी वजहों से नहीं बल्कि मजबुरी में अपने ऊपर हुये जुल्मों का बदला लेने के लिये ISIS ज्वाइन करता है।  वाह! डाइरेक्टर साहब वाह !!

मुझे तो फिल्म देखते हुये ऐसा भी लग रहा था कि फिल्म के अंत में कहीं ये लोग ये ना दिखा दे कि जो ISIS का सरगना "अबु उस्मान और अल बगदादी" है, वो RSS का मेंबर है और वो "हिंदु आतंकवादी" है, जो पुरे विश्व में हिंदुराष्ट्र बनाने के लिये ये सब कर रहा है। खैर ऐसा नहीं हुआ, इसके लिये डाइरेक्टर को धन्यवाद।

खैर, अंत में भारत का झंडा लहराता है, और उसी के साथ पाकिस्तान का भी झंडा लहराता है।

अब ISI और पाकिस्तानीयों की असहिष्णुता देखिये कि उन्होंने सिर्फ इस वजह से इस फिल्म को पाकीस्तान में बैन कर दिया, क्योंकि उसमें भारत का झंडा, पाकिस्तानी झंडे से पहले लहराता है।

खैर.. हमारे डाइरेक्टर "अली अब्बास जफर" साहब पाकिस्तानीयों को इंसानियत का मसीहा साबित करने मे एड़ी-चोटी का जोर लगा गये है।  फिल्म खत्म हो गई... निर्दयी और स्वार्थी RAW, टाइगर को छोड़ती नहीं, इसलिये उसे फिर से भागना पड़ा परटाइगर अभी भी जिंदा है....।

Post a Comment

Previous Post Next Post