डॉ विवेक आर्य:
कश्मीर। कभी शैव विचारधारा की पवित्र भूमि कही जाने वाले कश्मीर में आज “अज़ान” और “आतंवादियों” की गोलियां सुनाई देती हैं। कश्मीर के इस्लामीकरण में सबसे पहला नाम “बुलबुल शाह” का आता है। बुलबुल शाह के बाद दूसरा बड़ा नाम “मीर सैय्यद अली हमदानी” का आता है। हमदानी कहने को सूफी संत था मगर कश्मीर में कट्टर इस्लाम का उसे पहला प्रचारक कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
श्रीनगर में हमदानी की ख़ानख़ा-ए -मौला के नाम से स्मारक बना हुआ है। पुराने कश्मीरी इतिहासकारों के अनुसार यह “काली देवी का मंदिर” था। इस पर कब्ज़ा कर इसे इस्लामिक ख़ानख़ा में जबरन परिवर्तित किया गया था। सबसे खेदजनक बात यह है कि वर्तमान में कश्मीरी हिन्दुओं की एक पूरी पीढ़ी हमदानी के इतिहास से पूरी प्रकार से अनभिज्ञ है। कुछ को सेक्युलर नशा चढ़ा है। उनके लिए मंदिर और ख़ानख़ा में कोई अंतर नहीं है। कुछ को सूफियाना नशा चढ़ा है। वे सूफियों को हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक समझते है।
कश्मीर। कभी शैव विचारधारा की पवित्र भूमि कही जाने वाले कश्मीर में आज “अज़ान” और “आतंवादियों” की गोलियां सुनाई देती हैं। कश्मीर के इस्लामीकरण में सबसे पहला नाम “बुलबुल शाह” का आता है। बुलबुल शाह के बाद दूसरा बड़ा नाम “मीर सैय्यद अली हमदानी” का आता है। हमदानी कहने को सूफी संत था मगर कश्मीर में कट्टर इस्लाम का उसे पहला प्रचारक कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी।
श्रीनगर में हमदानी की ख़ानख़ा-ए -मौला के नाम से स्मारक बना हुआ है। पुराने कश्मीरी इतिहासकारों के अनुसार यह “काली देवी का मंदिर” था। इस पर कब्ज़ा कर इसे इस्लामिक ख़ानख़ा में जबरन परिवर्तित किया गया था। सबसे खेदजनक बात यह है कि वर्तमान में कश्मीरी हिन्दुओं की एक पूरी पीढ़ी हमदानी के इतिहास से पूरी प्रकार से अनभिज्ञ है। कुछ को सेक्युलर नशा चढ़ा है। उनके लिए मंदिर और ख़ानख़ा में कोई अंतर नहीं है। कुछ को सूफियाना नशा चढ़ा है। वे सूफियों को हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक समझते है।
सारा दोष हिन्दुओं का है जो अपने बच्चों को धार्मिक शिक्षा न के बराबर देते है। इसलिए श्रीनगर में रहने वाला अल्पसंख्यक हिन्दू इतिहास की जानकारी न होने के कारण हमदानी की ख़ानख़ा में माथा टेकने जाता है।
#kashmir 's syncretic culture at display. Non-Muslims paying obeisance at Khanqah-e-Muala shrine of Mir Syed Ali Hamdani (RA) in #Srinagar pic.twitter.com/nalb4rLtey— Shujaat Bukhari (@bukharishujaat) June 6, 2017
आईये पहले हमदानी के इतिहास को जान ले
हमदानी का जन्म हमदान में हुआ था। वह तीन बार कश्मीर यात्रा पर आया। यह सूफियों के कुबराविया सम्प्रदाय से था। यह मीर सैय्यद अली हमदानी ही था जिसने कश्मीर के सुलतान को हिन्दुओं के सम्बन्ध में राजाज्ञा लागु करने का परामर्श दिया गया था। इस परामर्श में हिन्दुओं के साथ कैसा बर्ताव करे।
यह बताया गया था, हमदानी के परामर्श को पढ़िए-
- हिन्दुओं को नए मंदिर बनाने की कोई इजाजत न हो।
- हिन्दुओं को पुराने मंदिर की मरम्मत की कोई इजाजत न हो।
- मुसलमान यात्रियों को हिन्दू मंदिरों में रुकने की इजाज़त हो।
- मुसलमान यात्रियों को हिन्दू अपने घर में कम से कम तीन दिन रुकवा कर उनकी सेवा करे।
- हिन्दुओं को जासूसी करने और जासूसों को अपने घर में रुकवाने का कोई अधिकार न हो।
- कोई हिन्दू इस्लाम ग्रहण करना चाहे तो उसे कोई रोकटोक न हो।
- हिन्दू मुसलमानों को सम्मान दे एवं अपने विवाह में आने का उन्हें निमंत्रण दे।
- हिन्दुओं को मुसलमानों जैसे वस्त्र पहनने और नाम रखने की इजाजत न हो।
- हिन्दुओं को काठी वाले घोड़े और अस्त्र-शस्त्र रखने की इजाजत न हो।
- हिन्दुओं को रत्न जड़ित अंगूठी पहनने का अधिकार न हो।
- हिन्दुओं को मुस्लिम बस्ती में मकान बनाने की इजाजत न हो।
- हिन्दुओं को मुस्लिम कब्रिस्तान के नजदीक से शव यात्रा लेकर जाने और मुसलमानों के कब्रिस्तान में शव गाड़ने की इजाजत न हो।
- हिन्दुओं को ऊँची आवाज़ में मृत्यु पर विलाप करने की इजाजत न हो।
- हिन्दुओं को मुस्लिम गुलाम खरीदने की इजाजत न हो।
मेरे विचार से इससे आगे कुछ कहने की आवश्यता ही नहीं है।
(सन्दर्भ- Zakhiratul-muluk, pp. 117-118)
मेरे विचार से अगर कोई हिन्दू हमदानी के विचार को जान लेगा तो वह कभी हमदानी की ख़ानख़ा जाने का विचार नहीं करेगा। यह सेकुलरिज्म का नशा है। इसे उतारना ही होगा।
(सन्दर्भ- Zakhiratul-muluk, pp. 117-118)
मेरे विचार से अगर कोई हिन्दू हमदानी के विचार को जान लेगा तो वह कभी हमदानी की ख़ानख़ा जाने का विचार नहीं करेगा। यह सेकुलरिज्म का नशा है। इसे उतारना ही होगा।
(सलंग्न चित्र में एक हिन्दू भाई हमदानी की ख़ानख़ा में माथा टेकते हुए। यह चित्र एक कश्मीर के अख़बार के संपादक ने अपने ट्विटर अकाउंट पर हमदानी की खँखा को हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक बताते हुए प्रकाशित किया है। )
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