इतिहास: ख़जाने के लिए इंदिरा गांधी ने गायत्री देवी का किला खुदवा दिया था!

महारानी गायत्री देवी (1919-2009)

अगस्त 1975 में रूस के वीकली न्यूजपेपर सेंट पीटर्सबर्ग टाइम्स ने जब गायत्री देवी को जेल करने की खबर पब्लिश की तो उसमें खजाने की खुदाई और उसमें मिले सामान की जानकारी भी दी गई थी  इसके मुताबिक, “बीती फरवरी सरकार ने कहा कि उसके जांचकर्ताओं को 1.70 करोड़ डॉलर कीमत की करंसी, डायमंड, एमेरल्ड और कीमती धातुएं मिलीं जो महारानी और उनके परिवार की थीं। इनमें सोने के सिक्कों और बुलियन का ज़ख़ीरा भी मिला जो एक पैलेस की जमीन के नीचे एक गुप्त तहखाने में छुपाया हुआ था जिसकी कीमत करीब 50 लाख डॉलर है।”

 महारानी गायत्री देवी ने सच बताया

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी की स्वतंत्र पार्टी से जयपुर की पूर्व-महारानी गायत्री देवी ने 1962 में लोकसभा का चुनाव लड़ा और कॉन्ग्रेस के कैंडिडेट को हरा दिया। इसे तब दुनिया में सबसे अधिक मतों के अंतर से जीता गया मुकाबला माना गया। इसके बाद 1967 और 1971 में भी गायत्री देवी चुनाव जीतती गईं। वे हमेशा से इंदिरा गांधी की मुखर आलोचक थीं। इसी वजह से वे उनकी नजरों में भी चढ़ी हुई थीं। इंदिरा ने फिर उनके साथ जो किया वो आपातकाल से जरा पहले और लागू होने के बाद देखने को मिला। गायत्री देवी की प्रॉपर्टीज पर जो छापेमारी हुई और बाद में उन्हें जेल में डाला गया। इसकी शुरुआत उनके मुताबिक बांग्लादेश युद्ध (1971-72) के बाद से हो गई थी।

प्रस्तावना ये थी इस मिशन की

गायत्री देवी ने बताया था, “बांग्लादेश युद्ध इंदिरा गांधी के लिए सबसे चमकीली घड़ी थी लेकिन भारत में उनकी ये खुशी जल्द ही फीकी पड़ गई। युद्ध की जो कीमत देनी पड़ी थी वो महसूस की जाने लगी। मानसून फेल हो गए थे। बैंक, बीमा, कोयले की खदानों और गेहूं के कारोबार का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। खाने के सामान की कीमतें आसमान छू रही थीं। लोगों के बीच असंतोष भी आसमान छू रहा था। फिर 1974 में जयप्रकाश नारायण ने बिहार में बड़ा आंदोलन शुरू कर दिया था। सांसद और रेलवे वर्कर्स यूनियन के नेता रह चुके जॉर्ज फर्नांडिस ने तीन हफ्ते तक रेल की हड़ताल कर दी थी।”

जार्ज फर्नांडिस और जयप्रकाश नारायण

“देश का भरोसा इंदिरा के नेतृत्व पर खत्म हो चुका था। जितने जनआंदोलन हो रहे थे, इंदिरा उनको नहीं देख पाईं और उन्होंने सोचा लोग बोल रहे हैं ‘
इंदिरा लाओ।’ तो उन्होंने जनआंदोलनों से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए कारोबारी घरानों और विपक्ष के नेताओं के खिलाफ छापेमारी शुरू करवा दी। लेकिन इसका परिणाम उल्टा ही हुआ और उनके खिलाफ लोगों का गुस्सा और बढ़ा। वामपंथियों को छोड़कर सारा विपक्ष एकजुट हो गया। इन छापेमारियों में ग्वालियर और जयपुर के पूर्व-राजघरानों के प्रति विशेष दुराग्रह रखा गया क्योंकि ग्वालियर की राजमाता और मैं संसद में विपक्ष के सदस्य थे।”

वो न भूलने वाला दिन कैसा था

ये 11 फरवरी 1975 का दिन था, इमरजेंसी से चार महीने पहले। वो दिन जिसे गायत्री देवी ताउम्र नहीं भूलीं।

उन्होंने इसे याद करते हुए लिखा था, “फरवरी राजस्थान में एक ब्यूटीफुल महीना होता है। आसमान नीला होता है, फूल खिलना शुरू होते हैं, पंछी गाते हैं और दिन ठंडे व एकदम साफ होते हैं। इस खास दिन मैं बहुत खुश महसूस कर रही थी जितना जय (महाराजा सवाई मान सिंह द्वितीय) को खोने के बाद मैंने पहले नहीं किया था। दिन व्यस्तताओं भरा होने वाला था और मैं प्लानिंग कर रही थी। टैरेस पर योग करने के बाद मैं ब्रेकफास्ट करने गई। नाश्ता कर रही थी कि मेड ने आकर बताया कुछ अजनबी मुझसे मिलना चाहते हैं। मैंने उनको अंदर बुलाने के लिए कहा। वे आए और बोले, ‘हम इनकम टैक्स ऑफिसर हैं। हम आपके प्रांगण की छानबीन करने आए है।’ मैंने कहा, ‘करो फिर, लेकिन मेरे अपॉयंटमेंट्स हैं और मुझे अभी निकलना है।’ तो उन्होंने कहा कि कोई भी यहां से बाहर नहीं जा सकता।”


इन्द्रीरा गांधी: इमरजेंसी के दौरान

जयगढ़ फोर्ट में हफ्तों चली ये खोज

मोती डूंगरी में उनकी प्रॉपर्टी पर छानबीन शुरू हो गई। उसी समय उनके हरेक घर, हर ऑफिस, सिटी पैलेस, म्यूजियम, रामबाग़ पैलेस होटल, उनके बच्चों के घरों और दिल्ली में सांसद आवास पर भी छापे मारे गए थे। दो दिन बाद जयपुर में जयगढ़ फोर्ट पर भी छापा मारा गया। जब इनकम टैक्स अधिकारी फोर्ट के दरवाजे पर पहुंचे तो उसके प्रहरी मीना ट्राइबल के लोग थे। उन्होंने इनकम टैक्स अधिकारियों से कहा कि वे किले में उनकी लाश पर से गुजर कर ही घुस सकते हैं। गायत्री देवी ने याद किया कि जब से महाराजा जय सिंह ने इस किले के बनाया था तब से महाराजाओं और उनके अधिकारियों के अलावा कोई भी उसमें प्रवेश नहीं कर पाया था। लेकिन उन्हें प्रवेश दिया गया। ये छानबीन कई हफ्तों तक चलती रही। टीवी, रेडियो और अखबारों में रोज़ खबरें आ रही थीं।

जब अधिकारियों की आंखें फटी रह गई

जयपुर में राजपरिवार के आवास सिटी पैलेस में कपाटद्वार राजकोष बना था जिसकी छत की मरम्मत की जरूरत थ। इससे कई साल पहले महाराज सवाई मान सिंह द्वितीय ने इसमें मौजूद सब कीमती चीजों को जयपुर में ही मोती डूंगरी के खास बनाए स्ट्रॉन्ग रूप में रखवा दिया। गायत्री देवी के मुताबिक वे इन चीजों को अलग-अलग केसेज़ में रखकर सिटी पैलेस में प्रदर्शन के लिए रखवाना चाहते थे ताकि वहां आने वाले सैलानी और लोग इस खजाने को देख सकें। जब इनकम टैक्स अधिकारियों ने इस खज़ाने को देखा तो उनकी आंखें चौंधिया गईं।


मोती डोंगरी का किला और उसपर दिखता मंदिर

 फिर मिला सोने के सिक्कों का विशाल भंडार

मोती डूंगरी के प्रांगण में एक दुपहरी जब गायत्री देवी सो रही थीं तो इनकम टैक्स अधिकारी नीचे बने पत्थर के आंगन से साथ मशक्कत कर रहे थे। गायत्री देवी ने इसे लेकर बताया था, “छापेमारी दल का जो इनचार्ज अधिकारी था वो उत्साह से भर गया जब उसे विशाल मात्रा में सोने के सिक्के मिले। इन सिक्कों को जय (मान सिंह द्वितीय) ही नाहरगढ़ के किले से मोती डूंगरी लाए थे जो भारतीय संघ में जयपुर रियासत के मिलने से पहले नाहरगढ़ किले के खजाने में रखे हुए थे। सौभाग्य की बात थी कि इस सोने का जिक्र जयपुर रियासत के आखिरी बजट में किया हुआ था तो एक-एक सिक्के का हिसाब था। लेकिन इसके बाद भी ये उत्पीड़न जारी रहा।”

ज़ाहिर है ये सिक्के ट्रकों में भरकर कहीं नहीं ले जाए गए थे और पूर्व-रियासत के पास इनका हिसाब था। इसके कुछ महीने बाद जून 1975 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी घोषित करवा दी तो उसके बाद अपने विरोधियों को जेल भेजना शुरू किया। पूर्व-महारानी गायत्री देवी को भी तिहाड़ जेल डाल दिया गया। वहां पांच महीने उन्हें रहना पड़ा। उनके सबसे बड़े बेटे ब्रिगेडियर भवानी सिंह (सौतेले) को भी उनके साथ जेल कर दी गई।

जयपुर की महारानी गिरफ्तार हुई: पीटर्सबर्ग टाइम्स


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