नेताजी सुभाष चन्द्र बोस: कुछ जानकारियां

नेताजी सुभाष चंद्र बोस को लेकर देश में तमाम रिसर्च की जा रही हैं। इसमें महत्वपूर्ण तौर पर नेताजी उस समय कैसे रहते थे, आज़ाद हिंद फ़ौज के लिए फंड कैसे इकठ्ठा होता था, नेताजी को आज़ादी के लिए लोगों ने 26 बोरे सोने चांदी से तौल दिया था, आदि सवालों के जवाब ढूंढे जा रहे हैं।

इसके साथ ही वह अपने अधिकारियों और सैनिकों को कैसे तनख्वा देते थे, ऐसे ही कुछ सवालों पर बीएचयू हिस्ट्री डिपार्टमेंट के प्रो. डॉ. राजीव श्रीवास्तव लगातार शोध कर रहे हैं। उनके इस रिसर्च में नेताजी के बॉडीगार्ड रहे 114 साल के कर्नल निजामुद्दीन अहम भूमिका निभा रहे हैं।

प्रो. श्रीवास्तव बताते हैं कि आजाद हिंद फ़ौज के गठन की भूमिका के साथ नेता जी ने आजादी का बिगुल पुरे भारत में फूंका। ज्यादा से ज्यादा लोगों को रंगून के जुबली हॉल में इकठ्ठा होने को कहा। जुलाई 1943 को भारतीय, बर्मा, सिंगापुर और रंगून प्रवासी भारतियों ने आजाद हिंद फ़ौज के फंड के लिए 26 बोरे सोने, चांदी, हीरे-जवाहरात और पैसों से नेता जी को तराजू में बैठाकर तौल दिया गया था।

        114 साल के नेताजी के बॉडीगार्ड कर्नल निजामुद्दीन बताते हैं कि उस समय पीठ पर लादकर बोरों को कोषागार में रखा गया था। इसी दौरान सब लोगों ने शपथ ली थी कि देश की आजादी में सब कुछ कुर्बान कर देंगे। लोगों का स्नेह देखकर नेता जी भावुक हो उठे। 9 जुलाई 1943 को नेता जी ने यहीं सबको संबोधित किया, जिसमें नारा दिया 'करो सब न्यौछावर, बनों सब फकीर' इस नारे के बाद रंगून में आजाद हिंद फ़ौज बैंक में 20 करोड़ रुपये एक दिन में जमा हो गए थे। अक्टूबर 1943 को आजाद हिंद सरकार को मान्यता मिल गई थी।

नेताजी दिन में दो बार बदलते थे वेष
नेताजी को धोती कुर्ता और गुलाबी गमछा बहुत प्रिय था। वह अक्सर अपना भाषण धोती कुर्ता पहन कर ही देते थे। फौज के गठन के बाद वह सैनिक वेष में रहते थे। चौबीस घंटे में दो बार कपड़े जरूर बदल लेते थे। रात को सोते समय भी वह अक्सर बिना किसी को बताए अपना स्थान बदल देते थे। कर्नल निजामुद्दीन बताते हैं कि वह उनके अंग रक्षक थे। इसलिए वह हमेशा उनके साथ रखते थे। वह अपने अधिकारियों से भी सीक्रेट प्लान शेयर नहीं करते थे।

आजाद हिंद फ़ौज की तनख्वा और कैसी थी करेंसी
प्रो. श्रीवास्तव ने बताया कि आजाद हिंद फ़ौज की करेंसी को मांडले कहते थे। जो बर्मा में छपा करती थी। कर्नल निजामुद्दीन बताते हैं कि उनकी पगार उस समय मात्र 17 रुपये थी। फौज में 1 पैसा-2 कड़ा और दो कड़ा में चार पाई हुआ करते थे, जो आजाद हिन्द फ़ौज और रंगून सिंगापुर भारत के कई हिस्सों में काफी प्रचलित थी। 1943 में आजाद हिंद बैंक ने पहली बार पांच सौ के कुछ नोटों को छापा था। इन नोटों पर नेता जी की तस्वीर बनी थी। निजामुद्दीन बताते हैं कि लेफ्टिनेंट को 80 रुपये पगार मिलती थी। बर्मा में जो अधिकारी फ़ौज में थे, उनको 230 रुपये मिलते थे। लेफ्टिनेंट कर्नल को 300 रुपये मिलते थे।

नेताजी के इंटेलिजेंस ग्रुप का नाम था बहादुर
प्रो. श्रीवास्तव बताते हैं कि नेताजी का गुप्तचर विभाग भी था। उनके गुप्तचर विभाग का नाम बहादुर ग्रुप था। इस ग्रुप में बहुत कम अधिकारी और सैनिक थे। जो नेताजी और देश की आजादी के लिए खुफियां चीजों और बातों को इकठ्ठा करते थे। नेता जी का गुप्तचर विभाग सबसे सक्रीय ब्रिटिश जानकारियों को इकठ्ठा करता था। इसका नेटवर्क कुछ महीनों में देश के कई कोनों तक फ़ैल गया। नेताजी ने कई बार पनडुब्बी द्वारा गुप्तचरों को सिंगापुर और बैंकाक भी भेजा था।
दुनियां की पहली महिला फ़ौज नेताजी ने बनाई !

प्रो. डॉ राजीव श्रीवास्तव बताते हैं कि दुनिया की पहली महिला फ़ौज का गठन नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने किया था। 12 जुलाई 1943 को सिंगापुर की एक सभा में नेताजी के विचारों को सुनने के लिए मलाया औऱ थाइलैंड से पचीस हजार महिलाएं पहुंची थी। इसी के बाद 15 जुलाई 1943 को 20 महिला सैनिकों की भर्ती की गई और रेजीमेंट का नाम रानी झांसी रखा गया। जुलाई 1943 के आखिर में पचास महिला सैनिकों की भर्ती हुई। डॉ लक्ष्मी स्वामी नाथन को रेजीमेंट का पहला कैप्टन बनाया गया। अगस्त 1943 में पांच सौ महिलाओं को सैन्य प्रशिक्षण के लिए चुना गया। बाद में केवल 150 महिला सैनिकों का चयन रानी झांसी रेजीमेंट के लिए किया गया। 22 अक्टूबर 1943 को नेताजी ने रानी झांसी रेजीमेंट की घोषणा पूरी दुनिया में कर दी। महिला सैनिकों को रानी कहकर बुलाया जाता था। 1 नवंबर 1943 को रेजीमेंट में तीन सौ महिला सैनिक हो गई थी।

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