इराक़ का रमादी शहर एक घर की छत पर मशीन गन के साथ दो आतंकी अमेरिकन सैनिकों के काफ़िले के गुज़रने के इंतज़ार में घात लगाए बैठे थे जो वहां से बस गुज़रने ही वाला था। उदेश्य अधिक से अधिक अमेरिकी सैनिकों की जान लेना, ये हमला घातक और भयावह होता, लेकिन इन आतंकियों से ढाई किलोमीटर से भी ज्यादा दूरी पर मौत इन पर बेहद करीब की नज़र गढ़ाए थी। एक बिल्डिंग की छत पर अपनी .338 Lapua Magnum स्नाइपर राइफल के साथ ChrisKyle नाम का एक अमेरिकन सैनिक तैनात था। उसकी नज़र इन दोनों पर थी, रमादी की तेज धूप और सड़कों से उड़ती धूल उसकी नज़र को धुंधला रही थी। लक्ष्य बेहद दूर था, इतना दूर के जिसे इससे पहले कभी किसी स्नाइपर ने नहीं भेदा था। उसकी बंदूक से निकली गोली को भी इस दूरी को तय करने में तीन सेकेंड का समय लगता यानी दूसरा निशाना उसे सिर्फ तीन सेकेंड में भेदना था।
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Chris kyle |
आप Chris Kyle पर उस समय मौजूद दबाव की सिर्फ कल्पना मात्र कर सकते है, पर वह पहले भी एक या दो नहीं सैकड़ों आतंकियों को मार चुका था। अमेरिकन सेना के उस पर यक़ीन का अनुमान इससे पता चलता है के उसे चार बार इराक की जंग में उतारा गया।
खैर Chris Kyle ने ट्रिगर दबाया और तुरंत बोल्ट खींच कर दूसरे लक्ष्य पर भी गोली दाग दी। रिजल्ट हमेशा की तरह सटीक था, दोनों आतंकियों की खोपड़ी में क्रिस की गोली घुस चुकी थी। अमेरिकन सैन्य काफ़िला आराम से वहां से गुज़र चुका था… पूर्ण सुरक्षित!!!
Chris Kyle का कहर ऐसा था कि इराक़ के आतंकी उन्हे “रमादी का शैतान” (Devil of Ramadi) बुलाते थे। अपने काम की इतनी सटीकता के 300 से ज्यादा आतंकी मौत की नींद सुलाए, जिनमे 160 को सिर्फ एक सप्ताह में ही निशाना बनाया।
खैर इस कहानी के हीरो अगर क्रिस हैं तो उतना ही महत्व उन अत्याधुनिक स्नाइपर रायफ़ल का भी है, जिन्हें क्रिस इस्तेमाल करते थे। अथवा उनकी तरह ही ब्रिटिश, अमेरिकन या इज़राइली सैनिक इस्तेमाल करते हैं। यहां तक कि पड़ोस के नंगे भूखे मुल्क पाकिस्तान के सैनिकों के पास भी अत्याधुनिक स्नाइपर रायफ़ल मौजूद हैं, जिनका शिकार कई बार हमारे सैन्य कर्मी होते हैं। ये वो हथियार है जो कई बार सिर्फ एक गोली से पूरे युद्ध का परिणाम बदल देता है। जैसे पानीपत में सिर्फ एक तीर ने राव हेमू की हार और बैरम खां की जीत तय कर दी थी, सिर्फ एक सटीक निशाना.....!
भारतीय सरकारों को इसकी समझ क्यो नही थी?
पर इस सब में सबसे कमाल की बात यही है के जो बात इस कहानी को पढ़ कोई भी सामान्य भारतीय आराम से समझ सकता है, उसे भारत की सरकारों को समझने में कई दशक लग गए। भारत की पूर्व की सरकारों ने किस तरह सेनाओं को कमज़ोर किया उसका उदाहरण भी है ये। आपको जानकर आश्चर्य होगा के भारत की सेनाएँ अब तक दूसरे विश्व युद्ध और सोवियत के जमाने की स्नाइपर रायफ़ल इस्तेमाल करती रही हैं, कर रही हैं। जिसमें 1958 में बनी Dragunov sniper rifle और 1969 की Steyr SSG 69 शामिल हैं। और कुछ तो उससे भी पुरानी जर्मन माउज़र रायफ़ल हैं। इन की मारक छमता 500 से 800 मीटर और एक्यूरेसी 30% से 40% होती है।
पिछले चार सालों में जिस तरह भारतीय सेनाओं का आधुनिकीकरण हुआ, उसमें भारत की इस कमज़ोरी को भी दूर किया गया। आज भारतीय सेना के हाथ में भी अमेरिका और इज़राइल की बनी कुछ बेहतरीन स्नाइपर रायफ़ल आ चुकी हैं। जिनमे इस श्रेणी की सबसे बेहतरीन Barrett Model 98B, .338 Lapua Magnum भी शामिल है। जिसे इराक में Devil of Ramadi Chris Kyle ने अपने शिकारों को खत्म करने के लिए इस्तेमाल किया।
दुनियां के बेहतरीन स्नाइपर Chris Kyle सिर्फ 38 साल की उम्र में 2013 में, अपने ही एक मनोविक्षिप्त सैन्य साथी की गोली का शिकार हो गए। पर इस हुनर ने उन्हे जो ख्याति दी, वो अमर है। उम्मीद है भारतीय सेना भी उनके हथियार से अपने दुश्मनों का वैसा ही शिकार करेगी....!
पर ये सवाल तो रहेगा ही, जो हथियार भारतीय सेना को 20 साल पहले मिलने थे, वो आज क्यों मिल रहे हैं? इस देरी के पीछे आखिर मंसा क्या थी?
- अजीत सिंह
- अजीत सिंह