नींव के पत्थरों की एक विशेषता होती है कि, किसी भी निर्माण के आधारभूत होते है। जिनके बिना कोई भी निर्माण संभव नही है, चाहे वो भौतिक निर्माण हो या मानसिक (व्यक्तित्व)। यदि इन्हें हटा दिया जाए तो पूरी की पूरी रचना एक झटके में खत्म हो जाएगी, लेकिन इन नींव के पत्थरों को कभी भी वो सम्मान नही मिलता जो निर्माण पूर्ण होने पर अन्य दृश्य निर्माण को मिलता है। भारतीय मेधा भी नींव के पत्थरों सरीखी ही है, जिस पर आधुनिक विज्ञान पूर्णतया टिका हुआ है। उन्हें चोरी करके उन्हें अपने नाम से पेटेन्ट करवा कर पश्चिमी ठप्पा लगा कर हमारे सामने रखा जाता है, जिसे हम बड़े गर्व के साथ स्वीकार करते है। जबकि वही चीज़े हम देखते सुनते बड़े हुए है। चलिए एक उदाहरण से समझाता हूँ -
बॉयोलोजिकल क्लॉक को अभी हाल ही में एक क्रांतिकारी खोज माना गया है। अब जरा अपने से 3 पीढी पीछे के लोगो की रूटीन लाइफ पर गौर किजिए- ब्रम्हमुहूर्त में उठना, समय से भोजन, किस समय क्या भोजन, कितना भोजन, किस मौसम में कौन सा भोजन! क्या ये पहले से ही प्रयोग में नही था? लेकिन....... बस इन पश्चिमी चोरो के ठप्पे के बिना हम पिछड़े है भाई!
चोरों से याद आया! एक बार मैंने न्यूटन को चोर कहा था जिस पर एक बंधु है जो एक इंजीनियरिंग कॉलेज में प्रोफेसर है, उन्होंने जोरदार आपत्ति की थी कि “नही! वो एक महान वैज्ञानिक था और आप उसे चोर नही कर सकते!” हालांकि एक गरमागरम बहस के बाद दोनों ने ब्लॉक-ब्लॉक खेल लिया। उनसे बहस के दौरान जो मेरा तर्क था कि “न्यूटन से पूर्व ही गुरुत्वाकर्षण की खोज वैदिक साहित्य में उपलब्ध है” और उनका तर्क था कि “कल्पना और थ्योरी फिर गणितीय समीकरण के बिना सब बेकार है, और बिना इन सबके आप न्यूटन को चोर नही कह सकते”।
न्यूटन एक चोर
उस दिन वाकई जब गणितीय समीकरण की बात आई तो मुझे चुप होना पड़ा, लेकिन एक कीड़ा है दिमाग मे, जो मुझे शान्त नही होने देता। मैंने इसे छोड़ा नही, क्योंकि कही न कही ये तो था कि यदि इसने गुरुत्वाकर्षण की थ्योरी वैदिक साहित्य से ली है (जिस पर मैं हमेसा से अड़िग हूँ)। तो इसने और भी तथ्य और थ्योरी भारतीय संस्कृति, वैदिक साहित्य से जरूर ली होगी। इसके लिए कुछ दिनों की मशक्कत के बाद जो चीज़ सामने आई, उनके आधार पर ये कहा जा सकता है कि न्यूटन वाकई चोर था। उसकी एक-एक रिसर्च वैदिक साहित्य से ली गयी है और उसने बिना मूल रचियता के इसे अपने नाम से प्रसारित किया। इसलिए उसे चोर कहना गलत नही है।
न्यूटन गाउस अन्तर्वेशन सूत्र (Newton-Gauss interpolation formula)
न्यूटन और गाउस ने अन्तर्वेशन सूत्र का प्रतिपादन किया। न्यूटन ने (1643-1727) और गाउस ने (1777-1855) ये सूत्र वैदिक साहित्य से लिया गया है और इसे बिना किसी फेरबदल के बिना किसी दशमलव (•) मान के अंतर के बिना जस का तस रखा गया है और इसे देने वाले थे गोविन्दस्वामी जी।
गोविन्दस्वामी जी (800-860 ई) भारत के गणितज्ञ एवं खगोलशास्त्री (ज्योतिषी) थे। उन्होने भास्कर प्रथम के ग्रन्थ “महाभास्करीय” पर एक भाष्य की रचना की (लगभग 830 ई)। इस भाष्य में स्थानीय मान के प्रयोग के लिये कई उदाहरण दिये हैं और ज्या सारणी (Sin Table) के निर्माण की विधि दी हुई है। उनकी एक कृति 'गोविन्दकृति' थी जो 'आर्यभटीय' के क्रम में रचित गणितीय ग्रन्थ था। किन्तु अब यह अप्राप्य है। शंकरनारायण (869 ई), उदय दिवाकर (1073ई) तथा नीलकण्ठ सोमयाजि ने गोविन्दस्वामी को अनेक बार उद्धृत किया है।
इनकी रचनाएं -
१- महाभास्करीयम्- परमेश्वरन ने इसकी सिद्धान्तदीपिका नाम से टीका लिखी है।
१- महाभास्करीयम्- परमेश्वरन ने इसकी सिद्धान्तदीपिका नाम से टीका लिखी है।
२- मुहुर्तरत्नम्- परमेश्वरन ने इसकी मुहुर्तरत्न व्याख्या नाम से टीका लिखी है।
जिसे आज द्वितीय कोटि (सेकेण्ड आर्डर) का 'न्यूटन-गाउस अन्तर्वेशन सूत्र' (Newton-Gauss interpolation formula) कहते हैं वह मूलतः गोविन्दस्वामी का ही दिया हुआ है।
अंतर्वेशन (Interpolation) का अर्थ है, किसी गणितीय सारणी में दिए हुए मानों के बीच वाले मानों को ज्ञात करना। अंग्रेजी शब्द इंटरपोलेशन का शाब्दिक अर्थ है - 'बीच में शब्द बढ़ाना' या किसी के वर्ग या समूह के बीच में उसी तरह की और कोई चीज बाहर से लाकर जमाना, बैठाना या लगाना।
अंतर्वेशन (Interpolation) का अर्थ है, किसी गणितीय सारणी में दिए हुए मानों के बीच वाले मानों को ज्ञात करना। अंग्रेजी शब्द इंटरपोलेशन का शाब्दिक अर्थ है - 'बीच में शब्द बढ़ाना' या किसी के वर्ग या समूह के बीच में उसी तरह की और कोई चीज बाहर से लाकर जमाना, बैठाना या लगाना।
विशेष-
वो हमें पिछड़ा कहते है। लेकिन भूल जाते है कि जब पश्चिमी सभ्यताए 5000 साल पहले जंगलों से बाहर निकलने की कोशिश कर रही थी, हम हड़प्पा जैसी सुदृढ संस्कृति विकसित कर चुके थे। श्री सी.वी. रमन ने सन् 1949 में प्रयाग में एक विज्ञान महाविद्यालय के दीक्षांत समारोह में विद्यार्थियों को संबोधित करते हुए जो कहा था, उन वाक्यों पर आज देश में हर एक व्यक्ति को विचार करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा- ‘छात्रों, जब हम कहीं से आयात करते हैं तब हम न केवल अपने अज्ञान की कीमत चुकाते हैं अपितु हम अपनी अक्षमता की भी कीमत चुकाते हैं।'
हम आज पूर्णतया आज पश्चिमी खोजो पर निर्भर हो गये है, जबकि हम खुद सक्षम है। लेकिन नही, हम तो ठप्पे पर यकीन करेंगे। शून्य और दशमलव तो भारत की देन हैं ही, कहते हैं कि यूनानी गणितज्ञ पाइथागोरस का प्रमेय भी भारत में पहले से ज्ञात था। लेकिन, यह ज्ञान समय की धूल के नीचे दबता गया। पश्चिमी चोर जिनके ठप्पे के बिना आज कोई भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण झूठा ही माना जाता है, इनके नींव के पत्थर हमारे ही वैदिक साहित्य के ऋषि मुनि है, जिनके किये अविष्कार और खोज को अपने नाम से इन चोरों ने प्रचारित प्रसारित किया है। फिर मिलते है इन चोरों के नए कारनामे को लेकर।
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