भाजपा अध्यक्ष अमित शाह "संपर्क फ़ॉर समर्थन" में कुलदीप नैयर से मिलाप |
“संपर्क फॉर समर्थन” के तहत कुलदीप नैयर से भाजपा नेता मिलने गए, तब अटपटा लगा था। एक आदतन हिन्दू-विरोधी, इस्लाम-परस्त और पाकिस्तान-प्रेमी पत्रकार के पास इतने बड़े हिन्दू-राष्ट्रवादी क्या पाने गए थे? जिसे देश-विदेश में कश्मीर पर आई.एस.आई. के पैसे से चल रही भारत-विरोधी गतिविधियों में शामिल होने में कोई संकोच नहीं, उससे मिल कर संदेश क्या दिया गया? उस से तो सौ गुना अच्छा, देश-हित कारी होता यदि वे अरुण शौरी से मिलने जाते। चलो, खैर... बड़े लोगों की बड़ी बातें। परन्तु नैयर ने इस भेंट पर लेख ही लिख दिया, तो चोट फिर हरी हो गई। नैयर ने भिंगाकर जूते मारने जैसा लिखा है! तमाम हिन्दू-विरोधी लफ्फाजी दुहराई, आर.एस.एस. शासन को ‘अशुभ’ बताया और भाजपा नेता को उपदेश दिया कि मस्जिदें न तोड़ा करो, विभाजन की राजनीति न करो, वगैरह वगैरह।
सीताराम गोयल ने दशकों पहले भाजपाइयों को समझाया था… सवाल करने का काम करो, सफाई देने का नहीं! उन्होंने हिन्दुओं और मुसलमानों से संबंधित नीति सुधारने के सदर्भ में यह कहा था। वही बात भाजपा बनाम अन्य नेहरूवादी, समाजवादी दलों के लिए भी सही है। मुसलमान शिकायत करते रहते हैं। हिन्दू सफाई देते रहते हैं। उसी तरह, सभी दल भाजपा पर आरोप लगाते रहते हैं। भाजपा सफाई देती रहती है, कि हम तो सब के हैं, सब का विकास साथ चाहते हैं, मतलब कि आप जैसे ही हैं, भले, मेहनती हैं, हमें गलत न समझो। कुछ यही नैयर को जाकर कहा गया। जबाव में, व्यंग्य आरोप और नसीहतें मिलीं। यही मिलती थी अडवाणी, वाजपेई को। क्योंकि यह संगठन नहीं, बुद्धि की बात हैः क्या करना, क्या नहीं करना। इस्लामियों ने रास्ता निकाला था:- “इस से पहले कि कोई तुम से तुम्हारे पापों का हिसाब माँगे, उस पर ढेर सी शिकायतें जड़ दो। आरोप लगाओ। रोओ-गाओ। बस, वह सफाई देने में लग जाएगा और तुम्हारे पाप छिपे रहेंगे।”
भारतीय राजनीति में पिछले सौ साल से यही हो रहा है। गाँधीजी ने इसे शुरू किया। नेहरूजी ने इसे राजकीय सिद्धांत बनाया। कम्युनिस्टों ने उसे धार दी, और समाजवादी-गाँधीवादी सब वही रटने लगे। इस प्रकार, स्वतंत्र भारत में भी - चाहे हिन्दुओं को हीन नागरिक बना डाला गया, कश्मीर से हिन्दू मार भगाए गए, मुसलमानों ने जब चाहे सड़क पर दंगे करना अपना विशेषाधिकार बना लिया, यहाँ से लेकर बंगलादेश, पाकिस्तान तक सैकड़ों हिन्दू मंदिर तोड़ डाले गए, लाखों-लाख हिन्दू मार डाले गए, जबरन धर्मांतरित कराए गए – पर क्या मजाल कि हिन्दू पूछे कि हमारे साथ यह क्या हुआ है?
Met veteran journalist and former member of Rajya Sabha, Shri Kuldip Nayar ji, as part of 'Sampark For Samarthan'. Glad to see his energy level even at this age. Discussed with him several transformative initiatives & unprecedented work done by Modi govt in the last 4 years. pic.twitter.com/hEHH8maW6M— Amit Shah (@AmitShah) June 9, 2018
वही हाल हमारी पार्टियों का है। चाहे उन्होंने सेक्यूलरिज्म के नाम पर संविधान को विकृत कर डाला, सरकारी धन की लूट-बाँट नियमित धंधा बना लिया, जातिगत, भाषाई, क्षेत्रीय, हर आधार पर हिन्दुओं को तोड़ने की नीति गढ़ ली, कानून, नैतिकता सब ताक पर रख इस्लाम-परस्ती को संविधान से भी ऊपर बना डाला, शिक्षा-संस्कृति तहस-नहस करते गए...। मगर भाजपा महानुभावों को उन पापियों से प्रश्न पूछना और उन्हें जबाव देने पर विवश करना न सूझा। समझाने पर भी नहीं। कि उन मूर्खों/ मक्कारों से पूछे कि तुम्हारे झूठे सेक्यूलरिज्म ने देश का क्या हाल किया है? कि हिन्दू अपने विरुद्ध भेद-भाव, अपनी पीड़ा के प्रश्न उन से पूछें जो इस के कारण हैं। उलटे, भाजपा मेहनत से नेहरूवादी, सेक्यूलर-वामपंथी नारों को ही लागू करने में लग गई, ताकि सब कहें कि ओह, ये कितने अच्छे लोग है! गरीबों, मुसलमानों, मिशनरियों, पोप, सूफियों, यानी सब का ख्याल करते हैं। एक जिस का ख्याल करने की जरूरत नहीं, वे हैं हिन्दू, जिन्हें न कोई समस्या, न शिकायत है। वैसे भी, ये जाएंगे कहाँ?
अरुण शौरी कहाँ जाएंगे ?
सचमुच, अरूण शौरी कहाँ जाएंगे, उन से मिलने की जरूरत नहीं! क्या किया है उन्होंने? ठीक है, उन्होंने साहसपूर्वक देश के हिन्दू-विरोधी अकादमिक, मीडिया वातावरण पर ऊँगली रखने में अग्रदूत की भूमिका निभाई। कम्युनिस्टों की धूर्त्तता, चर्च की अनुचित गतिविधियों और इस्लामी राजनीति की कुटिलता प्रमाणिक रूप से उघाड़ी। बेलगाम भ्रष्टाचार और सेक्यूलरवाद के गठबंधन का पर्दाफाश किया। आर.एस.एस-भाजपा पर मनमाने लांछन लगाने की आदत पर चोट की। अपनी बुद्धि, विद्वता और परिश्रम के बल पर। सब से बढ़ कर, शौरी ने इस्लाम पर उस महत्व का काम किया, जो स्वामी दयानन्द सरस्वती, राम स्वरूप और सीताराम गोयल के सिवा यहाँ किसी ने व्यवस्थित रूप से नहीं किया था। पर इन सब से क्या? शौरी ने संगठन, पार्टी और उन के नेताओं की जी-हुजूरी तो नहीं की। इसलिए, उन का सारा सामाजिक काम बेमानी रहा! उन से मिल कर विचार-विमर्श कौन कहे, उलटे उन पर थू-थू, छिः-छिः हुई कि वे पद-लोभी हो गये हैं।
हाँ, कुलदीप नैयर की बात और है!
ये बहुत बड़े हैं, विरोधी दुनिया में इन की पूछ है। सो, यह अच्छी ‘रणनीति’ रहेगी कि इन से वार्ता हो। साथ फोटो छपे। तब प्रचार हो सकेगा कि हम तो सब के साथ हैं, सब हमारे साथ हैं। और क्या चाहिए! किन्तु क्या नैयर वोट दिलाएंगे? आखिर भाजपा को वोट कौन देता है? कुछ पारंपरिक हिन्दू-भावी और संघ-भाजपा कार्यकर्ताओं के प्रचार से पंद्रह-बीस प्रतिशत पक्के मतदाता। पर लगभग उतने ही कांग्रेस, मायावती, लालू, मुलायम, जैसे दलों के भी पक्के वोट हैं। इसलिए मुक्त पाँच-दस प्रतिशत, जो किसी पार्टी का बंधक नहीं, वह जब जिसे वोट देता है, उसे बढ़त मिलती है (गठबंधन वाली स्थिति अलग है)। इसी में किसी नेता/ दल की हवा बनाने, बिगाड़ने वाले भी हैं। तो क्या नैयर से मिलना इन्हें प्रभावित करेगा? संभवतः नहीं। वह बहुत कुछ देखता है, केवल नाटक नहीं। इसीलिए, संगठन निर्णायक चीज नहीं है। सकर्मक लोग और सुबुद्धि उस से बड़ी चीज है। वैसे भी, जब कोई राजनीतिक संगठन बहुत बड़ा बन जाए, तब उस की अपनी दुनिया, ढर्रा, जरूरतें, निहित स्वार्थ, जड़ता, विवशता, आदि हो जाती है। इसलिए भी वह सुबुद्धि के सामने छोटा है।
कुलदीप नैयर के पास कौन सा संगठन है? तब 9 करोड़ सदस्यों का दंभ भरती पार्टी के प्रमुख उन के दरवाजे क्यों गए? क्यों नहीं कभी नैयर ही उन से मिलने चले गए, ‘ऐसे ही’ जिसे कहा जाता है। यानी कुछ लेने-पाने को। यह उलटा क्यों घटित हुआ? एक बड़े पत्रकार के पास करोड़ों वाली पार्टी के नेता क्यों गए? जरूर उन का विशाल संगठन किसी कमी की पूर्ति नहीं कर पा रहा है। वह कौन सी चीज है? सुबुद्धि, सुनीति का विकल्प संगठन नहीं है। आखिर नुरूल हसन से लेकर सैयद शहाबुद्धीन तक ने बिना किसी संगठन के बेजोड़ सफलताएं हासिल कर दिखाई। शहाबुद्धीन को अटल बिहारी वाजपेई लाए और सीधे राज्य-सभा सदस्य बनाया! मात्र बुद्धि से शहाबद्दीन न केवल ऊँचे पहुँचे, मुस्लिम राजनीति को बलशाली बनाया, बल्कि विविध सत्ताधारियों से एक से एक बड़े दूरगामी फैसले करवाए।
संगठन-जापी राष्ट्रवादियों ने अब तक क्या किया ?
और इन ‘संगठन’-जापी राष्ट्रवादियो ने अब तक क्या हासिल किया? वही, मात्र और संगठन, और कुछ कार्यालय, और कुछ भवन, और कुछ सदस्य, और सम्मेलन, समारोह, चिंतन-बैठकें.... और ‘अपने’ बड़े-पदधारी तथा अनेक सरकारें। मगर वे क्या करती रही हैं? रुटीन शासन, लच्छेदार भाषण और खाली जुमलों, आदि के अलावा शहाबुद्दीन, फारुख उमर अब्दुल्ला, अमर्त्य सेन, सूफियों और राजदीप सरदेसाई से लेकर कुलदीप नैयर तक की इज्जत-आफजाई! निस्संदेह, ऐसी इज्जत के हकदार अरूण शौरी या अन्य हिन्दू विद्वान भी नहीं हैं! इन ‘रणनीति’-बहादुर राष्ट्रवादियों से इज्जत पाने की कुंजी है, हिन्दू-विरोधी, सेक्यूलर-वामपंथी बनना और संघ-भाजपा से द्वेष रखना। इतिहास यही दर्शाता है। इस प्रकार, भाजपा सचेत अचेत रूप से हिन्दू-विरोधी सेक्यूलरवाद को और प्रतिष्ठित करती रही है। कुलदीप नैयर को सलामी देना, उन का रुतबा बढ़ाना और बदले में नसीहत सुनना उसी क्रम में है।
★ शंकर शरण
Twitter : @hesivh
(मूलत: जमालपुर, बिहार के रहनेवाले। डॉक्टरेट तक की शिक्षा। राष्ट्रीय समाचार पत्रों में समसामयिक मुद्दों पर अग्रलेख प्रकाशित होते रहते हैं। 'मार्क्सवाद और भारतीय इतिहास लेखन' जैसी गंभीर पुस्तक लिखकर बौद्धिक जगत में हलचल मचाने वाले शंकर जी की लगभग दर्जन भर पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।)