मोदी को न चाहने वाले तो भाजपा में 2014 से पहले से ही थे

नरेंद्र मोदी को प्रधनमंत्री पद घोषणा पर सुषमा स्वराज का विरोध
मोदी को न चाहने वाले तो भाजपा में 2014 से पहले से ही थे। सुषमा ताई ने 2013 में ये खुद कहा था कि “मोदी को इतनी जल्दी पीएम घोषित नहीं करना चाहिये।”

जब मोदीजी को प्रधानमंत्री बनाना सबकी मजबूरी हो गयी
हमें ये भी याद है कि कैसे उस समय समीकरण बन रहे थे कि “यदि 150-200 सीटें आयीं तो कौन पीएम बनेगा, 200-250 आयी तो कौन बनेगा।” उस पर कमाल ये था कि इतनी सीटें भी ये मोदी के नाम पर ही लाना चाहते थे और फिर मोदी को चाय में पड़ी मक्खी की तरह निकाल देना था कि तुम तो साम्प्रदायिक हो, तुम्हारे नाम पर कोई गठबंधन नहीं करेगा। लेकिन जब अपेक्षा से भी अधिक पूर्ण बहुमत आ गया तो सब के सब सहम गये। मोदीजी को प्रधानमंत्री बनाना सबकी मजबूरी हो गयी।

पासवान की तरह (सरकार किसी की बने, केबिनेट मंत्री वो बनते ही बनते थे) ही बांकी सबने सोचा कि गठबंधन कर लो, कुछ तो मिलेगा सत्ता में तो रहेंगे। लेकिन झटका लगना तब शुरू हुआ जब मोदी ने कहा दिया कि ना खाऊंगा और ना खाने दूंगा। जो लोग मलाई चाटने की वजह से सरकार बनने से खुश थे, उनके दिल टूट गये। इसके बाद उन लोगों को दिल टूटे जिन्हें लगता था कि मोदी हमारी तो सुनेगा ही, और जैसा हम (सही-गलत) कहेंगे, वो तो करेगा ही। वहां भी मोदी ने वही किया जो मोदी को लगता था कि यह सही है।

सबसे पहले बुजुर्गों को मार्गदर्शन मंडल में बैठा दिया कि आपके समय से बहुत घटिया किस्म की राजनीति चलती आ रही है, जिससे उसी तरह निपटना पड़ता है। आप लोगों की दखल काम बिगाड़ेगी, उसका नतीजा 20 राज्यों में भाजपा की सरकार आ गयी। इसके बाद उन गुटों (तोगड़िया जैसे) को धक्का लगा जो सोच रहे थे कि आज तक विरोधियों की दबंगई चलती थी, अब हम भगवा गमछा डाल इन्हें बतायेंगे कि सरकार हमारी है। परन्तु वहां भी इन पर लगाम लगा दी गयी। नतीजा एक और धड़ा गुस्सा। इसके बाद वो कार्यकर्ता जो सोंचते थे कि अब तो ठेंके अपने को मिलेंगे और अपन पैसे बनायेंगे, लेकिन मोदी ने कहा कि ट्रांसपेरेंसी होगी। साथ ही बिचौलिये आदि भी कोई नहीं बनेगा तो एक धड़ा यहां और नाराज हो गया।

विरोधियों पर भारी वो थी नोटबंदी
इसके होते ही सब पागल हो गये उसमे क्या भाजपा और क्या अन्य दल ये सबकी जमा पूंजी पर भयानक चोट थी, ऊपर से ये तुर्रा कि मोदी ने बिना किसी को बताये अचानक नोटबंदी कैसे कर दी। इस नोटबंदी ने अच्छों-अच्छों की चूलें हिलाकर रख दीं लोगों के चुनाव हिल गये। इसके बाद उस पैसे का पीछा करते हुये तरह तरह के बैरियर बनते गये जो आज तक बने हैं और नये-नये बनते जा रहे हैं। आज का सत्य यह है कि तुम आज के मनुष्य से उसकी आस्था छीन लो तो चलेगा लेकिन उससे उसका पैसा मत छीनों। और रही बची कसर तब पूरी हो गयी जब जीएसटी लागू हो गयी, जिसे अब तक टालने का भरपूर प्रयास किया जा रहा था।

लोगों का अर्थ-तंत्र टूटते ही वो पागल हो गये
कांग्रेस ने तो ये तक स्वीकार लिया था कि यदि कर्नाटक हारे तो हमारे पास 2019 लड़ने के पैसे तक नहीं होंगे। यूं ही सरकार बनने को लड़ाई नहीं हुई कर्नाटक में। अब हर कोई चाहता है कि आडवाणी जी, आपका हिंदुत्व वाला भाजपा फिर भी ठीक था, अटल जी वाली भाजपा सरकार बहुत अच्छी थी। आप हिंदुत्व करते थे, हम सेकुलरिज्म। लेकिन आपके चेले ने तो हमारी कमाई पर हमला कर दिया है, ये बर्दाश्त नहीं। इसलिये अब ये तो नहीं कह सकते कि आर्थिक रूप से हम लुट चुके हैं कंगाल हो चुके हैं।

मोदी शाह की जोड़ी को हटाओ हमें आप मंजूर
NPA वसूलने के नाम पर हमें यहां वहां रगड़ा जा रहा है, हमारी कंपनियां बंद करवाई जा रही है, उन्हें बेंचा जा रहा है, हमारे हवाले के सारे रास्ते बंद हैं और ऊपर से हम पर केस भी चल रहे हैं जिसमे हम कभी भी अंदर जा सकते हैं। हमे तो लगा था कि आपका चेला भी हमारे चेले केजरी की तरह सिर्फ सबूतों का ड्रामा करेगा और फिर चुप हो जायेगा लेकिन वो तो जिस एजेंडे पे आया था, उस पर बरकरार है। अब हमारे जो अधिकारी आज भी मंत्रालय में हैं वो कितना और कहां तक रोकेंगे, आप लोग कुछ करिये, भले ही 2019 में आप लोग सरकार में आ जाना, लेकिन इस मोदी शाह की जोड़ी को हटाओ हमें आप मंजूर हैं, लेकिन ये किसी भी हाल में नहीं।

तो जैसे शुरू में कहा कि मोदी को तो कोई नहीं चाहता था। तो वो नफरत मोदी के प्रति आज भी है। मोदी ने तो सबको सम्मान दिया, उचित पद दिया। लेकिन किसी को वित्त में पकड़ चाहिये थी तो किसी को किसी अन्य में। ताकि मोदी चाहकर भी कुछ न कर सके और पब्लिक अंत में सारा गुस्सा मोदी पर निकाले।

मोदी के दुश्मन उनकी सरकार में ही बैठे हैं
सुब्रमण्यम स्वामी भी तो यही कहते हैं कि मोदी के दुश्मन उनकी सरकार में ही बैठे हैं। अब सबका मकसद है मोदी को कैसे भी हटाओ। कोई और "भाजपा सरकार" बना ले लेकिन मोदी नहीं। तो फिर क्या बहाना बनाकर हटायें..?? क्योंकि उपरोक्त बातें बाहर आयेंगी तो मोदी का कद और बढ़ेगा, तो कहो कि मोदी ने अपने कोर मुद्दे छोड़ दिये हैं। मोदी तो सेक्युलर हो गया है। उसके एक लाख काम मे से कोई एक सेक्युलर वाला काम दिन भर मीडिया में चलाओ और बताओ कि मोदी तो हिंदुओ को चिढ़ा रहा है। उसने नैतिकता तक त्याग दी है।

अपने गिरोह के मंत्रियों से वो काम करवाओ जिससे मोदी की छवि को नुकसान हो। फिर फेसबुक में अपने गिरोह के बड़े चेहरों से लिखवाओ कि बिना मोदी की परमीशन के तो सरकार में कुछ नहीं होता, इसलिये जो कुछ भी कर रहा है, वो मोदी ही कर रहा है। धीरे धीरे इसे यहां लाओ कि हम भाजपा को आज भी प्यार करते हैं, लेकिन ये मोदी पाखंडी है, हमें ये नहीं चाहिये। क्योंकि मोदी के हटते ही सबकी राजनीति वापस अपनी पटरी पर लौट आयेगी, फिर भले ही सरकार भाजपा की क्यों ना हो। मोदी का कांग्रेस मुक्त हर हाल में रोंकना है।

ये मोदी दीर्घकालिक राजनीति पर काम कर रहे है। जबकि राजनिति तो ऐसी होती है कि 5-10 साल तुम खाओगे और फिर 5-10 साल हमें खाने दो। याद कीजिये अटल जी का 2001 का वो इंटरवयू जिसमें उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री होते हुये भले ही मेरे आस पास भीड़ है लेकिन फिर भी मैं अकेला हूं। बस कैसे भी यही हाल मोदी का भी करना है। क्योंकि 2019 हम सबके लिये भी अंतिम अवसर है और समस्त मोदी विरोधियों के लिये भी ये अंतिम अवसर है।



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