भीमबैठका में भित्तिचित्र |
भीमबेटका (भीमबैठका) पाषाण आश्रय स्थल एक आर्कियोलॉजिकल साईट और पाषाण काल और भारतीय उपमहाद्वीप में प्राचीन जीवन दृष्टी को दर्शाने वाली जगह है, और यही से दक्षिणी एशियाई पाषाण काल की शुरुवात हुई थी। यह भारत के मध्य प्रदेश राज्य के रायसेन जिले में स्थित है और रातपानी वाइल्डलाइफ अभ्यारण्य के पास ही अब्दुलगंज शहर के समीप है। यहाँ पर स्थापित कुछ आश्रय "सीधे पैर पर खड़े हुए व्यक्तियों" (होमो एरेक्टस) द्वारा 1,00,000 साल पहले हुए बसाये हुए है। भीमबेटका में पायी जाने वाली कुछ कलाकृतियाँ तो तक़रीबन 30,000 साल पुरानी है। यहाँ की गुफाये हमें प्राचीन नृत्य कला का उदाहरण भी देती है। 2003 में इन गुफाओ को वर्ल्ड हेरिटेज साईट घोषित किया गया था।
भीमबेटका नाम महाभारत के पराक्रमी हीरो भीम से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है की भीमबेटका शब्द की उत्पत्ति भीमबैठका से हुई थी जिसका अर्थ “भीम के बैठने की जगह” से है।
भीमबेटका में पेंटिंग करते हुए व्यक्ति की सिलामुर्ति |
भीमबेटका पाषाण आश्रय स्थल मध्यप्रदेश के रायसेन जिले के ओबेदुल्लागंज शहर से 9 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है और विन्ध्य पहाडियों की दक्षिण किनारों से भोपाल की तरफ से 45 किलोमीटर की दुरी पर स्थित है। इस आश्रय स्थल के दक्षिण में मनमोहक सतपुड़ा पहाड़ी है। यह पूरा क्षेत्र मोटी वनस्पति से घिरा हुआ है। यहाँ प्रचुर मात्रा में पानी, प्राकृतिक आश्रय स्थल, हरा-भरा जंगल और शुद्ध वातावरण है। अक्सर लोग इस जगह की तुलना ऑस्ट्रेलिया के ककाडू नेशनल पार्क से करते है।
खोज –
यूनेस्को ने ही अपनी रिपोर्ट में भीमबेटका की रॉक आश्रय स्थलों को वर्ल्ड हेरिटेज साईट घोषित किया था। भीमबेटका का सबसे पहले 1888 में भारतीय आर्कियोलॉजिकल रिकार्ड्स में बुद्ध लोगो की जगह के नाम से वर्णन किया गया था, जिसे स्थानिक लोगो से जानकारी लेकर ही घोषित किया गया था। बाद में डॉक्टर विष्णु श्रीधर वाकणकर जब ट्रेन से भोपाल का सफ़र तय कर रहे थे तब उन्होंने स्पेन और फ्रांस में रॉक से बने धरोहरो को यात्रा के दौरान देखा। फिर उन्होंने उस जगह को देखना चाह और 1957 में अपनी आर्कियोलॉजिस्ट टीम के साथ भीमबेटका पहुचे।
तब से लेकर आज तक वहाँ तक़रीबन 750 से ज्यादा आश्रय स्थल खोजे जा चुके है, जिनमे से 243 भीमबेटका समूह में है। आर्कियोलॉजिकल सर्वे में यह भी पता चला है की यहाँ पत्थर की बनी दीवारे दुनिया की सबसे प्राचीन दीवारों में से एक है। बरखेडा को लोग कच्चे माल के लिये जाने जाते थे, वहा से लोग अपने कामो के अनुसार कच्चा माल ले जाते थे और ऐसा करते-करते ही बाद में भीमबेटका की खोज की गयी।
भीमबेटिक में भित्तिचित्त |
रॉक आर्ट और पेंटिंग –
भीमबेटका की गुफाओ और आश्रय स्थलों में बहुत सी पेंटिंग्स है। जिनमे से सबसे प्राचीन पेंटिंग तक़रीबन 30,000 साल पुरानी है लेकिन कुछ लोगो के अनुसार यह पेंटिंग इतनी पुरानी है। उस समय की पेंटिंग बनाने में उन्होंने सब्जियों के रंगों का उपयोग किया था और वे आश्रय स्थलों और गुफाओ की अंदरूनी और बाहरी दीवारों पर ही तस्वीरे बनाते थे।
उनकी ड्राइंग और पेंटिंग को 7 भागो में बाँटा गया है–
पहला काल (पूरापाषाण युग-Paleolithic Age)
यह एक रैखिक प्रतिनिधित्व था, जिनमे हरे और गहरे लाल रंगों की रेखाओ की सहायता से जानवरों के छायाचित्र बनाये जाते थे।
दुसरा काल (मध्य पाषाण युग- Mesolithic Age)
पहले पीरियड की तुलना में यह थोडा छोटा था और इस समय में लोग अपने शरीर पर रैखिक कलाकृतियाँ बनाते थे। लेकिन इसमें लोग जानवरों की कलाकृतियों के साथ-साथ शिकार करने के स्थल, अस्त्र-शस्त्रों की कलाकृतियाँ भी बनाते थे। साथ ही दीवारों पर पक्षी, नृत्य कला, संगीत वाद्य यंत्र, माताए एवं बच्चे और गर्भवती महिलाओ की कलाकृतियाँ बनायी जाती थी।
तीसरा काल (ताम्र पाषाण युग-CHALCOLITHIC)
भीमबेटिक का गुफा द्वार |
इस प्रकार की पेंटिंग की खोज गुफाओ की खुदाई के समय में की गयी थी, जिनमे खेती करने वाले लोग अपने सामान की कलाकृतियाँ बनाते थे और इस समय में ज्यादातर लोग ताम्र पाषाण युग पेंटिंग को ही प्रधनता देते थे।
चौथा और पाँचवा काल (प्रारंभिक एतिहासिक- INITIAL HISTORICAL)
चौथा और पाँचवा काल (प्रारंभिक एतिहासिक- INITIAL HISTORICAL)
इस समूह के लोग अक्सर खुद को कलाकृतियों से सजाकर रहते थे और मुख्यतः लाल, सफ़ेद और पीले रंगों का उपयोग करते थे। इस समूह के लोग अपने शरीर पर धार्मिक चिन्ह गुदवाते थे। धार्मिक मान्यताओ के अनुसार वे यक्ष का प्रतिनिधित्व करते थे। इस समूह के लोग पेड़ो पर भी कलाकृतियाँ करते थे और खुद को हमेशा सजाकर रखते थे। इस समूह के लोगो ने पेंटिंग को लोगो के बीच काफी प्रचलित किया था।
छठा और सांतवा काल (मध्यकालीन- MEDIEVAL HISTORICAL)
इस समूह की पेंटिंग्स ज्यामितिक रैखीय और ढ़ांच के रूप में बनी होती थी लेकिन इस समूह के लोग अपनी कला में अधः पतन और भोंडापन दिखाते थे। इस समूह के लोग गुफा में रहते थे और मैंगनीज, हेमटिट और कोयले से बने रंगों का उपयोग करते थे।
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