खुदाई में मिला रथ |
खोदाई में मिले रथ ने नई बहस छेड़ी, अंग्रेजों की आर्य थ्योरी को झुठलाया। पहली बार सिंधु घाटी सभ्यता और कॉपर होर्ड का सामंजस्य आया सामने।
उत्तर प्रदेश के बागपत के सिनौली गांव में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआइ) की खोदाई में कुछ ऐसे प्रमाण मिले हैं, जो अंग्रेजों के लिखे इतिहास को बदल सकते हैं। भारत निर्माण और इसके पुरातात्विक महत्व को लेकर अब तक दिए गए तमाम तर्को को सिनौली की मिट्टी झुठला रही है। उत्खनन में पहली बार सिंधु घाटी सभ्यता और कॉपर होर्ड कल्चर (ताम्रयुगीन संस्कृति) का सामंजस्य सामने आया है। एक ही स्थान पर दोनों ही सभ्यताओं के चिह्न के मेल ने हमारे वेद-ग्रंथों की बात पर मुहर लगा दी है। तांबे और लकड़ी से रथ के साथ सिंधु घाटी सभ्यता के निशानों ने अंग्रेजों की “आर्य थ्योरी” को गलत साबित किया है। इन प्रमाणों के सहारे अब नए सिरे से इतिहास लिखने की बहस छिड़ गई है।
एएसआइ की नजर में खोदाई में मिले सामान लगभग चार से पांच हजार वर्ष पूर्व के हैं, लिहाजा अंग्रेजों का भारत पर आर्यो के आक्रमण और उनके द्वारा यहां पर नई सभ्यता की स्थापना के दावे धूल में मिल गए हैं। मिट्टी के नीचे दबे प्रमाणों के बाहर आने से यह अब साफ हो गया है कि आर्यो के आने से कम से कम तीन हजार वर्ष पूर्व हमारे पूर्वज रथ बना चुके थे और उस समय की “रॉयल फैमिली” तांबे का भरपूर उपयोग करती थी।
सेंटर फॉर आर्म्ड फोर्सेज हिस्टोरिकल रिसर्च, नई दिल्ली के फेलो डॉ. अमित पाठक का कहना है कि “अंग्रेजों ने अभी तक यह साबित किया था कि आर्यो ने 1500-2000 वर्ष ईसा पूर्व भारत पर हमला किया। वे रथ से आए और यहां की सभ्यता को रौंदते हुए नई सभ्यता की नींव रखी। उनका दावा था कि आर्यो के आने से पहले तक यहां बैलगाड़ी थी, घोड़ागाड़ी नहीं, जबकि इस खोदाई में मिले रथ ने यह साबित कर दिया है कि रथ हमारे यहां लगभग पांच हजार वर्ष या उससे भी पहले से हैं।”
ये प्रमाण नए इतिहास को सृजित कर रहा
सिनौली की खोदाई में मिला रथ ही पुरातत्वविदों और इतिहासविदों को ऊर्जावित कर रहा है। एएसआइ के सुपरिटेंडेंट आर्कियोलॉजिस्ट रहे कमल किशोर शर्मा कहते हैं कि “यह एक बड़ी डिस्कवरी है।” पुरातत्वविद् बी. लाल के साथ काम करने वाले केके शर्मा के अनुसार पूर्व में आर्कियो-जेनेटिक्स भी स्पष्ट कर चुकी है कि हमारे डीएनए, क्रोमोजोम में पिछले 12 हजार वर्ष में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। ऊपर से अब मिला यह आर्कियोलॉजिकल प्रमाण नए इतिहास को सृजित कर रहा है।
ये तथ्य भी पलट रहे अंग्रेजों की आर्य थ्योरी
शहजाद राय शोध संस्थान के निदेशक अमित राय जैन कहते हैं कि “वर्ष 2007 के दिसंबर में भी यहां 160 कंकाल मिले थे, जिनकी कॉर्बन डेटिंग के बाद स्पष्ट हुआ था कि ये लगभग चार से पांच हजार वर्ष पुराने हैं। ऐसे में रथ का यहीं से कंकालों के साथ मिलना अंग्रेजों की आर्य थ्योरी को पलट रहा है। एएसआइ को 2007 की भी समग्र रिपोर्ट जल्द सार्वजनिक करनी चाहिए। साथ ही इस खोदाई में मिले प्रमाण को भी वैज्ञानिक रूप से स्पष्ट करना चाहिए ताकि इतिहास में जो खामियां हैं, उन्हें सुधारा जा सके।”
इसलिए है दावे में दम
इतिहासविदों और पुरातत्वविदों का कहना है कि अब तक सिंधु घाटी की सभ्यता से जुड़ी सामग्री मसलन उस समय के चिह्न, मिट्टी के बर्तन, कंकाल, आभूषण और कॉपर होर्ड सभ्यता से जुड़ी सामग्रियां अलग-अलग जगहों पर तो मिलीं थीं, लेकिन अब तक कोई ऐसा मौका पहले नहीं आया था, जहां दोनों के चिह्न एक साथ मिले हों। सिनौली की खोदाई में तीन कंकाल, उनके ताबूत, आसपास रखी पॉटरी पर जहां सिंधु घाटी सभ्यता के चिह्न मिले हैं, वहीं लकड़ी के रथ में बड़े पैमाने पर तांबे का इस्तेमाल, मुट्ठे वाली लंबी तलवार, तांबे की कीलें, कंघी कॉपर होर्ड का प्रतिनिधित्व करती हैं। रथ के लकड़ी का हिस्सा तो मिट्टी हो चुका है, लेकिन तांबा जस का तस है। खोदाई में मिले ताबूत और उसके पास से मिले ये सामान प्रमाणित करते हैं कि यह शवाधान केंद्र किसी राजशाही परिवार का रहा होगा और वे लगभग पांच हजार पूर्व तांबे का प्रयोग करते थे। ऐसे में अंग्रेजों द्वारा गढ़ा गया यह इतिहास प्रथम दृष्टया मिथ्या प्रतीत होता है, जिसमे उन्होंने कहा है कि सिंधु घाटी सभ्यता के समापन के समय भारत में आर्यो का आक्रमण हुआ। उसके बाद आर्यो द्वारा यहां नए सिरे से एक सभ्यता गढ़ी गई और फिर नई-नई खोज और विकास हुआ।
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