राहुल गांधी के झूठ को सुप्रीम कोर्ट का तमाचा: जस्टिस लोया केस

Justic Loya

ये लोग कौन हैं..! जो जस्टिस लोया को इंसाफ दिलाने की खातिर सुप्रीम कोर्ट तक को चुनौती दे रहे हैं? चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को भला बुरा कह रहे हैं? क्या ये जस्टिस लोया के दोस्त हैं? रिश्तेदार है? कुंभ के मेले में बिछड़े हुए रिश्तेदार हैं? जस्टिस लोया के क्या लगते हैं? उनकी मौत के तीन साल बाद तक इनमें से कोई जस्टिस लोया को नहीं जानता था। जस्टिस लोया के परिवार वालों को मौत पर कोई संदेह नहीं है। वो कोर्ट में फरियादी नहीं है। तो अचानक ये गैंग कहां से पैदा हो गया?  आखिर कौन हैं ये लोग?


4 वर्ष बाद क्यो याद आये जस्टिस लोया ?
दरअसल, ये गैंग उन लोगों का है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का सिर्फ विरोध ही नहीं करते बल्कि घृणा करते हैं। सिर्फ घृणा होती तो भी कोई बात नहीं लेकिन इन लोगों पर तो मोदी और अमित शाह को नुकसान पहुंचाने का जुनून सवार है। ये जुनून इनके दिलो दिमाग पर इस कदर हावी है कि ये लोग मानसिक संतुलन खोने की कगार पर है। यही वजह है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद भी ये लोग वही रट लगा रहे हैं जो पिछले गुजरात चुनाव से अब तक ये लोग हर दिन दस बार दोहराते रहे हैं। अगर आप सुप्रीम कोर्ट के आदेश और फैसले को नहीं मानोगे तो फिर किसकी मानोगे? ये नहीं मानेंगे, क्योंकि ये वही गैंग है जो ‘भारत तेरे टुकड़े टुकड़े’ समर्थन करता है। उनके साथ खड़ा होता है और इस नारे को साबित करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ता। ये सब एक ही थाली के चट्टे बट्टे हैं। आपस में मिले हुए हैं। अलग-अलग मुखौटे लगा कर देश को गुमराह करते हैं, असलियत में ये लोग पॉलिटकल हिट-जॉब के माहिर है।


“जस्टिस लोया” के मौत की कहानी
जस्टिस लोया की मौत कहानी जरा सी भी उलझी हुई नहीं है। वो अपने चार साथी जज के साथ एक शादी में नागपुर गए थे। रात में उनके सीने में दर्द उठा, दिल का दौरा पड़ा, साथी जजों ने उन्हें कार से हॉस्पीटल लेकर गए। वहां उचित व्यवस्था नहीं थी तो फिर उन्हें दूसरे हॉस्पिटल में ले जाया गया। चारो जज साथ में थे, लेकिन दूसरे हॉस्पिटल पहुंचने से पहले वो अपने साथियों के बाहों में दम तोड़ दिया, उनकी मौत हो गई। जस्टिस लोया की मौत 1 दिसंबर 2014 को हुई थी। चार साल तक कोई इंसाफ के लिए दरवाजा नहीं खटखटाया।

गुजरात चुनाव में जस्टिस लोया याद आये
गुजरात चुनाव के ठीक पहले जब चुनाव प्रचार चरम पर था. तब इस गैंग ने जस्टिस लोया की मौत को संदिग्ध बता कर प्रोपेगैंडा शुरु किया। इस गैंग ने इस मामले अमित शाह का नाम घसीटा। किसी ने मैगजीन में आर्टिकल लिखा। कोई विदेशी वेबसाइट में कहानियां गढ़ी। कुछ  अखबार में छपी हुई रिपोर्ट को फिर से छापा गया। कहीं सेमीनार तो कहीं कैंडिल मार्च। फिर, राहुल गांधी ने इसे चुनावी रैलियों में प्रचारित करना शुरु कर दिया। क्लासिक... लेकिन नैकेड प्रोपैगैंडा का ये सटीक उदाहरण बन गया। सोशल मीडिया पर मोदी विरोधी पैदल-सेना ने बड़ा अहम रोल निभाया..। बिना सच्चाई जाने जस्टिस लोया की मौत संदिग्ध है और इसमें अमित शाह का हाथ है ये कहना शुरु कर दिया। एक कांस्पिरेसी थ्योरी गढ़ी गई। ये प्रचार किया गया कि जस्टिस लोया की मौत संदिग्ध है क्योंकि सोहराबुद्दीन एनकाउंटर केस की सुनवाई जस्टिस लोया कर रहे थे जिसमें अमित शाह आरोपी थे। शक अमित शाह पर इसलिए क्योंकि उनकी मौत के बाद नियुक्त हुए नए जज ने अमित शाह को बरी कर दिया।

इंडियन एक्सप्रेस ने टुकड़े-गैंग को नंगा किया
थ्योरी तो अच्छी थी लेकिन साक्ष्य नहीं थे। सबसे पहले इंडियन एक्सप्रेस ने एक रिपोर्ट छापी और इस प्रोपेगैंडा को खारिज कर दिया। कई टीवी चैनलों ने भी इसकी पड़ताल की, सब एक नतीजे पर पहुंचे कि ‘भारत तेरे टुकड़े गैंग’ की थ्योरी झूठी है। उनकी मौत हार्ट अटैक से हुई है, उन्हें जहर नहीं दिया गया। इस बीच इस गैंग द्वारा दायर PIL की सुनवाई शुरु हो चुकी थी, कोर्ट में बहस की जगह झगड़े होने लगे। इस गैंग को समझ में आ गया था कि उनके पास सबूत नहीं है तो जजो पर ही आरोप लगाने शुरु कर दिए। प्रशान्त भूषण ने सुप्रीम कोर्ट के न्यायधीशों की नियत पर सवाल उठाए लेकिन गैंग के दूसरे वकील दुष्यन्त दबे ने तो हद ही कर दी। दवे ने ये दिखाने की कोशिश की कि सुप्रीम कोर्ट भी अमित शाह के इशारे पर काम कर रही है। इस दौरान मीडिया में और भी खुलासे हुए जिससे इस गैंग की कलई पूरी तरह खुल चुकी थी।


2019 लोक सभा चुनाव पर मोदी-शाह निशाने पर थे
सुप्रीम कोर्ट का फैसला यही होना था जो हुआ है। इस गैंग के पास न कोई तथ्य था न ही सबूत बस एक ही जिद थी कि फिर से जांच की जाए। इन्हें जस्टिस लोया की मौत से कोई दरकार नहीं है, ये सिर्फ ये चाहते थे कि किसी तरह जांच जारी रहे ताकि 2019 के चुनाव तक अमित शाह को एक जज की हत्या का आरोपी बता कर मोदी पर हमला किया जा सके। लेकिन, ये लोग जो मांग कर रहे थे उसमें एक पेंच था, अगर इस केस की दोबारा जांच होती तो जस्टिस लोया की मौत के वक्त जो तीन जज उनके साथ थे, शक की सुई उन पर जाती। उन जजों ने बयान दिया है, उनके बयानों पर शक करने का कोई आधार है। इसले कोर्ट ने सभी पिटीशन को कूड़ेदान में फेंक दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ फैसला दिया बल्कि इस गैंग की बची खुची इज्जत को मिट्टी में मिला दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि इस केस का मकसद पॉलिटिकल स्कोर सैटल करना है। इतना ही नहीं, कोर्ट ने ये भी कहा कि जिन्हें पॉलिटिक्स करना है वो कोर्ट के बाहर करें, न्यायपालिका को इसमें न घसीटें। प्रशांत भूषण और दुषयंत दवे जैसे वकीलों पर कोर्ट ने आरोप लगाया कि इन्होंने हाईकोर्ट के जजेज की छवि खराब करने कोशिश की, न्यायपालिका की निषप्क्षता पर सवाल उठाने की कोशिश की। मतलब ये कि कोर्ट ने अपने फैसले में इस गैंग को बेनकाब कर दिया उन्हें पॉलिटिकल पार्टी का एजेंट बता दिया। दरअसल, यही हकीकत भी है।

अब सवाल ये है कि आगे क्या होगा?
इस सवाल का जवाब प्रशांत भूषण ने फैसले के बाद ही दे दिया। जब कोर्ट से बाहर उसने कहा कि ये सुप्रीम कोर्ट के लिए काला दिन है। अब इनको कौन समझाए कि गैंग के चेहरे से नकाब उठ चुका है। ये पूरी दुनिया के सामने एक्पोज हो चुके हैं। दरअसल, ये कांग्रेस पार्टी और उसके स्पिन-डाक्टर्स के चेहरे पर कालिख पुत गई है। समझने वाली बात ये है कि इस गैंग में कई टीवी और अखबारों के पत्रकार हैं, अधिकारी हैं, समाजसेवी और एकेडमिक हैं। कांग्रेस की दिक्कत ये है कि इस गैंग के लोगों ताकत छिनी जा चुकी है वर्ना, ये लोग इतने पावरफुल हैं कि सुप्रीमकोर्ट के फैसले को भी प्रभावित कर सकते हैं। लेकिन, इस मामले में अभी कहानी पूरी नहीं हुई है।

राहुल गांधी ने जस्टिस लोया की मौत का मुद्दा उठाकर राजनीतिक फायदा लेने की कोशिश की। दरअसल, कांग्रेस पार्टी अब तक इस स्थिति को स्वीकार नहीं कर पाई है कि उनके हाथ से सबकुछ फिसल चुका है, जनता उन्हें रिजेक्ट कर चुकी है। कांग्रेस पार्टी के समर्थनविहीन नेताओं को लगता है कि वो बाइ-डिफॉल्ट 2019 में सरकार बना लेंगे। इसी समझ के साथ कांग्रेस पार्टी के निशाने पर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रहेंगे। बीच में उनके इम्पीचमेंट का मामला टल गया था..। लेकिन इस फैसले के बाद अपने गैंग के सदस्यों का साथ देने के लिए फिर से महाअभियोग का ड्रामा शुरु होगा। हालांकि, विपक्ष के पास चीफ जस्टिस को इम्पीच करने की संख्या नहीं है, किसी भी कीमत पर जस्टिस लोया को कांग्रेस नहीं हटा पाएगी...। लेकिन इसके बावजूद कांगेस चुप नहीं बैठेगी, वो अपनी बेइज्जती का बदला लेगी चाहे सुप्रीम कोर्ट की साख दांव पर क्यों न लग जाए।

साभार: मनीष कुमार (फेसबुक से)

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