‘अगर आधार को चुनौती देने वालों से सवाल करना राष्ट्रवादी कहलाना है तो मैं राष्ट्रवादी हूं!’ जस्टिस चंद्रचूड़

जस्टिस चंद्रचूड़


आधार मामले में पेश की जा रही दलीलों पर जताई आपत्ति!

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा एक जज होने के नाते हम किसी के प्रति जवाबदेह नहीं है। समुदाय हमारे बारे में क्या सोचता है, इसे हमें कोई वास्तव नहीं है। हम यहां संवैधानिक कर्तव्य निभाने केलिए है न कि किसी को खुश करने के लिए। संवैधानिक दायरे में रहते हुए हम अपने जमीर को ध्यान में रखते हुए काम करते हैं।

आधार मामले की सुनवाई कर रही पांच सदस्यीय संविधान पीठ के एक सदस्य जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने वृहस्पतिवार को कहा कि “अगर आधार को चुनौती देने वालों से सवाल करना राष्ट्रवादी कहलाना है तो मैं राष्ट्रवादी हूं।” संविधान पीठ ने याचिकाकर्ता की इस दलील पर कड़ा ऐतराज जताया कि अगर जज उनकी याचिका पर सहमति नहीं जताते तो २५ वर्षों के बाद वे ‘आधार जज’ के नाम से जाने जाएंगे।

न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने याचिकाकर्ताओं की ओर से बहस कर रहे वरिष्ठ वकील श्याम दीवान से कहा “अगर आधार को चुनौती देने वालों से सवाल पूछने पर राष्ट्रवादी होने का बोध जाता है तो हां, मैं राष्ट्रवादी हूं। मैं यह कहलाना पसंद करूंगा।”

दरअसल निजता के अधिकार मामले में मुख्य फैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने आधार मामले पर सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील द्वारा ऊंची आवाज में दलीलें पेश करने पर आपत्ति जताई। जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा, “आप ऊंची आवाज में क्यों बहस कर रहे हैं? संवैधानिक मसले पर बहस करने का यह कोई तरीका नहीं है। आप अपने दलीलों को घटा-बढ़ाकर पेश नहीं कर सकते। यह कहने का कौन सा तरीका है कि अगर आप हमारे नजरिए से सहमत नहीं है तो आपको समुदाय की कम चिंता है?”

जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा एक जज होने के नाते हम किसी के प्रति जवाबदेह नहीं है। समुदाय हमारे बारे में क्या सोचता है, इसे हमें कोई वास्तव नहींं है। हम यहां संवैधानिक कर्तव्य निभाने के लिए है न कि किसी को खुश करने के लिए। संवैधानिक दायरे में रहते हुए हम अपने जमीर को ध्यान में रखते हुए काम करते हैं। उन्होंने इस दलील पर भी आपत्ति जताई कि अगर आधार लागू हो गया तो २५ वर्ष बाद बच्चे के पालने से लेकर न्यायाधीशों तक के सारे रिकार्ड सरकार के पास होंगे।

जस्टिस चंद्रचूड़ ने दीवान से कहा, जैसे ही हम सवाल करते हैं हम पर इस कदर हमला किया जाता है जैसे हम किसी विचारधारा के प्रति समर्पित हैं। अगर ऐसा है तो मैं इस आरोप को स्वीकार करता हूं। हम यहां न तो सरकार का बचाव करने के लिए बैठे हैं और न ही किसी एनजीओ के लाइन पर चलने के लिए। उन्होंने कहा कि यह कहने का कौन सा तरीका है कि या तो हमारे साथ रहिए नहीं तो आप ‘आधार जज’ कहलाएंगे?

सुनवाई के दौरान दीवान ने कहा कि कहा कि सरकार को अपने नागरिकों पर भरोसा नहीं है। एक उदारवादी लोकतांत्रिक देश में सुशासन के लिए राज्य को अपने नागरिकों पर भरोसा होना चाहिए। उन्होंने कहा कि लोगों से जबरन बायोमैट्रिक लेना संवैधानिक सिद्धांत के खिलाफ है। बिना किसी कानूनी प्रावधान के तहत लोगों से उनकी अंगुलियों के निशान लिए गए। उन्होंने कहा कि आखिर रोजमर्रा की काम के मसलों के लिए आधार को जरूरी कैसे बनाया जा सकता है?

सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा, कि एक राष्ट एक पहचान का सिद्धांत नहीं हो सकता। इस पर पीठ ने कहा कि लोगों की सत्यनिष्ठ की वजह से यह परेशानी हुई है। पीठ के सदस्य न्यायमूर्ति एके सिकरी ने कहा, मुख्य समस्या देश की जनसंख्या है। जवाब में सिब्बल ने कहा, ‘एक देश, एक पहचान के बाद एक देश, एक बच्चा होना चाहिए। इस पर सिकरी ने कहा कि ७० के दशक में परिवार नियोजन का कार्यक्रम अच्छा था।

साभार: अमर उजाला (02-02-2018)

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