इतिहासिक चित्तौड़गढ़: गाथाओं का गढ़

महाराणा प्रताप


“गढ़ो में गढ़ चित्तौड़गढ़” इस प्रचलित कहावत का सच आप किले के परिसर में दाखिल होकर जान सकते है। रानी पद्मावती के अलावा यह गवाह है यहां के विख्यात राणाओं की वीरगाथाओं का भी। प्रेम और भक्ति में डूबी मीराबाई की कहानिया भी बसती है यहां।

एक छोटा सा शहर है चित्तौड़गढ़। इसकी जनसंख्या तकरीबन पौने दो लाख है, पर अनंत है इसकी प्रसिद्धि का विस्तार। सबसे खास वजह है यहां मौजूद वह विशाल गढ़, जिसे सामरिक दृष्टि से काफी सोच समझकर बनाया गया। वीर और साहसी राणाओ ने न सिर्फ इस शहर पर राज किया, बल्कि इसे दूरदर्शिता के साथ सजाया संवारा भी। मेवाड़ की इस भूमि ने कई प्रतापी राजाओ का काल देखा, उसमें प्रमुख है राणा कुंभा, राणा सांगा और महाराणा प्रताप। वीर राजपूतों की इस धरती पर सूरवीरों की कोई कमी नहीं थी, पर संकट हजार थे। चित्तौड़गढ़ ने तीन बड़े हमले देखें। चित्तौङगढ़ ने राजपूत वीरों का काल तो देखा ही, वीरांगनाओं का जौहर भी देखा। चित्तौड़ की हर गली, हर कुचा, पूरा परिवेष आज भी वीरों की इन कथाओ को बयान करता नजर आता है। यहां के किले को यूनेस्को ने “विश्व धरोहर” के तमगे से नवाजा है।

चित्तौड़गढ़ किला

मछलीनुमा चित्तौड़गढ़

यह किला एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है। यह दुर्ग इतना विशाल है कि आप एक दिन में इससे अच्छी तरह से नहीं देख सकेंगे। पूरा दिन लग जाएगा फिर भी बहुत सारी चीजें नहीं देख सकेंगे। अगर आप एक ट्रेवलर है तो कम से कम 2 से 3 दिन तो होनी ही चाहिए। बहरहाल, 700 एकड़ में फैला यह दुर्ग बहुत विशाल है, जिसकी परिधि लगभग 13 किलोमीटर की है। वॉकिंग शूज़ पहनकर जब पतले सर्पीले रास्तों पर चलेंगे तो यह एहसाह नहीं होगा कि आप कितनी चढ़ाई चढ़ चुके है। जल्द ही किले के उपरी भाग पर खुद को पाएंगे। किले की अधिकतम लंबाई 5 किलोमीटर है। मछली के आकार वाले इस दुर्ग में पहुंचने के लिए पूरे सात दरवाजे पर करने होते हैं। इन दरवाजों को यहां पोल कहा जाता है, जैसे भैरव पोल, पांडव पोल, गणेश पोल, हनुमान पोल, लक्ष्मण पोल, राम पोल, जोडला पोल आदि।

चित्तौड़गढ़ किला

झलकती है कुम्भा की शख्सियत

राणा कुंभा महल, किले में स्थित सबसे प्राचीन संरचना है। महाराजा कुंभा की गणना मेवाड़ के प्रतापी राजाओ में से अग्रिम पंक्ति में होती है। एक शूरवीर होने के साथ-साथ ही वह बहुत बड़े शिव भक्त भी थे। वीर होने के साथ-साथ कला के प्रति उनका प्रेम उन्हें एक बेमिसाल शासक के रूप में स्थापित करते हैं। महाराणा कुंभा के शासन में मेवाड़ का न सिर्फ विस्तार हुआ बल्कि इस दौरान कुछ अद्भुत संरचना भी अस्तित्व में आई। उन्होंने ही कुंभलगढ़ का किला बनाया था। किलो के निर्माण के अलावा महाराणा कुंभा में मंदिरों का भी निर्माण करवाया। उनकी शासन में कला, स्थापत्य, संगीत खूब फले-फुले। राणा कुंभा के निवास स्थल रहे महल की भव्यता राणा के शौर्यपूर्ण और शानदार व्यक्तित्व का भी जीता-जागता प्रमाण है। आप यहां आए तो एक बार महल का दर्शन जरूर करें।

राणा कुम्भा महल

विजय स्तम्भ: जीत का जीवंत प्रतीत

चित्तौड़गढ़ दुर्ग की पहचान के रूप में मशहूर विजय स्तंभ आज भी गवाह है उन वीर योद्धाओं के पराक्रम का, जिन्होंने अपने प्राणों की आहुति दे कर मेवाड़ का सिर कभी झुकने नहीं दिया। इसका निर्माण राणा कुंभा ने करवाया था। जब उन्होंने मालवा के सुल्तान महमूद शाह खिलजी को हराया तो इस जीत को यादगार बनाने के लिए नौ खंभे में बने इस विशाल स्तम्भ का निर्माण कराया। महाराणा कुंभा ने विजय स्तंभ को अपने आराध्य देव भगवान विष्णु को समर्थित किया। इस स्तंभ की दीवारों पर उकेरी हुई मूर्तियां बेहद खूबसूरत है। इसकी उचाई लगभग 122 फ़ीट है और यह एक विशाल चबूतरे पर बनाया गया है। विजय स्तंभ सुनहरे पत्थर की उत्कृष्ट कृति है। इसमें कहीं भी ईंट या चुने का प्रयोग नहीं हुआ है। सात मंजिल तक की संरचना एक जैसी है, आठवीं मंजिल अलग है, जिसकी सुंदर 12 छतरियों का विस्तार इसे भव्यता प्रदान करता है। इसे बनाने ने 20 साल का समय लगा था।

विजय स्तम्भ

मीराबाई का मन्दिर

चित्तौड़गढ़ की धरती इतिहास की कुछ न भुलाई जा सकने वाली वीरांगना के त्याग की गवाही भी है। अगर चित्तौड़गढ़ का पर्याय रानी पद्मिनी को माना जाता है तो गिरिधर गोपाल की दीवानी मीरा बाई जैसी शक्सियत का ताल्लुक भी इसी जगह से है। यहां मीराबाई को समर्पित संरचना भी है, जिसका नाम मीरा बाई मंदिर है। इसका निर्माण भी महाराणा कुंभा नहीं करवाया था। मंदिर की वास्तु कला मीराबाई के जीवन से प्रेरित मालूम देती है। इस मंदिर की मुख्य संरचना एक ऊंचे चबूतरे पर बनी है जो कि रजपूती स्थापत्य कला की खासियत है। मुख्य गर्भगृह के ऊपर मंदिर की विशाल छत है। मंदिर के गर्भगृह में मीरा के प्रभु गिरिधर नागर स्थापित है। अंदर भगवान की प्रार्थना में लीन मीराबाई के चित्र है। मंदिर के भीतर एक छोटी छतरी मीराबाई के संरक्षक व गुरु स्वामी रविदास को समर्पित है।  मंदिर के नीचे फर्श पर संत रविदास के पदचिन्ह भी है।

मीराबाई मंदिर

कीर्ति स्तम्भ

दुर्ग के भीतर विजय स्तंभ जैसी एक और दर्शनीय टावर नुमा संरचना देखने को मिलती है। यह कीर्ति स्तम्भ है। कहते हैं इस स्तंभ का निर्माण 12वीं शताब्दी में एक जैन व्यापारी जीजा भागरेवाला ने करवाया था। इस स्तंभ की ऊंचाई 22 फीट है। यह संरचना चालुक्य की स्थापत्य कला के आधार पर बनी प्रतीत होती है।

कीर्ति स्तम्भ

फतेह प्रकाश पैलेस म्युज़ियम

दुर्ग में बनी हवेलिया, महल, कुंड और विशाल मंदिरों के वैभव की झलक खंडहर में तब्दील हो चुकी विशाल संरचनाओं से मिलती है। इनको लेकर फतेह प्रताप प्रकाश पैलेस में लोगो की जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए उस दौर की नायाब धरोहर का एक अमूल्य संग्रह सुरक्षित रखा गया है। इस संग्रहालय में पुरातात्विक महत्व के कुछ दुर्लभ नमूने संरक्षित है। इनमे गुप्त और मौर्य काल से लेकर जैन और हिन्दू संस्कृति से जुड़े शिलालेख और मूर्तिया तक शामिल है। इस संग्रहालय का रखरखाव पुरातत्व विभाग करता है। यह संग्रहालय शुक्रवार को बंद रहता है।

आदर्श स्मारकों में शामिल

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ए एस आई) ने जिन सौ स्मारकों को आदर्श स्मारक बनाने के लिए चुना है, उसमे राजस्थान का चित्तौड़गढ़ किला भी शामिल है। इसके तहत यहां पर्यटक के अनुकूल सुविधाएं विकसित की जाएगी। गौरतलब है कि एएसआई के स्मारकों की संख्या 3686 है, जिन्हें राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा दिया गया है।

उड़ने वाली गिलहरियां दिखेंगी यहाँ!
सीता माता वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी, चित्तौड़गढ़ से 95 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, जो पूरे देश में अनोखी है। केवल यहीं पर फ्लाइंग गिलहरी यानी उड़ने वाली गिलहरी देखी जा सकती है। सीता माता वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी एक वन्यजीव अभयारण्य है, जो दक्षिण-पूर्वी भाग में स्थित प्रतापगढ़ में है। तीन अलग-अलग पर्वत श्रृंखलाओं, जैसे मालवा का पठार, विंध्याचल पर्वतमाला और अरावली पर्वत श्रृंखला के संगम स्थल पर बने होने के कारण यह वाइल्ड लाइफ सैंक्चुअरी अनोखी जैवविविधता लिए हुए है। इसके पास छोटे-छोटे गांव भी मौजूद है।

सीता माता अभ्यारण में उड़ती गिलहरी

मेनाल जल प्रपात की छटा
अगर आप सोचते हैं कि राजस्थान में प्राकृतिक खूबसूरती कम है, तो यहां आकर आपकी सोच बदल जाएगी। चित्तौड़गढ़ के नजदीक मेनाल गांव में एक विशाल जलप्रपात है, जो पुरे वेग से 50 फिट की ऊंचाई से गिरता है। मेनाल, चित्तौड़गढ़ जिले के बेंगू क्षेत्र में स्थित है। यह प्राकृतिक स्थल मुख्यालय से 86 किलोमीटर की दूरी पर बुंदी-कोटा मार्ग नंबर 27 पर स्थित है। यह स्थल बारिश शुरु होते ही अनुपम छटा बिखेरता है। यह वहीं जलप्रपात है जिसकी प्रशंसा माननीय प्रधानमंत्री भी अपने लोकप्रिय कार्यक्रम “मन की बात” में कर चुके हैं। सफेद दूध सी निर्मल जलधारा और जंगल का नैसर्गिक सौंदर्य इतना लुभावना है कि आप एक बार फिर यहां जरूर आना चाहेंगे। मेनाल एक ऐसा रमणीक स्थल है जो प्रकृति के साथ पुरातात्विक और ऐतिहासिक महत्व भी रखता है। यहां कई प्राचीन मंदिर है, जैसे- मेहनालेश्वर मंदिर, जिसका निर्माण 12वीं शताब्दी में पृथ्वीराज चौहान ने करवाया था।

मेनाल जलप्रपात

इन्हें वही जाने !
  • चित्तौड़गढ़ दुर्ग को यूनेस्को ने वर्ष 2012 में विश्व धरोहर सूची में शामिल कर लिया है।
  • किला परिसर में स्थित जैन मंदिर में “भगवान ऋषभ” की काले पत्थर की मूर्ति को यहां के भील जनजाति के लोग बड़ी आस्था से पूजते है।
  • चित्तौड़गढ़ किले में रानी पद्मिनी के नाम से भी एक महल है, जो गढ़ में दक्षिण दिशा में निर्मित कमल सरोवर के पीछे स्थित है। पद्मावत फ़िल्म को लेकर विवाद सामने आने के बाद यहां पर्यटकों की संख्या अचानक बढ़ गई है।
         ★ गौमुख जलाशय चित्तौड़गढ़ का प्रमुख आकर्षण है। हरे पानी वाला यह जलाशय आस्था का केंद्र है।


रानी पदमिनी


★★★★★

Post a Comment

Previous Post Next Post