सलवार-कमीज पहनने वाली कमजोर नहीं होतीं, मैंने साबित किया





भारत की पहली डब्ल्यूडब्ल्यूई रेसलर कविता दलाल को शनिवार को राष्ट्रपति के हाथों फ़र्स्ट लेडी अवार्ड प्रदान किया।


जुलाई 2017 की बात है, जब डब्ल्यूडब्ल्यूई (वर्ल्ड रेसलिंग इंटरटेनमेंट) के रिंग में ‘भारतीय नारी’ की दमदार दस्तक देख दुनिया हतप्रभ रह गई। उस लड़की के लिए यह एक अजीब स्थिति थी। डब्ल्यूडब्लयूई के रिंग में महिला पहलवानों की वेशभूषा कैसी होती है, सभी जानते हैं, लेकिन हरियाणा के जींद जिले के मालवी गांव के साधारण से परिवार से चकाचौंध भरे इस मायावी रिंग तक पहुंची इस लड़की के लिए ऐसा वेश धारण करने या न करने को लेकर फैसला करना चुनौतीपूर्ण था। फैसला थोड़ा कठिन था।


हालांकि वह वैसा वेश धारण कर भी लेती तो भारत में भूचाल नहीं आता। लेकिन उसने जो फैसला किया, वह उसकी गहरी सोच से निकला था। भारत की पहली डब्ल्यूडब्ल्यूई रेसलर कविता दलाल को शनिवार को राष्ट्रपति के हाथों फ़र्स्ट लेडी अवार्ड प्रदान किया।

दे डाली जोरदार पटखनी...:
कविता ने भारतीय लड़कियों की परंपरागत पोशाक यानी सलवार-कमीज पहनकर रिंग में उतरने का निर्णय लिया। वह भी बसंती रंग में रंगी। इस लंबी-चौड़ी देसी लड़की ने अपनी मजबूत भुजाओं में विदेशी प्रतिद्वंद्वी को इस तरह ऊपर उठा रखा था, मानो जता देना चाह रही हो कि सलवार-कमीज पहनने वालीं करोड़ों भारतीय लड़कियां किसी से भी और किसी भी मायने में कम नहीं हैं। और जब उस प्रतिद्वंद्वी को उसने नीचे पटका तो इस पटख्रनी के साथ ही उन तमाम रूढ़ियों को भी पटखनी दे डाली, जो भारतीय लड़कियों को लेकर संकीर्ण दायरे बनाती आई हैं।



सलवार-कमीज पहनकर रिंग में उतरने के सवाल पर कविता ने कहा, हमारे देश के लोग अपनी संस्कृति को लेकर काफी सजग हैं। वे इसमें बदलाव नहीं करना चाहते। रिंग में सलवार-कमीज पहनकर उतरने के पीछे मेरा मकसद यही था कि मैं लाखों भारतीय लड़कियों को संदेश दे सकूं और लोगों को बता सकूं कि सलवार-कमीज पहनने वाली लड़कियां कमजोर नहीं होतीं। वे अपने सांस्कृतिक मूल्यों का सम्मान करते हुए और अपने संस्कारों को साथ लिए आगे बढ़ना जानती हैं, यही बात उन्हें सबसे मजबूत, सबसे अलग बनाती है।

लड़ना पड़ा गरीबी से
संघर्ष के दिनों के अनुभव साझा करते हुए कविता ने बताया, मेरे परिवार की आर्थिक हालत अच्छी नहीं थी। दूध बेचकर गुजारा होता था। बड़े भाई संजय ने मुझे खेल में आगे बढ़ने का हौसला दिया। लखनऊ में कैंप के दौरान एक बार मेरे पास रुपये नहीं थे। एक मंदिर गई तो वहां मूर्ति के आगे रखे 15 रुपये उठा लाई। उससे टूथपेस्ट खरीदा। कुछ दिन बाद भगवान के रुपये लौटाने गई तो मंदिर के बाहर बैठी एक भूखी लड़की को खाना खिला दिया।

जूझना पड़ा समाज से:

कविता ने कहा, हमारे समाज में लड़कियों के बारे में लोग कैसी सोच रखते हैं, यह सबको मालूम है। रूढ़िवादी सोच से लड़ना आसान नहीं होता। मुझे और मेरे परिवार को भी बड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ा। लेकिन हमें पता था कि जब हम अच्छा करेंगे तो समाज हमारी बात को समझेगा, हजारों लड़कियों की सोच भी बदलेगी। हम रुके नहीं और आगे बढ़ते रहे। आज समाज हमारे साथ खड़ा है, हमें सराह रहा है।

- कहा, रिंग में उतरकर प्रतिद्वंद्वी को पछाड़ने से पहले गरीबी, समाज, रूढ़ियों और रुकावटों को चित करना पड़ा
- समाज को लड़कियों के बारे में और लड़कियों को स्वयं के बारे में सोच बदलने को प्रेरित कर सकी, इस बात की मुझे खुशी है

आत्मरक्षा करना सीखें लड़किया
लड़कियों के खिलाफ बढ़ते अपराध पर कविता ने कहा कि लड़कियों को ही इसके खिलाफ शुरुआत करनी होगी। उन्हें आत्मरक्षा करना सीखना होगा। क्या कुश्ती सिखाकर समाधान हो सकता है? इस पर कविता का कहना है कि काफी लड़कियों का खेलों में रुझान नहीं होता। हर लड़की पहलवान नहीं बन सकती।

समाज की रूढ़िवादी सोच से लड़ना आसान नहीं होता। लड़कियों के मामले में तो यह और भी मुश्किल है। लेकिन एक शुरुआत करनी होती है, जो मैंने और मेरे परिवार ने की। मेरी सफलता को आज सम्मान मिल रहा है। इससे यह साबित होता है कि अच्छी शुरुआत अच्छा परिणाम जरूर देती है।
-कविता दलाल, पेशेवर रेसलर

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