कहानी "चारा घोटाले" की !





राँची के एयरपोर्ट पर एक चार्टर्ड विमान में से कुछ बंडल्स उतारे जा रहे थे। पता चला, उन बंडलों में शादी के कार्ड्स हैं जिन्हें मुंबई से स्पेशली विमान द्वारा मंगवाया गया था। राँची में ही पोस्टेड एक वेटनरी डॉक्टर के. एम. प्रसाद की बेटी की शादी तय हो चुकी थी, और इसी शादी के लिए इन महंगे कार्ड्स को मुंबई से राँची मंगाया गया था।

यह बात 1995 की है जब संयुक्त बिहार के मुख्यमंत्री लालू यादव एवं विपक्ष के नेता डा. जगन्नाथ मिश्र थे।

ऐसी शानदार शादी राँची के लोग कभी नहीं देखे थे। उस वक्त के अनुमान हिसाब से इस शादी में 20 करोड़ रुपए खर्च हुए थे। मेहमानों की यदि बात करें तो मुख्यमंत्री, विधानसभा में विपक्ष के नेता, सैकड़ों छोटे-बड़े नेता, अधिकारी, व्यवसायी जो दिल्ली मुंबई आदि जगहों से आए थे, या यूँ कहिए कि पधारे थे, वे इस समारोह में चार चाँद लगा चुके थे।

शहर के अखबारों में इस शादी की तस्वीरें और गाॅसिप्स तो कई दिनों तक छपते रहे थे।

उस समय तक "चारा घोटाला" शब्द की उत्पत्ति नहीं हुई थी। परंतु घोटाले के बाहर आने का "बीजारोपण" हो चुका था। इसी हाई प्रोफाइल शादी के चर्चों के बीच ये बात भी उठने लगी कि आखिर एक पशुपालक अधिकारी के पास इतना पैसा कहाँ से आया?

चारा घोटाले के मास्टरमाइंड

पशु पालन घोटाले की कहानी तीन मास्टर माइंड से शुरू होती है जिनके नाम थे, डा. श्याम बिहारी प्रसाद (ज्वाइंट डायरेक्टर), के. एम. प्रसाद और त्रिपुरारी प्रसाद

ये तीनों लोग सिर्फ अधिकारी या सरकारी नौकर ही नहीं थे बल्कि इन्हें माफिया भी कह सकते हैं। सरकार चाहे लालू की हो या जगन्नाथ मिश्र की! इनकी तूती के सामने सभी मशीनरी नतमस्तक थीं। सरकारी कोषागार के अफसरों को ये बात पता थी कि इनकी बात नहीं मानने की सूरत में उनका ट्रांस्फ़र किसी बीहड़ में हो सकता है या नौकरी जा सकती है, इसलिए वे भी इस इनके गुट में शामिल हो गए थे और पूजा का  प्रसाद भी पाने लगे थे।

श्याम बिहारी प्रसाद की लालू यादव से नजदीकी की यदि बात करें तो जब लालू विधायक नहीं बने थे, यानी जब सिर्फ नेता थे, तब वे श्याम बिहारी प्रसाद के घर पर रहा करते थे, लालू के खर्च भी डाक्टर साहब ही वहन करते थे। जब लालू विधायक के बाद मुख्यमंत्री बने, श्याम बिहारी प्रसाद की तो लाॅटरी ही लग गई!

राजकीय कोषागार की लूट अंधाधुँध होती रही! नीचे से लेकर उपर तक सभी लोगों तक पैसे पहुँचते रहे! लालू यादव देखते-देखते अमीर तो बने ही, इस निकासी के पैसे से वे तमाम छोटे बड़े अधिकारी और नेता (जिन्हें लूट का हिस्सा देना जरूरी था) वे अमीर बनते गए।

यहाँ तक कि नीतिश कुमार और सुबोध कांत सहाय जैसे नेताओं को भी कुछ पैसे मिले थे, जो सीधे तरीके से ना होकर चंदे के रूप में मिले।

चाईबासा के तात्कालिन जिलाधिकारी अमित खरे ने एक बार कुछ सवाल उठाए तो उन्हें धमकी देकर चुप करा दिया गया था, जान किसे प्यारी नहीं होती? ... बेचारे चुप हो गए।

इस माफिया ग्रुप की ताकत इतनी थी कि शासन प्रशासन या किसी और की तो हिम्मत भी नहीं थी कि इनके कामों में कोई बाधा डाले या चूँ भी करे। पशु पालन घोटाले में शामिल लोग अपनी अमीरी का नंगा नाच किया करते थे। 950 करोड़ रुपए कम नहीं होते हैं साहब !!  वो भी आज से लगभग पच्चीस साल पहले की वैल्यू कुछ और थी।

डा. श्याम बिहारी के घर पर बड़े बड़े लोग सिर झुकाने आया करते थे। लूट के पैसे मुंबई फिल्मी बाज़ार तक भी पहुँचने लगे थे।

एक बार श्याम बिहारी के घर पर एक आयोजन हुआ था जिसमें मुंबई की एक हिरोइन नाचने के लिए आई थी। उस प्रोग्राम में लालू यादव सहित बिहार के कुछ गण मान्य लोग भी शामिल थे। इस आयोजन का जब खुलासा हुआ और बातें फैलने लगी। जिस जहाज में वो आई थी उसका विवरण सामने आया, तो कहा गया था कि वो हिरोइन अपने निजी काम से राँची आई हुई थी। बात को दबाने का भरपूर प्रयास किया गया।

धीरे धीरे सरकारी कोष की लूट वाली बात छिटपुट सामने आने लगी, शक और गहराता गया और जब ये पता चला कि इस घोटाले के केंद्र में लालू यादव हैं जो उन तीनों मास्टरमाइंड के बाॅस हैं, जो उस वक्त बिहार के मुख्यमंत्री थे या यूँ कहें कि बिहार के सबसे बड़े माफिया थे जो अपनी छवि गरीबों और पिछड़ों के नेता के तौर पर स्थापित कर चुके थे! तो लोगों को हैरानी ही नहीं हुई बल्कि यकीन भी नहीं हुआ था।

विपक्ष में बैठी बीजेपी को मुद्दा मिला और बीजेपी के कार्यकर्ता लालू के विरोध में सड़कों पर उतर आए। कुछ ऐसे भी नेता जो लालू की पार्टी के थे और जिन्हें माल नहीं मिलता था, वे भी बीजेपी के साथ विरोध में शामिल हो गए।

शुरू शुरू में लालू यादव ने विपक्ष के इस विरोध को गरीबों, दलितों-कुचलों के महानायक के उपर हमला बता कर इसे राजनीतिक द्वेष करार दिया। अगड़ी जातियों द्वारा एक गरीब एवं पिछड़े नेता पर हमले के रूप में प्रस्तुत किया और कहा कि मुझे फँसाया जा रहा है।

विरोध बढ़ता देख! मामलों को गंभीर मानते हुए, भ्रष्टाचार का बू आता देख! पटना हाईकोर्ट ने लालू के कारनामों की जाँच के लिए सीबीआई जांच का आदेश दे दिया और जाँच शुरू हो गई। सीबीआई जांच की जिम्मेदारी एक काबिल और ईमानदार जाँच अधिकारी यू. एन. विश्वास के हाथों में आ गई।

लालू यादव अब घिरने लगे थे, उनके समर्थक उग्र होने लगे थे, उनके लोगों की गुंडागर्दी चरम पर पहुंच चुकी थी। सत्ता जाने का खतरा मंडराने लगा था। पटना की सड़कों पर लालू यादव के गुंडे सरेआम हथियार लहराकर जुलूस निकालने लगे थे। उन्होंने धमकी दी थी कि यदि लालू यादव को किसी ने हाथ भी लगाया तो पटना सहित राज्य भर में ऐसा उपद्रव होगा, ऐसी आग लगेगी कि लोग हैरान रह जाएँगे। आम जनता दहशत में आ चुकी थी, अराजकता अब चरम पर थी।

सीबीआई के अधिकारी जो जाँच कर रहे थे, उन पर हमले करवाए गए। यू.एन. विश्वास जो जाँच प्रमुख थे उन पर जानलेवा हमला किया गया जिसमें वे बच गए। परंतु उन्होंने निडरता एवं बहादुरी से जाँच को जारी रखा।

पटना हाईकोर्ट में याचिका डालने वाले लोगों को जान से मारने की धमकी दी गई। अखबारों में घोटाले की खबरें छापने वाले अखबारों के मालिकों एवं पत्रकारों को सरेआम मर्डर करने की धमकी दी जाने लगी।

समूचा बिहार जंगल राज में तब्दील हो चुका था!

लालू प्रसाद इस खुशफहमी में थे कि इनकी सत्ता और समर्थकों की शक्ति के सामने सीबीआई डर जाएगी, कोर्ट को झुकना पड़ेगा! लेकिन हाईकोर्ट की निगरानी में सीबीआई की जाँच चलती रही। इस जाँच को रूकवाने के लिए लालू प्रसाद सुप्रीम कोर्ट भी गए थे पर निराशा हाथ लगी। अब समय आया इन्हें गिरफ्तार करने का, लेकिन बिहार की पुलिस ने लालू प्रसाद को गिरफ्तार करने से मना कर दिया।

बिहार पुलिस के मना करने पर यू. एन. विश्वास ने अब केन्द्र से सेना भेजने की माँग कर डाली पर माँग स्वीकार नहीं हुई, इस पर राजनीति भी बहुत हुई थी। अंततः लालू प्रसाद ने खुद को घिरता देख अपने आप को सीबीआई कोर्ट के सामने आत्मसमर्पण कर दिया।

इसके पहले लालू अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनवा चुके थे! उस महिला को जिसे बोलना तक नहीं आता था। सैकड़ों लोगों को इस घोटाले में नामजद किया गया,  गिरफ्तारी हुई और जेल गए।

डा. श्याम बिहारी प्रसाद का तो बुरा हश्र हुआ। कानूनी सजा से पहले ही वे सजा पा गए, जब जेल में बंद रहने के दौरान किडनी की बीमारी की वजह से वे मर गए और नर्क में चले गए। अबकी बार लालू प्रसाद यादव सातवीं बार जेल गए हैं।

इस घोटाले से पहले लालू प्रसाद की छवि एक ऐसे जन नेता की थी जो गरीबों और पिछड़ों का मसीहा था। गरीबी में पला बढ़ा, भैंस की पीठ पर बैठकर भैसों को  चराने का दावा करने वाला, जो आगे चलकर एक लोकप्रिय और महत्वाकांक्षी नेता बना। लेकिन पैसों की भूख ने उससे हर वो काम करवाया जो कानून संगत नहीं था। भ्रष्टाचार में आकंठ डूब कर गरीबों का मसीहा देश का ऐसा पहला राजनीतिज्ञ बन गया जिसे कानून ने चुनाव लड़ने के योग्य भी नहीं माना।

यह दुर्भाग्य है देश का! दुर्भाग्य है बिहार के लोगों का!! दुर्भाग्य है उस राज्य का!!! जहाँ की जनता ने एक ऐसे नेता को मुख्यमंत्री बनाया जिसकी सरपरस्ती में दो दशकों से अधिक समय तक राज्य में जंगल राज रहा, जिसका शासक एक भ्रष्टाचारी था, जिसके अधिकारी भ्रष्ट थे, जिसकी पुलिस भ्रष्ट थी।

छले गए वे गरीब और आम लोग जिन्होंने लालू प्रसाद को अपना मसीहा माना था।

साभार: संजय दुबे जी के फेसबुक दीवार से!


Post a Comment

Previous Post Next Post