बुद्ध और ब्राह्मण

सलंग्न चित्र- महात्मा बुद्ध यज्ञोपवीत धारण किये हुए।


 कार्तिक अय्यर:
अपने आपको मूलनिवासी कहने वाले लोग प्राय: ब्राह्मणों को कोसते मिलते हैं, विदेशी कहते हैं, गालियां बकते हैं। पर बुद्ध ने आर्यधर्म को महान कहा है । इसके विपरीत डॉ अंबेडकर आर्यों को विदेशी नहीं मानते थे। अपितु आर्यों  होने की बात को छदम कल्पना मानते थे। महात्मा बुद्ध ब्राह्मण, धर्म, वेद, सत्य, अहिंसा, यज्ञ, यज्ञोपवीत आदि में पूर्ण विश्वास रखने वाले थे।  महात्मा बुद्ध के उपदेशों का संग्रह धम्मपद के ब्राह्मण वग्गो 18 का में ऐसे अनेक प्रमाण मिलते है।

1:- बुद्ध के ब्राह्मणों के प्रति क्या विचार थे ?


न ब्राह्नणस्स पहरेय्य नास्स मुञ्चेथ ब्राह्नणो।

धी ब्राह्नणस्य हंतारं ततो धी यस्स मुञ्चति।।
- ( ब्राह्मणवग्गो श्लोक ३)

अर्थात: 'ब्राह्नण पर वार नहीं करना चाहिये। और ब्राह्मण को प्रहारकर्ता पर कोप नहीं करना चाहिये। ब्राह्मण पर प्रहार करने वाले पर धिक्कार है।'

2:-  ब्राह्मण कौन है:-


यस्स कायेन वाचाय मनसा नत्थि दुक्कतं।
संबुतं तीहि ठानेहि तमहं ब्रूमि ब्राह्नणं।।

- ( श्लोक ५)
अर्थात: 'जिसने काया, वाणी और मन से कोई दुष्कृत्य नहीं करता, जो तीनों कर्मपथों में सुरक्षित है उसे मैं ब्राह्मण कहता हूं।
अक्कोधनं वतवन्तं सीलवंतं अनुस्सदं।

दंतं अंतिमसारीरं तमहं ब्रूमि ब्राह्नणं।।
अकक्कसं विञ्ञापनिं गिरं उदीरये।
याय नाभिसजे किंचि तमहं ब्रूमि ब्राह्नणं।।
निधाय दंडभूतेसु तसेसु थावरेसु च।
यो न हंति न घातेति तमहं ब्रूमि ब्राह्नणं।।
- ( श्लोक ७-९)

अर्थात: 'जो क्रोधरहित, व्रती, शीलवान, वितृष्ण है और दांत है, जिसका यह देह अंतिम है; जिससे कोई न डरे इस तरह अकर्कश, सार्थक और सत्यवाणी बोलता हो; जो चर अचर सभी के प्रति दंड का त्याग करके न किसी को मारता है न मारने की प्रेरणा करता है- उसी को मैं ब्राह्मण कहता हूं।।'

4:- गुण कर्म स्वभाव की वर्णव्यवस्था:-


न जटाहि न गोत्तेन न जच्चा होति ब्राह्मणो।
यम्हि सच्च च धम्मो च से सुची सो च ब्राह्मणो।।

( श्लोक ११)

अर्थात: “न जन्म कारण है, न गोत्र कारण है, न जटाधारण से कोई ब्राह्मण होता है। जिसमें सत्य है, जो पवित्र है वही ब्राह्मण होता है।।”

५:- आर्य धर्म के प्रति विचार:-


धम्मपद, अध्याय ३ सत्संगति प्रकरण :प्राग संज्ञा:-
साहु दस्सवमरियानं सन् निवासो सदा सुखो।

( श्लोक ५)
अर्थात: आर्यों का दर्शन सदा हितकर और सुखदायी है।"


धीरं च पञ्ञं च बहुस्सुतं च धोरय्हसीलं वतवन्तमरियं।
तं तादिसं सप्पुरिसं सुमेधं भजेथ नक्खत्तपथं व चंदिमा।।
( श्लोक ७)
"जैसे चंद्रमा नक्षत्र पथ का अनुसरण करता है, वैसे ही सत्पुरुष का जो धीर,प्राज्ञ,बहुश्रुत,नेतृत्वशील,व्रती आर्य तथा बुद्धिमान है- का अनुसरण करें।।"
7:- 
"तादिसं पंडितं भजे"- श्लोक ८
अर्थात: वाक्ताड़न करने वाले पंडित की उपासना भी सदा कल्याण करने वाली है।।
"एते तयो कम्मपथे विसोधये आराधये मग्गमिसिप्पवेदितं"
( धम्मपद ११ प्रज्ञायोग श्लोक ५)
अर्थात "तीन कर्मपथों की शुद्धि करके ऋषियों के कहे मार्ग का अनुसरण करे"

धम्मपद पंडित प्रकरण १५/७७ में पंडित लक्षणम् में श्लोक १:-
"अरियप्पवेदिते धम्मे सदा रमति पंडितो।।"

“सज्जन लोग आर्योपदिष्ट धर्म में रत रहते हैं।"

परिणाम:- भगवान महात्मा गौतम बुद्ध ने ब्राह्मणों की इतनी स्तुति की है तथा आर्य वैदिक धर्म का खुले रूप से गुणगान किया है।

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