डॉ राहुल जामवाल:
भारतीय न्याय व्यवस्था पर कई बार ऊँगली उठती रही है कि यहाँ इन्साफ मिलने में काफी लंबा वक़्त लगता है और आम इंसान को तो कई बार इन्साफ मिल ही नहीं पाता। अदालतों में करोड़ों केस पेंडिंग हैं, जो ना जाने कितने सालों से न्याय का इन्तजार कर रहे हैं। इस दुखद स्थिति का मुख्य कारण है न्यायपालिका का आम जनता की समस्याओं के प्रति गैर-जिम्मेदाराना रवैय्या और शीर्ष पदों पर कब्जा करे बैठे कई ऐसे जज जिन्हे राजनीतिक पार्टियों द्वारा पुरस्कृत किया जाता रहता है।
ये तो सिर्फ एक बानगी है
सेक्स, रिश्वत, ब्लैकमेल और सौदे द्वारा जजों की नियुक्ति जजों की नियुक्ति के पीछे का काला सच तब सामने आया था, जब कोंग्रेसी नेता और जाने-माने वकील अभिषेक मनु सिंघवी का सेक्स स्कैंडल सामने आया था, जिसमे एक महिला उनसे पूछती हुई नज़र आ रही थी कि “वो उसे जज कब बनाएंगे ?” उस वक़्त सिंघवी ना केवल सुप्रीम कोर्ट में वकील थे बल्कि जजों की नियुक्ति करने वाली कॉलेजियम कमिटी के सदस्य भी थे।
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अभिषेक मनु सिंघवी |
कॉलेजियम सिस्टम क्यो ?
यह वास्तव में दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश के लोगों ने कभी उन न्यायाधीशों और वकीलों से सवाल करने की जहमत नहीं उठायी, जिनकी राजनीतिक पार्टियों की चमचागिरी करके ऊंचे पदों पर नियुक्ति हो गयी। अंग्रेजों के वक़्त से देश में जजों की नियुक्ति का कॉलेजियम सिस्टम लागू है, जिसमे वरिष्ठ जज ही नए जजों की की नियुक्ति करते हैं। इसने न्यायपालिका को केवल भ्रष्ट और पक्षपातपूर्ण बनाया है।
जज खुद ही फैसला करते है कि कौन जज बनेगा, उदाहरण के तौर पर “इस सिस्टम के तहत सुप्रीम कोर्ट के जज, हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति करते हैं, हाई कोर्ट के जज सेशन कोर्ट के जजों की नियुक्ति करते हैं”। और ज्यादातर ऐसे में या तो नियुक्ति के लिए वरिष्ठ जजों को मोटी रिश्वत खिलानी पड़ती है और या फिर चमचागिरी करनी होती है। क्या यह पारदर्शिता है?
जो चमचागिरी करने में ज्यादा अच्छा है, ज्यादातर उसे ही नियुक्ति मिलती है। अंग्रेजों ने भारतीयों का शोषण करने के लिए इस सिस्टम को बनाया था ताकि न्यायपालिका में कोई आम इंसान कभी प्रवेश ही नहीं कर सके। कैसा रहेगा यदि आईएएस अधिकारी खुद ही ने आईएएस अधिकारियों की और आईपीएस अधिकारी खुद ही ने आईपीएस अधिकारीयों की नियुक्ति कर ले?
देश का बड़ा गर्क करने का इससे अच्छा सिस्टम कोई हो ही नहीं सकता। अभिषेक मनु सिंघवी के पास भी हाई कोर्ट के जजों की नियुक्ति की पावर थी, यही कारण है कि अनूसुया सलवान नाम की महिला से उसने नियुक्ति के बदले सेक्स की मांग कर ली। अब ऐसे कई अन्य केस देखिये कि कैसे नेता कॉलेजियम सिस्टम का फायदा उठाकर अपने विश्वासपात्र और पिट्ठू लोगों को न्यायपालिका में जज बनाते हैं।
हाई कोर्ट का जज बनने के लिए दो मुख्य मानदंड हैं-
- वह भारत का नागरिक होना चाहिए।
- उसे 10 साल वकालत का तजुर्बा होना चाहिए या राज्य सरकार का एडवोकेट जनरल होना चाहिए।

वीरभद्र सिंह और उनकी बेटी अभिलाषा कुमारी सिं

मोदी को फसाने के लिए कांग्रेस की साजिश
मोदी को फंसाने के लिए कोंग्रेसी सीएम की साजिश हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह, जो फिलहाल आय से अधिक संपत्ति के केस में शामिल है, उन्होंने अपनी बेटी अभिलाषा कुमारी को हाई कोर्ट जज बनाने के लिए उसे अपने राज्य हिमाचल प्रदेश का एडवोकेट जनरल बना लिया, जोकि परिवारवाद का सीधा मामला है। एडवोकेट जनरल बनाने के कुछ ही वक़्त बाद उन्होंने अपनी बेटी को कॉलेजियम के जरिये से हाई कोर्ट का जज बनवा दिया और उसे गुजरात हाई कोर्ट में पोस्टिंग दिलवा दी।
उसे गुजरात हाई कोर्ट भेजने के पीछे मुख्य उद्देश्य था तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार का विरोध करना और हर मोर्चे पर उन पर हमला करना। अभिलाषा के कई फैसले सुप्रीम कोर्ट द्वारा रद्द भी किये गए।
मोदी के खिलाफ लालू की खौफनाक साजिश
मजेदार बात ये है कि गुजरात दंगों को लेकर नरेंद्र मोदी के खिलाफ तीस्ता सीतलवाड़ द्वारा दायर किये गए सभी केस बेहद रहस्य्मयी तरीके से आफताब आलम की बेंच के पास ही गए। स्पष्ट है कि ये कोई संयोग नहीं बल्कि सुनियोजित साजिश थी।
बाद में एमबी सोनी की अध्यक्षता वाली एक बेंच ने पाया कि नरेंद्र मोदी को जबरदस्ती दोषी ठहराने के लिए आफताब आलम पक्षपाती फैसले सुना रहा था, जिसके बाद सोनी को भारत के मुख्य न्यायधीश से कहना पड़ा कि गुजरात दंगों के केस आफताब आलम के पास ना भेजे जाएँ।
मुख्य न्यायधीश ने आफताब आलम द्वारा सुनाये गए 12 फैसलों की जांच की और पाया कि सभी फैसले नरेंद्र मोदी के खिलाफ पक्षपाती विचारों के साथ सुनाये गए थे. इसके बाद आफताब आलम को नरेंद्र मोदी और गुजरात दंगों से जुड़े केसों से हटा दिया गया।

तीस्ता सीतलवाड़ और पूर्व मुख्यन्यायधीश आफताब आल

तुष्टिकरण के फैसले करती है न्यायपालिका
आइये अब ज़रा हाल-फिलहाल में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट द्वारा लिए गए फैसलों पर नज़र डालते हैं। आपको साफ़ पता चल जाएगा कि कैसे केवल एक धर्म के लोगों को निशाना बनाया जा रहा है और एक सम्प्रदाय के लोगों का तुष्टिकरण किया जा रहा है।
उदाहरण के तौर पर-
- 1- कोर्ट रोहिंग्या मुस्लिमो के समर्थन में बावले हुए जा रहे हैं, जबकि भारत सरकार ने खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट के आधार पर कहा है कि रोहिंग्या देश के लिए ख़तरा हैं। भ्रष्ट जजों को मानवता याद आ रही है लेकिन पिछले एक दशक से अधिक वक़्त से कश्मीरी पंडित दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं, उनके लिए मानवता सोई रही।
- 2- कोर्ट ने फ़टाफ़ट जल्लिकट्टु पर बैन लगा दिया क्योंकि बैल को चोट लगने का ख़तरा होता है, मानवता की खातिर, जीव दया की खातिर। मगर बकरीद पर करोड़ों बेजुबान जीवों को हलाल कर दिया जाता है, जिससे जल प्रदूषण भी होता है, उस पर जज साहब के मुँह पर दही जम जाता है। तब सेकुलरिज्म के बुर्के में छिपे नज़र आते हैं।
- 3- कोर्ट हाजीअली दरगाह के मामले में हस्तक्षेप नहीं करना चाहती, जहाँ महिलाओं को जाने की इजाजत नहीं है। मगर शनि शिंगनापुर में महिला अधिकारों को लेकर बहुत उत्सुक थी।
- 4- दही हांडी में ऊंचाई ज्यादा होती है, चोट लग सकती है, इसलिए उस पर रोक लगा दी थी कोर्ट ने, मगर मुहर्रम में लोग खुद को और छोटे-छोटे मासूम बच्चों को चाकू और ब्लेडों से घायल कर लेते हैं, उस वक़्त कोर्ट की जबान पर ताला लग जाता है।
- 5- कोर्ट में करोड़ों केस पेंडिंग हैं, उसकी चिंता नहीं है, मुम्बई में पानीपुरी बेचने वालों के बारे में परेशान हैं।
- 6- कर्नल पुरोहित को 9 साल बाद जमानत मिली, जबकि उनके खिलाफ एक भी सबूत नहीं था और चार्जशीट तक फाइल नहीं की गयी थी, मगर सोनिया गाँधी, जिसके खिलाफ नेशनल हेराल्ड केस में प्रथम दृष्टया सबूत भी थे, उसे 9 मिनट में जमानत मिल गयी।
- 7- दोषी साबित होने के बावजूद लालू यादव को क्यों जमानत दी गयी? निर्भया बलात्कार काण्ड के सबसे खौफनाक आरोपी मुहम्मद अफरोज को क्यों छोड़ दिया गया?
- 8- दिवाली पर दिल्ली में प्रदूषण होता है मगर क्रिसमस और नए साल पर पटाखों से ऑक्सीजन निकलती है?
क्या ये सभी केस पक्षपातपूर्ण रवैय्ये को नहीं दिखाते ?
मोदी के फैसले को खारिज कर दिया सुप्रीम कोर्ट ने
इसी को देखते हुए मोदी सरकार ने कोलेजियम सिस्टम को हटाकर NJAC (नेशनल जुडिशल अपॉइंटमेंट कमीशन) को लागू करने का फैसला किया था, मगर सुप्रीम कोर्ट के जजों को इससे दिक्कत है। क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के 28 जजों में से 20 जज कांग्रेस के राज में बनाये गए थे। मोदी सरकार ने जब NJAC का प्रस्ताव पेश किया तो सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने इसे खारिज कर दिया।
क्योंकि NJAC में कोलेजियम की तरह नहीं बल्कि मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली एक कमिटी, जिसमें दो सुप्रीम कोर्ट के जजों के अलावा कानून मंत्री और समाज के दो प्रतिष्ठित व्यक्ति जजों की नियुक्ति करते हैं। इससे ना केवल न्यायपालिका का सिस्टम पारदर्शी होगा बल्कि चापलूस और भ्रष्टाचारियों की जगह काबिल लोग जज बनेंगे। इसे दो बार पेश किया गया और दोनों बार सुप्रीम कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया।
क्या कोई आम इंसान अपने केस का जज खुद ही बन सकता है? नहीं! मगर सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला खुद ही कर लिया कि उनके लिए क्या अच्छा है। सवाल ये है कि क्या ये देखा जाना चाहिए कि देश के हित में क्या है या ये देखा जाना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट के भ्रष्ट जजों के हित में क्या है?
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