राकेश सिंह
नई दिल्ली
१७ जनवरी २०१४
वह कौन थी, शोधार्थी या एजेंट? वह अरब की महिलाओं की समस्याओं पर काम कर रही थी या फिर मौखिक इतिहास पर? वह सिनेमा की छात्रा थी या अरबी कानून की छात्रा? वह विज्युअल एंथ्रोपोलोजी पर काम कर रही थी या फिर दुनिया भर के गांवों में शौचालयों की समस्या पर? अगर दुनिया के अलग-अलग देशों में वह विषयोंपर काम कर रही थी, तो भारत के प्रजातंत्र के बारे में उसने इतनी बड़ी रिपोर्ट कैसे दे दी? आखिर उसका दिल्ली आने का मकसद क्या था?
स्वराज से जनलोकपाल, जनलोकपाल से जन आंदोलन और जन आंदोलन से सत्ता का सफर। दिल्ली के मुख्यमंत्री बनते ही अरविंद केजरीवाल में एक बार फिर स्वराज के गीत गाए गए। जिस स्वराज के राग को केजरीवाल बार-बार छोड़ रहे हैं वह आखिर है क्या? यहां सवाल यह भी उठता है कि अगर इस गीत के बोल ही केजरीवाल के हैं तो गीतकार और संगीतकार कौन है? यही नहीं इसके पीछे मकसद क्या है? इन सब सवालों के जवाब ढूंढने के लिए हमें अमेरिका के न्यूयार्क शहर का रुख करना पड़ेगा।
न्यूयार्क विश्वविद्याल दुनिया भर में अपने शोध के लिए जाना जाता है। इस विश्व विद्यालय में मध्यपूर्व एवं इस्मालिक अध्ययन विषय पर एक शोध हो रहा है। शोधार्थी का नाम है शिमरित ली। शिमिरिती ली दुनिया के कई देशों में सक्रिय हैं। खासकर उन अरब देशो हमें जहां आंदोलन हुए। यह चार महीने के लिए भारत भी आई थी। भारत आने के बाद वह शोध करने के नाम पर ‘कबीर’ नामक संस्था से जुड़ गई या फिर वह कबीर संस्था से जुड़ने के लिए ही वह भारत आई थी? यह अभी रहस्य बनी है कि शिमरित ली की यह रिपोर्ट खुद उसने तैयार की या फिर अमेरिका से कराई गई।
बहरहाल उसकी रिपोर्ट पर गौर करें। उसकी रिपोर्ट में भारत के लोकतंत्र की खामियों को उजागर किया गया है। रिपोर्ट का नाम है ‘पब्लिक पावर –इंडिया एंड डेमोक्रेसी’। इसमें अमेरिका स्विटरजरलैंड और ब्राजील का हवाला देते हुए सेल्फ-रूल की वकालत की गई है। मोहल्ला सभा भी इसी रिपोर्ट का एक सुझाव है। इसी रिपोर्ट के सेल्फ रूल से प्रभावित है अरविंद केजरीवाल का स्वराज। केजरीवाल भी अपने स्वराज में जिन देशों कि व्यवस्था की चर्चा करते हैं, उन्हीं तीनों अमेरिका, ब्राजील और स्विटजरलैंड का ही जिक्र शिमिरत भी अपनी रिपोर्ट में करती है। कबीर के कर्ता-धर्ता अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसौदिया हैं।
यहां शिमिरित के भारत आने के समय पर भी गौर करने की जरूरत है। यह मई 2010 में भारत आई और कबीर से जुड़ी। वह अगस्त 2010 तक भारत रही। इस दौरान कबीर की जवाबदेही पारदर्शिता और सहभागिता पर कार्यशालाओं का जिम्मा भी शिमिरित ने ही लिया था। इन चार महीनों में ही शिमिरित ने ही ले लिया था। इन चार महीनों में ही शिमरित में ही ले लिया था। इन चार महीनों में ही शिमिरित ली ने कबीर और उनकेलोगों के लिए आगे का एजेंडा तय कर दिया। उसके भारत आने का समय महत्वपूर्ण हैं। इसे समझने से पहले संदिग्ध शिमरित ली को समझने की जरूरत है क्योंकि शिमिरित ली कबीर संस्था में रहकर न केवल भारत में आंदोलन का तानाबाना बुन रही थी, बल्कि लंदन से लेकर काहिरा, फिलिस्तीन तक संदिग्ध गतिविधियों में संलिप्त थी।
यहूदी परिवार से ताल्लुक रखने वाली शिमिरित ली की बचपन से रुचि साहित्य और कविताओं में रही। वह अमेरिका के फ्लोरिडा के जैक्सनविले शहर की रहने वाली है। 2007 मीं शिमिरित को कविता और लेखन के लिए ग्रेग आर्ट पुरस्कार से अमेरिकी सरकार के सहयोग से चलने वाली संस्था ने नवाजा। यहीं वह सबसे पहले अमेरिकी अधिकारियों के संपर्क में आयीं। जब उसे पुरस्कार मिला तब वह जेक्शन स्कूल फॉर एडवांस स्टडीज में पढ़ रही थी। यहीं से वह दुनिया के कई हिस्सों में सक्रिय होना शुरू हुई। जून 2008 में वह घाना में अमेरिकन ज्यूश वर्ल्ड सर्विस में काम करने पहुंची। वहां पर उसने गांवों में शौचालयों के निर्माण से लेकर निरंतर विकास पर अध्ययन किया।
अगस्त में वह फिर न्यूयार्क वापस आ गई। तीन महीने बाद नवंबर 2008 में वह ह्यूमन राइट वॉच के अफ्रीकी शाखा में बतौर प्रशिक्षु शामिल हुई। एक साल बाद अफ्रीकी शाखा से वह 2009 नवंबर में वापस लौट आई। 7 दिसंबर 2009 में वह ईरान में छात्र दिवस के मौके पर एक कार्यक्रम में वह शिरकत करती है। उसकी मौजूदगी को वह संदेह की दृष्टि से देखा जाता है क्योंकि इस कार्यक्रम में ईरान में प्रजातंत्र समर्थक अहमद बतेबी और हामिद दबाशी शामिल थे। ईरान के बाद उसका अगला ठिकाना भारत था। यहां यह ‘कबीर’ से जुड़ी। चार महीने में ही उसने भारतीय लोकतंत्र पर एक रिपोर्ट संस्था के कर्ताधर्ता अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया को दी। अगस्त में फिर यह न्यूयार्क वापस चली गई। उसका अगला पड़ाव होता है ‘कायन महिला संगठन’। यहां वह फरवरी, 2011 में पहुंचती है। शिमिरित ने वहां ‘अरब में महिलाएं’ विषय पर अध्ययन किया। कायन महिला संगठन में उसने वेबसाइट, ब्लॉग और सोशल नेटवर्किंग का प्रबंधन संभाला। यहां वह सात महीने रही। अगस्त 2011 तक। अभी वह न्यूयार्क विश्वविद्यालय में शोध के साथ ही अर्जेंट एक्शन फंड से
बतौर सलाहकार जुड़ी है।
पूरी दुनिया में जो सामाजिक न्याय, मानवाधिकार और स्त्री संबंधी मुद्दों पर जो प्रस्ताव आते हैं उनकी समीक्षा और मूल्यांकन का काम शिमिरित के जिम्मे है। अगस्त 2011 से लेकर फरवरी, 2013 के बीच शिमिरित दुनिया के कई ऐसे देशो में सक्रिय थी जहां उसकी सक्रियता पर सवाल उठते हैं।
इसमें अरब देश शामिल है। मिस्र में भी हशिमिरित की मौजूदगी चौंकाने वाली है। यही वह समय है जब अरब देशों में आंदोलन खड़ा हो रहा था। इस दौरान उसने एक कार्यक्रम की अध्यक्षता भी की। वह कार्यक्रम एसओएएस नामक एक इजरायल सोसायटी का था। यह बात 5 मार्च 2012 की है। इस कार्यक्रम और उसके उद्देश्यों पर भी सवालिया निशान है।
शिमिरित ली 17 वें अरब फिल्म महोत्सव में भी सक्रिय रही। इसका प्रीमियर स्क्रीनिंग सेन फ्रांसिस्को में हुआ। इसमें उन फिल्मों को प्रमुख रूप से शामिल किया गया, जिसमें हाल में जन आंदोलनों के ऊपर बनी थी। इन फिल्मों को शामिल करवाने में शिमिरित ली की अहम भूमिका रही। शिमिरित ली के कबीर संस्था से जुड़ने के समय को उसके विदेशी वित्तीय सहयोग के नजरिए से भी देखने की जरूरत है। एक बेवसाइट ने सूचना के अधिकार के तहत यह जानकारी मांगी। जानकारी के मुताबिक कबीर को 2007 से लेकर 2010 तक फोर्ड फाउंडेशन से 86,61,742 रूपए मिले। 2007 से लेकर 2010 तक फोर्ड ने कबीर की आर्थिक सहायता की। उसके बाद 2010 में अमेरिका से शिमिरित ली कबीर में काम करने के लिए आती रही हैं। वह भारतीय प्रजातंत्र का अध्ययन कर उसे खोखला बताने वाली रिपोर्ट केजरीवाल और मनीष सिसौदिया को देकर चली जाती हैं। शिमिरित के जाने के बाद कबीर को फोर्ड फाउंडेशन से दो लाख अमेरिकी डॉलर का अनुदान मिला।
इसे भारत की खुफिया एजेंसी रॉ के अपर सचिव रहे बी, रमन की इन बातों से समझा जा सकता है। ये बातें वी रमन ने 9 सितंबर, 2006 को नई दिल्ली में एनजीओ और उसकी फंडिंग पर आधारित एक किताब के विमोचन के समय कही थी। वी रमन ने कहा था कि सीआईए सूचनाओं का खेल खेलती है। इसके लिए उसने ‘वॉयस ऑफ अमेरिका’ और ‘रेडियो फ्री यूरोप’ को बतौर हथियार इस्तेमाल करती है। अपने भाषण में वी. रमन ने इस बात की भी चर्चा की कि, विदेशी खुफिया एजेंसी कैसे एनजीओ के जरिए अपने काम को अंजाम देती है। किसी भी देश में पहले से का कर रही एनजीओ का इस्तेमाल करना ज्यादा सुलभ समझती है। उसे अपने रास्ते पर लाने के लिए वह फंडिंग का सहारा लेती है। जिस क्षेत्र में एनजीओ नहीं है, वहां एनजीओ बनवाया जाता है। वी रमन एमनेस्टी का उदाहरण देते हुए कहते हैं कि एमनेस्टी इंटरनेशनल मानवाधिकार के लिए काम करने वाला चर्चित संगठन है, लेकिन एमनेस्टी इंटरनेशनल को ब्रिटेन की खुफिया एजेंसी एमआई-6 ने अपने मकसद के लिए 1964 में बनवाया था।
वी.रमन की बात का जिक्र करना इसलिए जरूरी है कि क्योंकि आज एक चर्चित फंडिंग एजेंसी दुनियाभर में सामाजिक कामों के लिए धन देती है,लेकिन इसे कहां से धन मिलता है इसका खुलासा अब हो चुका है। सीआईए ने 1955 के अपने कुछ गोपनीय दस्तावेज डी-क्लासीफाइड किया। सीआईए की ओर से जारी किए गए इन दस्तावेजो में कुछ भारत से संबंधित है। एक पत्र से पुष्टि होती है कि सीआईए फोर्ड को आर्थिक मदद करता है।
स्रोत: http://goo.gl/D8zp9u