हजारो वर्ष पहले का स्मार्ट सिटी आज से कितना बेहतर था

Lothal culture लोथल सभ्यता

आज भारत के शहरों को विकसित करके स्मार्ट सिटी बनाने की होड़ लगी हुई है। किन्तु क्या आप जानते हैं कि आज से हजारों साल पहले एक सभ्यता भी हुआ करती थी, जिसके शहर विश्व विख्यात थे। उनके आगे आज का कोई भी स्मार्ट शहर संभवतः नहीं टिकता।

यह गुजरात के अहमदाबाद ज़िले में  के किनारे 'सरगवाला' नामक ग्राम के समीप स्थित है। खुदाई 1954-55 ई. में 'रंगनाथ राव' के नेतृत्व में की गई। इस स्थल से समकालीन सभ्यता के पांच स्तर पाए गए हैं। यहाँ पर दो भिन्न-भिन्न टीले नहीं मिले हैं, बल्कि पूरी बस्ती एक ही दीवार से घिरी थी। यह छः खण्डों में विभक्त था।

जी हां यहां बात हो रही है, सैकड़ों वर्ष पुरानी सिन्धु घाटी की सभ्यता की। यूं तो इस सभ्यता में मोहनजोदड़ो, कालीबंगा, धोलावीरा और हड़प्पा कुछ प्रमुख शहर थे, लेकिन इन सबमें ‘लोथल’ सबसे अलग था। तो आईये ‘लोथल’ की ओर चलते हैं, ताकि यह जाना जा सके कि क्यों लोथल अपने समय के अन्य शहरों से अलग और खास था?
लोथल सभ्यता Lothal civilization
लोथल सभ्यता: भवन निर्माण

क्यों खास था ‘लोथल’?
लोथल 'भोगावा नदी' नदी के किनारे बसा एक प्राचीन नगर था, जो आज अहमदाबाद जिले के धोलका तालुके के सरगवावा गांव की सीमा में स्थित है। ‘लोथल’ के शब्दिक अर्थ की बात की जाये तो इसका मतलब होता है ‘मृत मानवों’ का नगर।

माना जाता है कि यह आज से करीबन चार हजार साल पहले अस्तित्व में आ गया था। इस लिहाज से यह सालों से बहुत प्रसिद्ध था, पर इसके असली स्वरूप की जानकारी तब मिली जब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की एक टीम ने वहां विजिट किया।

सन 1954 में अपने सर्वेक्षण में इस टीम ने अंदाजा लगाया कि यहां कोई न कोई सभ्यता तो रही ही होगी। इसके बाद यहां की खुदाई शुरु कर दी गई। सालों चले खुदाई कार्य के बाद यहां कई सारे ऐसे अवशेष मिले, जो सीधे तौर पर एक विकसित सभ्यता को दर्शाते हैं। यही कारण है कि पुरातत्व विभाग के लिए लोथल आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। इसके पीछे वाजिब कारण भी है। असल में हड़प्पा और मोहजोदड़ो जैसे स्थल आज भारत का हिस्सा नहीं हैं, ऐसे में लोथल हड़प्पा सभ्यता के कई रहस्यों से पर्दा उठा सकता है।
लोथल सभ्यता Lothal civilization
लोथल सभ्यता: कुआ

खुदाई से मिले अवशेष बताते हैं कि ‘लोथल’ कोई सामान्य नगर नहीं था। वह अपने आप में पूर्ण रुप से विकसित था। यहां की प्रजा भी समझदार रही होगी। यहां से मिली अलग-अलग मुहरें हड़प्पा सभ्यता के साथ इसके सीधे संबंध की गवाही देती हैं। इनके एक ओर पशुओं के चित्र बने हुए हैं, तो दूसरी ओर कुछ लिखा हुआ है, जिसे अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। हालांकि, इस लिखावट को पढ़ने का प्रयास निरंतर जारी है। माना जा रहा है कि अगर इन अक्षरों को पढ़ने के प्रयास सफल रहे, तो सिंधु सभ्यता की सामाजिक व्यवस्था, धर्म, और आर्य सभ्यता के बारे में बहुत कुछ जानना संभव हो जायेगा।

तकनीकी में आगे थे
सबसे हैरान कर देने वाली बात तो यह है कि लोथल से बंदरगाह के अवशेष मिले हैं। यह इसके पूर्वी छोर पर स्थित होने की ओर इशारा करता है। माना जा रहा है कि यह बंदरगाह विश्व का सबसे प्राचीनतम बंदरगाह है। इससे पहले इतने पुराने बंदरगाह के अवशेष कहीं से भी नहीं पाये गये हैं। इसके अलावा यहां से बड़ी मात्रा में मोती बनाये जाने के साक्ष्य मिलते हैं, जो बताते हैं कि यह औद्योगिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण रहा होगा।
लोथल सभ्यता Lothal civilization

चूंकि, लोथल खंभात की खाड़ी की समुद्र सीमा के नजदीक बसा था, मगर समुद्र के किनारे इसके नजदीक नहीं थे। इस कारण जहाज नगर तक नहीं पहुँच पाते थे। इसका हल निकालते हुए एक ऐसी व्यवस्था की गई, जिससे आसानी से औद्योगिक उत्पादनों को जहाज तक पहुंचाया जा सके। इसके तहत एक लम्बी चौड़ी नहर का निर्माण किया गया, जिसके जरिये पानी को नगर तक पहुंचाया जाता था। वहां एक बड़े क्षेत्र में पानी को इकट्ठा किया जाता था।

इस तरह से यहां के लोग बंदरगाह का निर्माण करने में सफल रहे। महत्वपूर्ण बात तो यह थी कि बंदरगाह को ईंटों से बनाया गया था। नहर के बन जाने के बाद से आसानी से कोई भी जहाज या नाव लोथल नगर तक पहुँच पाते थे। इस नहर के एक किनारे पर 12 मीटर चौड़ा प्रवेशद्वार भी था। ये प्रवेशद्वार लकड़ी का बना था, जो इस बंदरगाह के लिए लॉकिंग सिस्टम का काम करता था। कुल मिलाकर हर एक उस चीज का इंतजाम किया गया था, जिससे किसी भी प्रकार की स्थिति का सामना किया जा सके। तकनीक का यह अद्भुत नमूना इस बात को प्रदर्शित करता है कि उस समय के लोग कितने योग्य रहे होंगे! बंदरगाह के साथ पास में एक गोदाम भी बनाया गया था। इसमें आयात-निर्यात की चीजें बड़ी मात्रा में संरक्षित की जाती थीं। साथ में यहां करीब पांच नाव हमेशा मौजूद रहती थी, ताकि सामान को समय पर जहाज तक पहुंचाया जा सके।
लोथल सभ्यता Lothal civilization
लोथल सभ्यता: मुहर

लोथल की सभ्यता क्यो समाप्त हुई
लोथल की ताबाही के कई कारण बताये जाते हैं। इसमें सबसे ज्यादा प्रमुख बाढ़ को माना जाता है। माना जाता है कि 1900 ई.पू. के आसपास यहां एक तेज बाढ़ आई थी। खुदाई के दौरान जमीन से मिली अलग-अलग मिट्टी की परतें इस बात को प्रमाणित करती हैं। इसकी तबाही का दूसरा बड़ा कारण यहां बनाये गये बंदरगाह को माना जाता है। कहा जाता है कि इसी कारण पानी भारी मात्रा में आ गया था, जिसे समय से नियंत्रित नहीं किया जा सका। परिणाम यह हुआ कि पूरा नगर पानी-पानी हो गया। बाद में इस नगर को कुछ सालों बाद फिर से बसाने की कोशिश की गई, पर वह पहले जैसा नहीं बस पाया था। बाद में कुछ वक्त बाद ही वह फिर से नष्ट हो गया।

आज भी लोथल में बंदरगाह के अवशेष अच्छी स्थिति में हैं और देखने लायक भी हैं। साथ ही मोती की कलाकृति वाला म्यूजियम भी यहां बनाया गया है। बस नहर का कोई अता-पता नहीं है। माना जा रहा है कि एक लम्बा वक्त बीत जाने और बदले भौगोलिक कारणों की वजह से वह खत्म हो गई होगी।


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