हिन्दी एक वैज्ञानिक भाषा है!


हिंदी एक वैज्ञानिक भाषा
विज्ञान का छात्र होने के नाते, मेरे मन में अक्सर कई प्रश्न उठते रहते हैं। जैसे आंग्ल भाषा (English) में 26 ही वर्ण (अक्षर) क्यों होते हैं? यदि ये अनायास ही है तो इनकी संख्या राउंड फिगर में 50, 100 अथवा 20 क्यों नहीं? आज पूरे विश्व में फीट, यार्ड इत्यादि पद्धति बदल चुकी है। मैट्रिक सिस्टम में अर्थात 100 से.मी. = 1 मी., 10 मि.मी. = 1 सेमी., 1000 मी. = 1 कि.मी. वैसे ही पोंड, ओंस का भी प्रयोग नगण्य हो गया है। क्योंकि एक सरल व सुन्दर मैट्रिक सिस्टम ने इनका स्थान ले लिया है। जैसे-
  • 1000 ग्राम = 1 कि.ग्राम
  • 100 कि.ग्रा. = 1 कुंतल
  • 10 कुंतल = 1 टन

वर्णमाला (अंग्रेजी) के इन 26 वर्णों को अ इ उ ऊ.., के रूप में उच्चारित करते हैं। प्रश्न यह है कि अ को “A” ही क्यों बोलते हैं? “ने” क्यों नहीं? “X” का उच्चारण “एक्स” है, 'पेक्स' या 'टेक्स' क्यों नहीं? “Z” को ‘जेड’ बोलते हैं, ‘एड’ क्यों नहीं बोलते? या “अ” के बाद “इ” ही क्यों आता है? “उ” क्यों नहीं अथवा “ऊ” क्यों नहीं?

ये तीन प्रश्न या ऐसे ही अनेक प्रश्न हमारे जीवन की दिशा ही बदल देते हैं। जैसे एक बालक के मन में प्रश्न उठा कि सेब नीचे ही क्यों गिरता है? इस नीरस और निरर्थक प्रतीत होने वाले प्रश्न ने भूमण्डल की तस्वीर ही बदल डाली। इसी प्रश्न ने गुरुत्वाकर्षण के नियम की खोज की और यह साधारण सा बालक भविष्य में न्यूटन बन गया। इसी प्रश्न द्वारा मूल में गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत और आगे चलकर ऊर्जा का नियम, चुम्बकीय, चुम्बकीय ऊर्जा और पिछले 400 वर्षों में भूमण्डल की नई तस्वीर आज आप के सामने है। आपके हाथ में स्मार्ट फोन रूपी कम्प्यूटर के मूल में यह सेब के नीचे ही गिरने का प्रश्न है।

हम पुन: उपरोक्त तीन प्रश्नों पर आ जाते हैं
इन्टरनेट पर और अन्य बहुृभाषाविदों से भी प्रश्न पूछने पर इनका संतोषजनक उत्तर हमें प्राप्त नहीं हुआ। किंतु इन्हीं तीन प्रश्नों का उत्तर हम हिन्दी अथवा संस्कृत भाषा की देवनागरी लिपि में ढूंढ़ते हैं। आइए अपने इन 3 बदले हुए प्रश्नों को देखें-
स्वर -
अ आ इ ई उ ऊ ऋ लृ ए ऐ ओ औ अं अ:
व्यंञ्जन -
क ख ग घ ङ (क वर्ग)
च छ ज झ ञ (च वर्ग)
ट ठ ड ढ ण (ट वर्ग)
त थ द ध न (त वर्ग)
प फ ब भ म (प वर्ग)
य र ल व
श ष स ह

उपरोक्त हिन्दी भाषा की प्रचलित वर्णमाला, संस्कृत भाषा (देवनागरी लिपि) की उपवर्ग है। जिसके स्वरों में ह्रस्वदीर्घ के अलावा प्लुत भी होते हैं और कुछ अयोगवाह भी होते हैं। इस प्रकार कुल 63 अक्षर होते हैं।

हमारी भाषा में 63 ही अक्षर क्यों हैं? सीधे 50 या 100 क्यों नहीं?
  • ‘क’ का उच्चारण ‘क’ ही क्यों है? 'एक्स' या 'अलिफ' की भांति क्यों नहीं?
  • ’ के बाद ‘’ क्यों आता है, ‘’ क्यों नहीं? वैसे ही क-वर्ग के बाद च-वर्ग ही क्यों आता है? ट-वर्ग क्यों नहीं?

इन प्रश्नों के उत्तर का प्रारंभ हम देवनागरी की इस विशेषता से करते हैं। ‘’ का उच्चारण उच्च ध्वनि से करें। ध्यान दें, आपके दोनों ओष्ठ चिपक गये हैं। क्या ऐसा भी संभव है कि होठों को बिना सटाए भी हम ‘’ का उच्चारण कर सकें? नहीं! शायद नहीं, शायद नहीं, अपितु कतई नहीं। ऐसे ही आप ‘’ का उच्चारण जोर से करें। अबकी बिना होठों को सटाए। नहीं श्रीमन, बिल्कुल नहीं कर सकते। जरा ध्यान दें, ‘प फ ब भ म’ ये पांचों अक्षर ओष्ठ से बोले जाने के कारण इन्हें ओष्ठ्य कहते हैं।

विशेष - क्या ‘प’ वर्ग (प फ ब भ म) के अलावा भी किसी अक्षर के बोलने में ओष्ठ का प्रयोग हुआ? यथा क, च, ट, य। नहीं जी, बिल्कुल नहीं।

एक अन्य प्रश्न स्वयं से पूछें-  
‘क’ का उच्चारण ‘क’ ही क्यों है? कण्ठ से निकलने वाली सबसे छोटी ध्वनि है ‘क’। आपके मन में संदेह पैदा हुआ। वह कैसे?

मैं तो तीन सेकेण्ड में ‘क’.... बोलता हूं फिर यह सबसे छोटी ध्वनि कैसे हुई? इसे सवाल-जवाब के माध्यम से समझते हैं।

उत्तर - आपने क बोलते समय 98 प्रतिशत समय में ‘अ’ ही बोला है। बिना ‘अ’ के ‘क’ बोलने का तरीका- आप क्लेश बोलें। अब क्लेश में से लेश निकालकर मन में ध्यान दें, कितने सेकेण्ड के घर्षण में आपने ‘क’ का उच्चारण किया है। यही क्लेश का ‘क्’ मूल अक्षर है, कण्ठ से उत्पन्न। क्या यह ध्वनि सबसे छोटी नहीं?

अक्षर- अक्षर (अ+क्षर) (नहीं हो सकता क्षय जिसका) अर्थात और छोटा नहीं तोड़ सकते जिसको।

इसी प्रकार ‘प्’ की ध्वनि और सूक्ष्मता जानने हेतु प्रेम बोले। ध्यान दें, प्रेम में 98 प्रतिशत से ज्यादा समय रेम (प्रेम = प्+रेम) बोलने में लगा है। ‘प्’ में तो संभवत: 2 प्रतिशत से भी कम समय लगा है। यह है ओष्ठ से बोली जा सकने वाली सबसे छोटी ध्वनि।

इसलिए ‘क’ को ‘क्’ ही बोलते हैं। एक्स या अलिफ ध्वनि की सबसे छोटी इकाई नहीं है। वर्णमाला के सदस्यों को अक्षर कहना ही आपके दूसरे प्रश्न का उत्तर हुआ।

अब आते हैं प्रथम प्रश्न पर। इन वर्णों (अक्षरों) की संख्या 63 ही क्यों है?  
आप अपने मुख से कुल 63 प्रकार की ही ध्वनि निकाल सकते हैं। कोई 64वीं प्रकार की ध्वनि नहीं बोल सकते हैं। कई प्रति प्रश्न हो सकते हैं, इस उत्तर के, जैसे: यहां तो 63 वर्ण हैं, बहुत से लोग हैं इस भूमंडल पर जो 33 वर्ण भी नहीं बोल सकते। जैसे अंग्रेज तो त, थ इत्यादि नहीं बोल सकते वे ‘त’ के स्थान पर ‘ट’ बोलते हैं। भला वे तीन प्रकार से ‘स’ (श ष स) कैसे बोल सकते हैं? इसके साथ ही भूमण्डल पर न जाने कितनी वनवासी जनजातियां हैं, जो 10 या 20 प्रकार के भी वर्ण नहीं बोलते।

उत्तर : तो ध्यान दें, नहीं बोलना एक बात है और नहीं बोल सकना दूसरी बात। यदि इन अंग्रेजों के बच्चे भी बचपन से वर्णमाला के 63 अक्षरों का अभ्यास करें तो वे अवश्य बोल सकते हैं। अन्यथा एक वृद्ध अंग्रेज भी ‘त’ नहीं बोलता। क्योंकि उसकी भाषा में ‘त’ तो था/ है ही नहीं। अरे! अंग्रेजों या वनवासियों की बात छोड़िये, भूमण्डल का कोई भी मनुष्य इन सभी 63 वर्णों को बोल सकता है, आवश्यकता है अभ्यास की। चाहे तो अभ्यास बचपन से ही करा लो या बड़ा होने पर।

प्रतिप्रश्न 2 : क्या प्रमाण है कि मनुष्य सिर्फ 63 प्रकार की ही ध्वनि बोल सकता है? 64वीं नहीं।
प्रतिउत्तर - सभी 63 प्रकार के वर्णों का ज्ञान व अभ्यास करना-कराना इस लेख में तो संभव नहीं है। किन्तु जब चावल पक रहा हो तो एक दाने को भी दबाकर हम जान सकते हैं कि पूरा चावल पका या नहीं। जैसे ओष्ठ से निकल सकने वाली 5 ध्वनि प फ ब भ म और उ ऊ और उपहमानिय (अयोगवाहों में से) इनके अलावा कोई भी स्वर या व्यञ्जन (अक्षर) ओष्ठ के सहयोग से नहीं बोले जाते, आप स्वयं खोज कर देखें।

-वेद प्रकाश बरनवाल (लेखक, वरिष्ठ अभियन्ता हैं)

( साभार: पांचजन्य)

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