अगस्ता वेस्टलैंड में गर्दन फंसता देख राहुल गांधी और उनके इंटरनेशनल साथियों का राफेल सौदे पर झूठा बवंडर!


Rafael deal राफेल डील
अगस्ता वेस्टलैंड के मुख्य दलाल क्रिश्चियन मिशेल का दुबई से प्रत्यर्पण की खबर आते ही कांग्रेस, उसके विदेशी साथी और कांग्रेस के पे-रोल पर पलने वाले ‘पेटिकोट पत्रकार’ सक्रिय हो गये हैं। अगस्ता वेस्टलैंड में कांग्रेस का ‘विशेष परिवार’ के साथ पीडी पत्रकारों पर भी करोड़ों का घूस लेने का आरोप है। खुद को फंसता देख इस गिरोह ने राफेल को और जोर-शोर से उछालते हुए फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति ओलांद का इस्तेमाल किया है। फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति अपनी एक सहयोगी जूलिए गायेट से सम्बंधित एक खुलासे को लेकर पहले ही भारत सरकार पर बिफरे हुए है। ऐसे में मौजूद तथ्य कांग्रेस पार्टी और फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति ओलांद, दोनों के कुकर्म को सामने लाते हैं।

कांग्रेस का यह भेद खुल गया है कि वह मुकेश अंबानी की कंपनी को 2012-13 में ही इसमें घुसा चुकी थी। यही नहीं १२६ राफेल विमान के एवज में ‘परिवार विशेष’ मोटे कमीशन की लालसा में था, लेकिन इस कमीशनखोरी के चक्कर में डील नहीं हो सका। यह फैक्ट भी सामने आ रहा है कि अमेरिकन हथियार कंपनी एवं चीन-पाक का हित भी राफेल के डील को जानने ओर इसे रद्द करने को लेकर है। ताकि भारत की वायु सेना मजबूत न हो सके। आरोप है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी सत्ता और कमीशन के लिए इन अंतरराष्ट्रीय साजिशों को बढाने में योगदान दे रहे हैं।

राफेल में परत-दर-परत साजिशों को बेनकाब करती इस रिपोर्ट को पढ़िए, सब पता चल जाएगा….
आखिर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को छोटी सी बात समझ में क्यों नहीं आती कि झूठ के पांव नहीं होते और सच को साक्ष्य की आवश्यकता नहीं होती? आखिर अभी तक उन्हें ये क्यों नहीं समझ आया कि वह एक झूठ बोलते नहीं या किसी दूसरे के झूठ को उछालते नहीं कि उसके खिलाफ ढेरों साक्ष्य की बर्फबारी होनी शुरू हो जाती है? जिस राफेल डील पर फेक बवंडर खड़ा करने के प्रयास में उनका झूठ सिर चढ़ कर बोल रहा है, वह उन्हीं की यूपीए सरकार ने की थी। जिस राफेल डील को उनकी यूपीए सरकार ने पारभासी तरीके से शुरू की थी, जिसे पूरा होने की कोई उम्मीद भी नहीं बची थी। उसी डील को बड़े ही पारदर्शी और बेहतर तरीके से मोदी सरकार ने अंजाम दिया है।

अपने लोगों को हिस्सा नहीं मिल पाने की वजह से राहुल गांधी इस डील को लेकर इतने नाराज हैं कि रिलायंस डिफेंस कंपनी को लाभ पहुंचाने का आरोप मोदी सरकार पर लगा रहे हैं और लगवा भी रहे हैं। लेकिन उन्हें समझना चाहिए कि इस खिलाड़ी का चुनाव उन्हीं की मनमोहन सरकार ने किया था। यह तो संयोग है कि पारिवारिक बंटवारे के तहत यह कंपनी मुकेश अंबानी के हिस्से से निकल कर अनिल अंबानी के हिस्से में आ गई। इतने साक्ष्य सामने आने के बाद भी फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति ओलांद के बयान को ब्रह्म-सत्य मानकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला करना शुरू कर दिया है। जबकि ओलांद के बयान की सत्यता की जांच हुई भी नहीं है।

2012 में राहुल की कांग्रेस सरकार के कहने पर “आरआईएल” को मिला था कंट्रैक्ट
फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति फ्रांस्वा ओलांद जिस झूठ के तहत मोदी सरकार पर अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस कंपनी को तरजीह देने का आरोप लगाया है, वह कितना निराधार है। इसे इस तथ्य से समझा जा सकता है। दरअसल यूपीए सरकार ने ही मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज को फ्रांसीसी कंपनी डसाल्ट एविएशन के साथ कंट्रैक्ट करने की पैरवी की थी। ध्यान रहे कि पहली राफेल डील में ऑफसेट क्लाउज निर्धारित करने का अधिकार यूपीए सरकार ने अपने पास रखा था। जबकि मोदी सरकार ने जो डील की है उसमें यह अधिकार फ्रांसिसी कंपनी डसॉल्ट के पास है। जिसका खुलासा फ्रांसिसी सरकार ने खुद किया है। तभी तो 2012 में दोनों सरकारों के बीच डील पक्की होने के दो सप्ताह बाद ही मुकेश अंबानी ने रक्षा क्षेत्र में जाने के ऐलान के साथ इसके लिए एक नई कंपनी रिलांयस एयोरोस्पेस टेक्नोलॉजी लिमिटेड (RATL) बनाने की घोषणा की थी। यह वही कंपनी है जो बाद में पारिवारिक बंटवारे के तहत अनिल अंबानी के हिस्से में आ गई और अनिल अंबानी ने उस कंपनी का नाम बदल कर रिलायंस डिफेंस इंडस्ट्रीज रख लिया। ऐसे में मोदी सरकार पर फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति ओलांद का रिलायंस डिफेंस कंपनी को लाभ पहुंचाने का आरोप महज गलत ही नहीं है बल्कि साजिश का हिस्सा भी है।

राफेल डील के महज दो सप्ताह बाद ही डसॉल्ड-रिलायंस का हुआ समझौता
12 फरवरी 2012 को प्रकाशित रॉयटर्स रिपोर्ट के मुताबिक फ्रांसिसी रक्षा कंपनी डसॉल्ट को जैसे ही 15 बिलियन का राफेल कंट्रैक्ट मिलने की घोषणा हुई उसके ठीक दो सप्ताह बाद ही मुकेश अंबानी की रिलायंस कंपनी ने डसॉल्ट के साथ समझौता किया था। सवाल उठता है कि क्या इसके लिए उस समय तत्कालीन यूपीए सरकार को नियंत्रित करने वाली सोनिया गांधी या यूपीए सरकार की आलोचना की गई थी? जबकि ऑफसेट क्लॉज का अधिकार यूपीए सरकार के पास ही था। जबकि इस नए डील के तहत ऑफसेट क्लॉज का अधिकार बिडर कंपनी यानि डसॉल्ट के पास है। अब सवाल उठता है कि आखिर मोदी सरकार की आलोचना किस आधार पर की जा रही है? जबकि सारा किया हुआ यूपीए सरकार का है।


भारत में डसाल्ट कंपनी का पहला एजेंट था क्रिश्चियन मिशेल
जिस क्रिश्चियन मिशेल के दुबई जेल से प्रत्यर्पण की खबर सुनते ही राहुल गांधी राफेल डील पर एक बार फिर बड़ा बवंडर खड़ा करने में जुटे हैं। यह वही क्रिश्चियन मिशेल है जो मिराज विमान डील के समय भारत में डसॉल्ट कंपनी का पहला एजेंट था। इसी मिशेल पर अगस्ता वेस्टलैंड हेलिकॉप्टर घोटाला मामले में करोड़ों रुपये की दलाली खाने का आरोप है। जब मिशेल डसॉल्ट कंपनी का भारत में एजेंट था, उसी समय यूपीए सरकार की पहल पर मुकेश अंबानी ने रक्षा क्षेत्र में अपना हाथ आजमाने का निर्णय लिया था।


राहुल गांधी को आखिर पूर्व फ्रांस राष्ट्रपति ओलांद पर भरोसा क्यों
भाजपा के कैबिनेट मंत्री अनंत कुमार का कहना है कि राहुल गांधी का झूठ सर चढ़कर बोलना शुरू कर दिया है। उन्होंने कहा है कि उन्हें फ्रांस की वर्तमान सरकार के बयान पर भरोसा नहीं है लेकिन पूर्व राष्ट्रपति ओलांद के झूठ पर ज्यादा भरोसा है। तभी तो राहुल गांधी ने गलत जानकारी देनी शुरू कर दी है। उनका कहना है कि डसॉल्ट कंपनी के बारे में फ्रास सरकार झूठ बोल रही है। जबकि सचाई यह है कि रिलायंस इंडस्ट्री ने 2012 में ही डसॉल्ट एविएशन के साथ रक्षा तथा घरेलू सुरक्षा को लेकर साझेदारी पर समझौता कर लिया था। उस समय देश में राहुल गांधी की कांग्रेस पार्टी सत्ता में थी और फ्रांस के राष्ट्रपति यही ओलांद थे। जबकि अभी राहुल गांधी की तरह ही ओलांद भी अभी सत्ता से बाहर हैं। कहीं यही कारण तो नहीं कि राहुल गांधी भारत में और ओलांद फ्रांस में एक्सपोज्ड होने से बचने के लिए अपनी-अपनी सरकारों पर हमला करने की रणनीति के तहत ये खेल खेल रहे हैं? यही वजह है कि राहुल गांधी वर्तमान सरकार की बजाए पूर्व राष्ट्रपति ओलांद पर ज्यादा भरोसा जता रहे हैं।  



पार्टनर चुनने में मोदी सरकार की कोई भूमिका नहीं: डसॉल्ट
राहुल गांधी झूठ का बवंडर खड़ा करने का जो भी प्रयास कर लें, लेकिन वे अपने झूठ को साबित करने में कभी सफल नहीं हो पाएंगे। क्योंकि इस डील को लेकर फ्रांसिसी सरकार तथा डसॉल्ट कंपनी कई बार यह स्पष्ट कर चुकी है कि भारत में पार्टनर चुनने में मोदी सरकार की कोई भूमिका नहीं है। इसके साथ ही डसॉल्ट कंपनी यह भी साफ कर चुकी है कि चूंकि पहले मुकेश अंबानी की कंपनी से समझौते के समय हुई बातचीत से वह काफी प्रभावित थी। इसी कारण अनिल अंबानी की कंपनी चुनने में उन्हें कोई परेशानी भी नहीं हुई। पहले की डील में तो ऑफसेट क्लॉज के तहत बंधी भी थी जबकि मोदी सरकार के साथ हुई डील के तहत ऑफसेट क्लॉज का अधिकार भी उसी के पास था। इसलिए पार्टनर के चयन में मोदी सरकार के दखल की बात बिल्कुल निराधार है। इसमें मोदी सरकार की कभी कोई भूमिका नहीं रही है।

इसी तरह फ्रांस सरकार ने काफी स्पष्ट तरीके से बयान दिया है कि डसॉल्ट कंपनी के पार्टनर तय करने में भारत सरकार ने कभी कोई दखल नहीं दी है। डसॉल्ट ने स्वतंत्र रूप से अनिल अंबानी की कंपनी को अपना पार्टनर बनाने का फैसला किया है। फिर भी कांग्रेस पार्टी खासकर राहुल गांधी और उनके अंतरराष्ट्रीय पार्टनर के अलावा देश के मोदी विरोधी मोदी सरकार की पारदर्शिता पर यकीन नहीं। अब जब राफेल डील पर इतने तथ्य सामने आ गए हैं तो यही लोग मोदी सरकार पर फ्रांस सरकार को भी खरीदने का आरोप लगा दें तो कोई बड़ी बात नहीं। अभी फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति ओलांद के बयान की सत्यता की जांच हो ही रही है। लेकिन देश के कुछ लोग उसके बयान को फ्रांस सरकार के आधिकारिक बयान से भी ज्यादा तरजीह देना शुरू कर दिया है।


दरअसल ओलांद का बयान तत्कालीन यूपीए सरकार के संदर्भ में था
जबकि फ्रांस में ही ओलांद के बयान पर सवाल खड़े होने लगे हैं। कहा जा रहा है कि ओलांद के जिस बयान को मोदी सरकार के संदर्भ में माना जा रहा है, दरअसल वह तत्कालीन यूपीए सरकार के संदर्भ में दिया गया बयान है। जबकि ओलांद ने राफेल डील और मोदी सरकार को लेकर इस प्रकार का कोई बयान दिया ही नहीं है। दरअसल भारत के रवीश कुमार और राजदीप सरदेसाई जैसे फेक न्यूज प्रचारित करने वाले पत्रकार हर देश में होते हैं। फ्रांस में भी कार्ल लस्के तथा एंटॉन रगेट जैसे पत्रकार वैसे ही हैं। इन्हीं दोनों पत्रकारों ने अपना पुराना ब्लॉग रिपब्लिश किया है। जी हां जो ब्लॉग 2012 में प्रकाशित किया गया था, उसी को पुनर्प्रकाशित किया है। दरअसल ओलांद के बयान तत्कालीन यूपीए सरकार के संदर्भ में प्रकाशित हुए थे, जिसे अब इस सरकार के संदर्भ में बताया जा रहा है। लेकिन भारत के बिकाऊ मीडिया उसी ब्लॉग को आधार बनाकर देश में झूठ का बवंडर खड़ा कर दिया है। उस पुराने ब्लॉग के शीर्षक बदल-बदल कर झूठा विमर्श तैयार किया जा रहा। देश की जनता को गुमराह करने के लिए यह बताने का असफल प्रयास किया जा रहा है कि फ्रांस के पूर्व राष्ट्रपति ने रिलायंस कंपनी पर बयान देकर राफेल डील पर सवाल उठाया है।

~ अवधेश मिश्रा



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