हिंदी समाचार पत्रों में झूठी कहानियाँ |
पिछले कुछ दिनों से सेक्यूलरग्रंथी से पीडि़त मीडिया और पत्रकारों ने भगवान श्रीबद्रीनाथ जी की आरती के नाम पर एक फेक नरेशन को स्थापित करने का प्रयास किया है कि एक मुसलिम बदरुद्दी ने इस आरती की रचना की थी! ताज्जुब तो तब होता है जब अंग्रेजी मीडिया के साथ दैनिक जागरण और अमर उजाला जैसे हिंदी अखबार भी हीन-भावना के शिकार होकर इस फेक विमर्श को बढ़ाने के लिए खबर छापते र्हैं! इन हिंदी अखबारों ने शोध की जगह मानसिक गुलामी का परिचय देकर पाठकों को छलने का प्रयास किया है।
सारा शोध यह चीख-चीख कर कह रहा है कि भगवान बद्रीनाथ की आरती मुसलिम बदरुद्दीन ने नहीं, बल्कि रुद्रप्रयाग निवासी हिंदू धन सिंह बर्त्वाल ने 1881 में लिखी थी। इसकी मूल पांडुलिपी भी मौजूद है। लेकिन मानसिक गुलाम पत्रकार और मीडिया हाउस को तो हिंदू संस्कृति के गर्व को बार-बार कुचलने में मजा मिलता है। सो, ऐसों के लिए तो अमरनाथ की खोज भी एक मुसलिम ने किया था और बद्रीनाथ की आरती भी किसी मुसलिम ने लिखी है! पता नहीं, ऐसे लोग अपने बाप-दादा को असली कैसे मानते हैं? आइए ऐसे फेक न्यूज, फेक नरेशन व फेक परसेप्शन को ध्वस्त करने के इस अभियान को आगे बढ़ाएं। पढि़ए भगवान बद्रीनाथ जी की आरती के रचनाकर्मी से जुड़े वास्तविक शोध को, लेखक गंभीर सिंह बिष्ट की कलम से…!
पिछ्ले कई वर्षों से विश्व प्रसिद्ध भगवान श्री बद्रीनाथ जी की 7 पदों की आरती “पवन मन्द सुगन्ध शीतल, हेम मन्दिर शोभितम” को लेकर पूरे देश व दुनिया में कुछ तथाकथित लोगों के द्वारा यह भ्रम फैलाया गया था कि यह पावन आरती किसी मुस्लिम बदरुद्दीन शाह द्वारा लिखी गयी है। जिसका कोई पुख्ता प्रमाण व साक्ष्य आज तक मौजूद नहीं थे, लेकिन रुद्रप्रयाग जिले के सतेराखाल निवासी मालगुजार स्व. धन सिंह बर्त्वाल जी द्वारा सन् 1881 में यह आरती की रचना कर दी गयी थी जिसकी जानकारी उनके परिवार के लोगों व देश दुनिया को कई वर्षों तक नहीं मिली!
भगवान बद्रीनाथ का मंदिर |
लेकिन अब जाकर उनके पड़पौत्र श्री महेन्द्र सिंह बर्त्वाल द्वारा 1881 में लिखी गयी आरती की 137 साल पुरानी पाण्डुलिपि अपने घर में मिलने के बाद, उनके द्वारा इस विषय पर गहरा अध्ययन किया और पाया कि वर्तमान में गायी जाने वाली आरती एक समान है और एक ही अन्तर है वर्तमान आरती का पहला पद “पवन मन्द सुगन्ध शीतल” स्व. धन सिंह बर्त्वाल द्वारा लिखी गयी आरती का पांचवां पद है। जिससे पता चलता है कि मूल आरती 11 पदों की है और वर्तमान में सिर्फ 7 पद ही गाए जाते हैं। जिससे उनके मन में इच्छा जागृत हुई कि पिछ्ले कई वर्षों से आरती के लेखक के बारे में फैलाये झूठ को देश व दुनिया के सामने लाना और आरती के असली लेखक को उनकी सही पहचान दिलाना।
इस काम में उनका सहयोग किया सतेराखाल निवासी सामाजिक कार्यकर्ता श्री गम्भीर सिंह बिष्ट ने जो कि गढ़वाल विश्विद्यालय के शोध छात्र भी हैं उन्होंने इस कार्य में उनका पूरा सहयोग किया और उसके बाद श्री बिष्ट के प्रयासों से यह खबर सोशल, प्रिंट, इलेक्ट्रानिक मीडिया में आग की तरह फैल गयी। और आरती के असली लेखक को पहचान दिलाने के लिये पूरे प्रदेश और देश में चर्चाओं का दौर शुरु हो गया।
बदरुद्दीन के इतिहास को भी पूरी तरह से खंगाला गया और पाया कि बदरुद्दीन सिर्फ एक कोरी कल्पना है, जिसको कुछ प्रोपेगेन्डा करने वाले लोगों द्वारा कई वर्षों तक देश व दुनिया के सामने झूठ परोसा गया। जब इस पाण्डुलिपि की यूसैक के निदेशक प्रो. एमपी एस बिष्ट ने भी जाँच की तो पाया कि यह आरती ही बद्रीनाथ जी की मूल आरती है, इसके बाद जिलाधिकारी रुद्रप्रयाग ने भी पाण्डुलिपि को देखा तो माना कि यह एक अमूल्य धरोहर है जिसको संजोये रखना हमारा कर्तव्य है।
इसके बाद “श्री बद्री केदार मन्दिर समिति” के मुख्य कार्याधिकारी श्री बी.डी. सिंह ने बद्रीनाथ मन्दिर के वेदपाठी व मुख्य पुजारी के साथ सतेराखाल क्षेत्र में स्व. धन सिंह बर्त्वाल के पैतृक घर पर हुए एक भव्य आयोजन के दौरान आरती की 137 साल पुरानी पाण्डुलिपि का तिलक व पूजन करके अंगीकृत कर दिया गया और पाण्डुलिपि के संरक्षक श्री महेन्द्र सिंह बर्त्वाल को भगवान श्री बद्रीनाथ जी का अंगवस्त्र पहनाकर सम्मानित किया और सामाजिक कार्यकर्ता श्री गम्भीर सिंह बिष्ट के अथक प्रयास की भी खुले दिल से सराहना की और साथ ही और बताया कि जल्द ही मन्दिर समिति की आगामी बैठक में इस आरती पर मुहर लगेगी।
साथियों सदियों से हमारे गौरवशाली इतिहास को कुछ देशविरोधी लोगों के द्वारा तोड़ मरोड़कर पेश किया गया। लेकिन वक्त आ गया है अपने इतिहास व अपने पूर्वजों पर गर्व करने का क्योंकि अब स्पष्ट हो गया है कि श्री बद्रीनाथ जी की आरती के असली लेखक कोई बदरुद्दीन नहीं बल्कि स्व. धन सिंह बर्त्वाल हैं। ऐसे विद्वान महापुरुष को शत शत नमन!
साभार: गंभीर सिंह बिष्ट
(ISD)
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