१५ अगस्त के समाचार |
आज की रात तो भारत मानो सोया ही नहीं है। दिल्ली, मुम्बई, कलकत्ता, मद्रास, बंगलौर, लखनऊ, इंदौर, पटना, बड़ौदा, नागपुर... कितने नाम लिए जाएं। कल रात से ही देश के कोने-कोने में उत्साह का वातावरण है। इसीलिए इस पृष्ठभूमि को देखते हुए कल के और आज के पाकिस्तान का निरुत्साहित वातावरण और भी स्पष्ट दिखाई देता है।
रात भर शहर में घूम-घूमकर, स्वतंत्रता का आनंद लेने के पश्चात सभी लोग अपने-अपने घरों में पहुंच चुके हैं और उन्हें इंतज़ार है, आज सुबह के समाचारपत्रों का। भारत के इस स्वतंत्रता समारोह का वर्णन इन अखबारों ने कैसा किया होगा? लेकिन आज के अखबार कुछ देर से ही आए। क्योंकि सभी अखबारों को संविधान सभा के मध्यरात्रि वाले समाचार प्रकाशित करने थे। प्रत्येक अखबार ने आज आठ कॉलम का शीर्षक छापा है।
★ दिल्ली के ‘हिन्दुस्तान टाईम्स’ ने शीर्षक दिया है – India Independent : British Rule Ends.
★ कलकत्ता के ‘स्टेट्समैन’ का शीर्षक है – Two Dominions are Borne.
★ दिल्ली के ‘हिन्दुस्तान’ ने बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा है - ‘शताब्दियों की दासता के बाद, भारत में स्वतंत्रता की मंगल प्रभात’।
★ मुम्बई का ‘टाईम्स ऑफ इण्डिया’ लिखता है – Birth of India’s Freedom.
★ कराची से प्रकाशित होने वाले ‘डॉन’ का शीर्षक हैं – Birth of Pakistan – an Event in History.
______________
कलकत्ता शहर भी रात भर जाग रहा था। जनता को देश की स्वतंत्रता के स्वाद का अनुभव पूरी तरह से लेना था। आज कलकत्ता के वातावरण में एक चमत्कारिक बदलाव दिखाई दे रहा हैं। कहीं से भी हिन्दू-मुस्लिम तनाव की कोई खबर नहीं हैं। मात्र दो-तीन दिनों पहले जो हिन्दू और मुसलमान एक दूसरे के खून के प्यासे हो रहे थे, आज वही आपस में गले मिल रहे हैं। पूरे शहर में हिन्दू-मुस्लिम एकता के नारे लगाए जा रहे हैं। और निश्चित ही इस जादुई चमत्कार का पूरा श्रेय, बेलियाघाट की हैदरी मंज़िल जैसे साधारण हवेली में बैठे गांधीजी को ही जाता है।
हैदरी मंज़िल इन दिनों कलकत्ता वासियों के लिए एक तीर्थक्षेत्र बना हुआ है। कल से ही लोगों के जत्थे के जत्थे, भले ही दूर से ही, लेकिन गांधीजी के दर्शनों के लिए लगातार चले आ रहे हैं। आज का दिन भी ऐसा ही रहेगा, ऐसी संभावना लग रही है। लेकिन गांधीजी के लिए आज का दिन हमेशा की तरह सामान्य ही हैं। प्रतिदिन के नियमानुसार आज भी वे तड़के तीन बजे जाग गए थे। आज उन्होंने अपने कामों की सूची में शौचालय की सफाई का कार्य जोड़ा था। यह सारे कार्य सम्पन्न करके गांधीजी रोज की तरह प्रातः भ्रमण के लिए निकले। आज दिन भर वे उपवास रखने वाले थे और अधिकांश समय सूत कताई में बिताने वाले थे।
________________
स्थान: सिंगापुर
इधर भारत में सुबह के साढ़े आठ बज रहे हैं, तो उधर सिंगापुर में सुबह के ग्यारह..। आर्चर रोड, वाटरलू स्ट्रीट, सेरंगून रोड जैसे इलाकों में भारतीय समुदाय ने भारत की स्वतंत्रता के उपलक्ष्य में ध्वजारोहण के बड़े-बड़े कार्यक्रम आयोजित किए हुए हैं। इस कार्यक्रम के लिए राष्ट्रगीत कौन सा रखना चाहिए इस बारे में भ्रम की स्थिति है। इसलिए सिंगापुर के भारतीयों ने इस गीत को भारत के राष्ट्रगीत के रूप में गाना शुरू किया है –
सुधा, सुख चैन की बरखा बरसे
भारत भाग हैं जागाI
पंजाब, अवध, गुजरात, मराठा
द्रविड़, उत्कल, बंग
चंचल सागर, विन्ध्य हिमाला
नीला जमुना गंगा
तेरे नित गुण गाये
तुझसे जीवन पायें
सब तन पाये आशा
सूरज बनकर जग पर चमके
भारत भाग हैं जागा II
जय हो, जय हो, जय हो, जय जय जय जय हो...!
भारत भाग हैं जागाI
पंजाब, अवध, गुजरात, मराठा
द्रविड़, उत्कल, बंग
चंचल सागर, विन्ध्य हिमाला
नीला जमुना गंगा
तेरे नित गुण गाये
तुझसे जीवन पायें
सब तन पाये आशा
सूरज बनकर जग पर चमके
भारत भाग हैं जागा II
जय हो, जय हो, जय हो, जय जय जय जय हो...!
________________
स्थान: कलकत्ता, बेलियाघाट
सुबह के नौ बजे हैं, भारत सरकार के ‘सूचना और प्रसारण मंत्रालय’ के अधिकारी, अपने सारे उपकरण लेकर गांधीजी की प्रतिक्रिया लेने के लिए आए हुए हैं। परन्तु गांधीजी का उत्तर एकदम सपाट स्वर में है कि, “मेरे पास बताने के लिए कुछ नहीं है”, परन्तु उन्हें फिर से आग्रह किया गया कि ‘यदि आज के दिन आप कोई सन्देश नहीं देंगे तो वह ठीक नहीं लगेगा’, इसके बावजूद गांधीजी का सीधा-सपाट सा उत्तर है कि,“ मेरे पास कोई सन्देश नहीं है। यदि यह ठीक नहीं दीखता, तो ऐसा ही सही”। कुछ देर के बाद बी.बी.सी. के प्रतिनिधि भी आए। इनका प्रसारण समूची दुनिया में होने वाला हैं। लेकिन गांधीजी ने उन्हें भी ठीक यही उत्तर दिया।
________________
स्थान: दिल्ली, वॉईस रीगल पैलेस…
भूतपूर्व वॉईसरॉय लोगों का निवास स्थान। अर्थात राजप्रासाद। अब यह ‘गवर्नमेंट हाउस’ हो गया है। और भारत के पहले गवर्नर जनरल, लॉर्ड माउंटबेटन आज यहीं पर शपथ ग्रहण करने वाले हैं। इस गवर्नमेंट हाउस का विशाल दरबार हॉल, आज के इस अवसर हेतु काफी सजाया गया है। सुबह का समय होने के बावजूद हॉल में स्थित बड़े-बड़े लाईट और झूमर प्रकाशमान किए गए हैं। ठीक नौ बजे औपचारिक कार्यक्रम शुरू हुआ। चांदी की तुरही बजाकर कार्यक्रम का आरम्भ किया गया। इसके पश्चात शंखध्वनि की गई। इस वाइसरॉय हाउस की दीवारों ने अपने जीवन में पहली ही बार तुरही और शंख की आवाज़ सुनी है।
नेहरू और माउन्टबेटन साथ मे एडविना |
भारत के पहले मुख्य न्यायाधीश, सर हरिलाल जयकिशन दास कानिया के सामने कड़क पोशाक में लॉर्ड माउंटबेटन खड़े हुए। उन्होंने बाईबल का चुम्बन लिया और अपनी शपथ का उच्चारण किया। पूरा दरबार हॉल, मंत्री, संविधान सभा के सदस्यों और अधिकारियों से भर गया है। लेकिन ऐसे अवसरों पर नियमित रूप से उपस्थित रहने वाले राजे-रजवाड़े आज अनुपस्थित हैं।
________________
स्थान: कलकत्ता, बेलियाघाट
सुबह के आठ बजे गांधीजी ने सूत कताई करते-करते अपनी ब्रिटिश मित्र मिस अगाथा हैरिसन के लिए एक पत्र डिक्टेट करवाया। इसमें उन्होंने मजाक-मजाक में लिखा, ‘तुमने राजाजी के मार्फ़त भेजा हुआ पत्र मुझे मिला। ज़ाहिर है कि राजाजी स्वयं तो यहां आकर यह पत्र दे नहीं सकते थे। क्योंकि कल रात से ही उनके गवर्नर हाउस में, ‘अंग्रेजों का घर देखने के लिए’ ढेरों सर्वसामान्य जनता इकठ्ठा हुई है...!’ इसके बाद गांधीजी ने पश्चिम बंगाल के नवनियुक्त मंत्रियों के लिए एक पत्र डिक्टेट किया। इस पत्र में प्रमुखता से उन्होंने अपने पसंदीदा तत्वों, अर्थात ‘सत्य, अहिंसा और नम्रता’ का पालन करने का आग्रह किया। ‘सत्ता’ की बुराईयों के बारे में आगाह करते हुए उन्होंने लिखा, ‘ध्यान रहे कि सत्ता भ्रष्ट बनाती है... यह बात न भूलें कि आप लोग यहां गरीबों की सेवा करने आए हैं’।
गांधीजी व राजगोपालाचारी |
थोड़ी देर बाद, अर्थात लगभग सुबह दस बजे, पश्चिम बंगाल के नवनियुक्त गवर्नर, चक्रवर्ती राजगोपालाचारी गांधीजी से भेंट करने आए। यह भेंट बहुत ही ह्रदयस्पर्शी थी। स्वतंत्रता के लिए संघर्ष करने वाले दो तपस्वियों की थी यह भेंट...! राजगोपालाचारी ने मिलते ही गांधीजी से कहा कि, “बापू, आपका अभिनन्दन करता हूं.. आपने तो कलकत्ता में बिलकुल जादू ही कर दिया है..!” परन्तु गांधीजी का उत्तर कुछ अलग ही था। वे बोले, “परन्तु मैं अभी कलकत्ता की स्थिति से संतुष्ट नहीं हूं... जब तक दंगों की आग में झुलसे हुए सभी लोग अपने-अपने घरों को वापस नहीं लौटते, तब तक कोई खास काम हुआ है, ऐसा मुझे नहीं लगता”।
राजाजी ने कल रात को सम्पन्न हुए कार्यक्रम के किस्से सुनाए। गांधीजी का आज उपवास था, इस कारण कुछ खाने का सवाल ही नहीं उठता था। लगभग एक घंटे की भेंट के बाद राजाजी वापस निकले।
________________
स्थान: मुंबई, दादर, सावरकर सदन
सुबह से ही तात्याराव (यानी विनायक सावरकर) कुछ खिन्न से दिखाई दे रहे हैं। उन्होंने कुछ भी खाया-पिया नहीं हैं। खंडित भारत की कल्पना उनके सीने में गहराई तक चुभ गयी हैं। उन्हें यह बात स्पष्ट रूप से महसूस हो रही हैं कि ‘हम अपना देश अत्यंत दुर्बल लोगों के हाथों में सौंप रहे हैं’। फिर भी स्वतंत्रता का आनंद तो है ही। वह स्वतंत्रता, जिसके लिए दो-दो काले पानी की सजा भुगती। पन्द्रह वर्षों की नजरबंदी सही। समुद्र के उस अथाह पानी में छलांग भी लगाई। अंडमान की काल कोठरी का कष्ट सहन किया। कोल्हू में बैल की तरह लगकर तेल निकाला... खंडित क्यूं न हों, स्वतंत्रता आज हासिल तो हुई है।
दस बजने को हैं। हिन्दू महासभा के अनेक कार्यकर्ता तात्याराव से भेंट करने आए है। उन सभी की उपस्थिति में क्रांतिवीर विनायक दामोदर सावरकर ने दो ध्वज फहराएं। पहला – भगवा ध्वज, जो कि अखंड हिन्दुस्तान का प्रतीक है और दूसरा, भारत का राष्ट्रध्वज यानी तिरंगा। दोनों ही ध्वजों को उन्होंने पुष्प अर्पित किए, और कुछ देर स्तब्ध खड़े रहे
________________
स्थान: दिल्ली, काउंसिल हाउस का गोलाकार भवन ।
सुबह के साढ़े दस बज रहे हैं। आज यहां पर आधिकारिक रूप से भारत के राष्ट्रध्वज के रूप में ‘अशोक चक्र से अंकित तिरंगा’ फहराने का शासकीय कार्यक्रम है। वॉईस रीगल पैलेस से शपथ ग्रहण किए हुए सभी मंत्री, वरिष्ठ अधिकारी और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, धीरे-धीरे काउंसिल हाउस की तरफ आने लगे हैं। यह कार्यक्रम छोटा और सादा सा ही है। थोड़ी ही देर में नेहरू यहां पर राष्ट्रध्वज फहराने आने वाले हैं। छोटी पहाड़ी पर स्थित इस गोलाकार भवन, ‘काउंसिल हाउस’ के चारों तरफ भारी भीड़ एकत्रित हो चुकी है। ये सभी स्वतंत्र भारत के नागरिक हैं। अंग्रेजों के शासन में सामान्य भारतीय के लिए इस स्थान पर प्रवेश प्रतिबंधित था, परन्तु आज ऐसा नहीं है। इसीलिए कौतूहल, आनंद, उत्साह इन सभी भावनाओं से मिश्रित ये सैकड़ों लोग ‘वंदेमातरम’ के नारे लगा रहे हैं। गांधी और नेहरू की जयजयकार कर रहे हैं। आनंद और खुशी के मारे इन्हें समझ ही नहीं आ रहा कि क्या करें, क्या नहीं करें।
सपथ लेते हुए मंत्री |
नेहरू कार्यक्रम स्थल पर आते हैं। उनके मंत्रिमंडल के सहयोगी भी उनके साथ ही हैं। एडविन लुटियन और हरबर्ट बेकर द्वारा पहाड़ी पर निर्मित इस ‘काउंसिल हॉल’ में पहली बार ही तिरंगा फहराया जाने वाला है। चूंकि अभी राष्ट्रगीत कौन सा होगा, यह निश्चित नहीं है, इसलिए सभी लोगों ने ‘वंदेमातरम’ नारे का जयजयकार करते हुए आसमान गुंजा दिया हैं...।
________________
स्थान: लाहौर.डी.ए.वी. कॉलेज
दोपहर के दो बज रहे हैं, कॉलेज के परिसर और होस्टल में, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा संचालित ‘पंजाब सहायता समिति’ का शरणार्थी शिविर है। लाहौर मेडिकल कॉलेज के स्वयंसेवक चिकित्सक, विद्यार्थी, कुछ महिला डॉक्टर और नर्सों ने आपस में मिलकर बीस खटिया वाला एक छोटा सा अस्पताल चलाना शुरू किया है। समूचे पश्चिम पंजाब से हिन्दू और सिख अपनी घर-गृहस्थी, खेती-बाड़ी, दुकान-कारखाने लावारिस अवस्था में छोड़कर, सभी कुछ गंवाकर बेहद दयनीय अवस्था में इस शिविर में आते जा रहे हैं। कल रात से ही जहां उधर पूरा हिन्दुस्थान स्वतंत्रता समारोह उत्साह से मना रहा था, इधर परिस्थिति बहुत ही भयानक हो चली थी। हिंदुओं-सिखों के जत्थे के जत्थे अपने प्राण बचाकर इस शिविर में पहुंच रहे हैं। उन सभी पर हुए अत्याचारों की कहानियां अक्षरशः दिमाग सुन्न करने वाली हैं, भीषण क्रोध उत्पन्न करने वाली हैं। अनेक सिखों की बहनों, पत्नियों को मुस्लिम गुण्डे उठा ले गए हैं, जबकि कुछ औरतों-लड़कियों ने कुओं में छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली है।।
रोज़ाना दोपहर को ठीक डेढ़ बजे, सरदार कुलवंत सिंह नामक एक संघ स्वयंसेवक इस शिविर में भर्ती घायलों के लिए भोजन लेकर आता है। यह भोजन लाहौर के ‘भाटी गेट’ नामक हिन्दू मोहल्ले में संघ के स्वयंसेवक ही तैयार करते हैं। हालांकि पिछले तीन-चार दिनों से यह भी कठिन होता जा रहा है। आज तो सवा दो/ ढाई बजने वाले हैं, फिर भी कुलवंत सिंह आया क्यों नहीं, यह देखने के लिए दीनदयाल नामक स्वयंसेवक लाहौर शहर में निकला। दीनदयाल संघ के एक भाग का कार्यवाह है। बीच रास्ते में ही उसे भीड़ दिखाई दी। उसने नजदीक जाकर देखा, तो बीच रास्ते में कुलवंत सिंह खून के तालाब में डूबा पड़ा था। पास में ही उसकी मोटरसाइकिल भी गिरी पड़ी थी। मोटरसाइकिल से कैरियर से बंधे हुए भोजन के डिब्बों में से सब्जी का रस रिस-रिसकर उसके फैले हुए खून में जाकर मिल रहा था।
जहां एक ओर दिल्ली के दरबार हॉल में मंत्रियों द्वारा शपथ लेने का कार्यक्रम चल रहा है, बेलियाघाट में गांधीजी बंगाल के मंत्रिमंडल को पत्र लिख रहे हैं कि, ‘मुसलमानों को सुरक्षित रहने दो’... और इधर लाहौर में मुस्लिम गुंडों द्वारा जख्मी हिंदुओं-सिखों के लिए भोजन पहुंचाने वाले संघ स्वयंसेवक कुलवंत सिंह की दिनदहाड़े, बीच रास्ते में चाकू घोंपकर हत्या कर दी है...!
________________
स्थान: दिल्ली, इंडिया गेट स्थित मैदान
यहां भी सार्वजनिक रूप से तिरंगा फहराने का एक भव्य कार्यक्रम आयोजित किया गया है। हजारों लोगों की उपस्थिति से मैदान पूरी तरह भर गया है। बारिश के कारण कहीं-कहीं कीचड़ है, परन्तु लोगों को इसकी परवाह नहीं है। उनका उत्साह और आनंद चरम पर है। ठीक साढ़े चार बजे नेहरू यहां पर तिरंगा फहराते हैं। अभी-अभी बारिश हुई है, इसलिए आकाश में, ऊपर की तरफ जाते हुए तिरंगे के ठीक पीछे एक सुन्दर सा इन्द्रधनुष दिखाई देने लगता है। एक मंत्रमुग्ध करने वाला यह दृश्य है...! लॉर्ड माउंटबेटन एकटक यह अलौकिक दृश्य देखते ही रह जाते हैं...!
________________
स्थान: कलकत्ता, बेलियाघाट
शाम के साढ़े पांच बजने वाले हैं। गांधीजी की आज की सायं प्रार्थना बेलियाघाट के ‘राशबागान’ मैदान में आयोजित की गई है। चूंकि स्वतन्त्र भारत में गांधीजी की यह पहली सायं प्रार्थना है, इस कारण ऐसा अनुमान है कि आज इसमें भारी भीड़ रहेगी।
गांधीजी की जिद है कि वे पैदल ही उस मैदान तक जाएंगे। वैसे तो मैदान पास ही है, सामान्य दिनों में यहां पांच मिनट में ही पहुंचा जा सकता है। परन्तु आज मैदान में बड़ी मात्रा में लोग एकत्रित हैं। तीस हजार लोगों की क्षमता वाला मैदान पूरी तरह भर चुका है। इसलिए आज गांधीजी को मैदान में बने मंच तक पहुंचने में बीस मिनट लग गए।
प्रार्थना और सूत कताई के पश्चात गांधीजी शांत और धीमे स्वरों में बोलने लगे, “कल जो मैंने कहा था, वही मैं आज भी दोहरा रहा हूं। कलकत्ता के सभी हिंदू-मुसलमानों का मैं अभिनन्दन करता हूं। आप लोगों ने एक असंभव कार्य को संभव बना दिया है। अब आप मुसलमानों को मंदिरों में प्रवेश दें और मुस्लिम बंधु हिंदुओं को मस्जिदों में... ऐसा करने से हिन्दू-मुस्लिम एकता और भी मजबूत होगी....!” “कहीं-कहीं पर मुझे अभी भी मुसलमानों को सताने के समाचार मिल रहे हैं। परन्तु यह ध्यान रहे कि कलकत्ता और हावड़ा इन इलाकों में एक भी मुसलमान को, किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होना चाहिए”।
इसके बाद गांधीजी ने कल मध्यरात्रि को, राजभवन में घटित, भीड़ द्वारा लूटपाट का उल्लेख किया। उन्होंने कहा कि, “लोग यह सोच रहे हैं कि हमें स्वतंत्रता मिल गई, तो हम पर लगे हुए सारे प्रतिबन्ध समाप्त हो गए। हम चाहे जैसा आचरण कर सकते हैं। परन्तु यह ठीक नहीं है। कल रात को राजभवन में भीड़ ने जो भी किया, वह दुर्भाग्यपूर्ण था। हमें अपनी स्वतंत्रता का सही उपयोग करना चाहिए। जो भी यूरोपीय बंधु भारत में ही रहना चाहते हैं, हमें उनके साथ भी वैसा ही व्यवहार करना चाहिए, जो कि हमें उनके द्वारा अपेक्षित हैं।
शाम की इस प्रार्थना के बाद गांधीजी ने अपना चौबीस घंटे का उपवास, नींबू का शरबत ग्रहण करके समाप्त किया।
________________
अनेक वर्षों का अन्धकार समाप्त हुआ है और देश पुनः एक बार स्वतंत्र हुआ है। पिछली अनेक पीढ़ियों की गुलामी के कारण भारतीयों की दुर्बल हो चुकी मानसिकता को बदलना एक सबसे बड़ी चुनौती है।
हालांकि विभाजन तो हो चुका है, परन्तु नवनिर्मित पाकिस्तान से अधिक मुस्लिम जनसंख्या, हिंदुस्तान में अभी भी मौजूद है। डॉक्टर बाबासाहब आंबेडकर ने जनसंख्या की पूर्ण अदलाबदली की योजना का जो आग्रह किया था, उसे कांग्रेस ने ठुकरा दिया था। अभी देश के अनेक भागों में धार्मिक विद्वेष की आग लगी हुई है, और यह आगे और फैलेगी, इसकी पूरी संभावना है। विस्थापितों का प्रश्न अभी मुंह बाए खड़ा हैं। कश्मीर का सवाल अभी भी हल नहीं हुआ है। देश के बीचोंबीच स्थित निज़ाम की रियासत आज भी हिन्दुस्तान में शामिल नहीं है और हिन्दुओं को लगातार कष्ट दे रही है। गोवा अभी भी पुर्तगाल के कब्जे में है। पांडिचेरी, चन्दनगर भी अभी हिन्दुस्तान में वापस नहीं आए हैं। उधर नेहरू की जिद के कारण खान अब्दुलगफ्फार खान के नेतृत्व वाला नॉर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस भी भारत ने गंवा दिया है।
आज के दिन स्वतत्रंता का स्वागत करते समय जब भारत का यह चित्र देखते हैं, तो हमारी छाती फटती है। ये सभी भूभाग शामिल नहीं होने से, रक्षात्मक दृष्टि से, सामरिक दृष्टि से भारत बेहद कमजोर दिखाई दे रहा है। हमारे नेतृत्व की कमज़ोरी और दूरदृष्टि नहीं होने के कारण देश के भविष्य के सामने एक बड़ा सा प्रश्नचिन्ह लगा हुआ है। स्वतंत्र होकर यह देश जब एक नए युग में प्रवेश कर रहा है, तो इन सभी कठिन प्रश्नों की एक लंबी सूची हमारे सामने नृत्य कर रही है। एक मजबूत, दमदार और दूरदृष्टि वाले नेतृत्व के हाथों में यह देश सौंपा जाए, तभी इस देश का भविष्य उज्जवल होगा....!
यह श्रृंखला यहीं पर समाप्त होती है... अंतिम समापन अंक आप कल पढ़ेंगे, जिसमें इस लेखमाला से सम्बन्धित तमाम रेफरेंस दिए जा रहे हैं.....।
मूल मराठी लेखक :- प्रशांत पोळ
अनुवाद :- सुरेश चिपलूनकर
★★★★★★★★★