भंडाफोड़: आपको चौंकाएगी! रुपये के कीमत की यह कांग्रेसी कहानी!


सोनिया गांधी
मुद्दे की बात शुरू करने से पूर्व एक नवीनतम उदाहरण, जो समझने में आपकी सहायता करेगा
25 जुलाई 2018 को जब पाकिस्तान अपनी नई सरकार का चुनाव कर रहा था, उस दिन डॉलर के मुकाबले पाकिस्तानी रुपये का मूल्य 129.06 पैसे था। 29 जुलाई तक यह बढ़कर 129.58 रूपये हो चुका था। लेकिन 30 जुलाई को यह मूल्य घटकर 121.58 रुपये हो गया था। केवल 1 दिन में कोई करिश्मा नहीं हुआ था। इसके बजाय चीन ने पाकिस्तान को 200 करोड़ डॉलर का कर्ज दे दिया था। और पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार इससे कुछ मजबूत हुआ था। इसके चलते एकदम से डॉलर के मुकाबले पाकिस्तानी रुपया मजबूत हुआ था। लेकिन यह अस्थायी इलाज है। आज 121-122 के बीच दिख रहा पाकिस्तानी रुपये का मूल्य वास्तविक और स्थायी नहीं है। उसे मिली तात्कालिक चाइनीज मदद का प्रभाव अधिकतम एक महीने दिखेगा। यदि अन्य कोई उपाय पाकिस्तान नहीं कर पाया तो डॉलर के मुकाबले उसका रुपया फिर 129 या उससे भी आगे पहुंच जाएगा। अर्थात पाकिस्तानी रुपये का वास्तविक मूल्य आज भी 129-130 के बीच ही है जिसपर चाइनीज मदद ने अस्थायी आवरण डाल रखा है।

अब यह भी जानिए कि 28 अगस्त 2013 को डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपये का मूल्य 69 के पार जाकर वापस लौटा था और 68.82 पर रुका था। 7-8 माह बाद लोकसभा चुनाव होने वाले थे और भ्रष्ट कर्णधारों के भयंकर कुप्रबन्धन के चलते लगभग 5% राजकोषीय घाटे के दौर से गुजर रही भारतीय अर्थव्यवस्था के चलते अगले 7-8 महीनों में रुपये का मूल्य 80 से 90 रूपये तक पहुंच जाने की शत प्रतिशत संभावनाएं प्रबल हो चुकी थीं। कुछ अर्थशास्त्रियों ने रुपये के 100 के पार चले जाने की भी आशंका जाहिर की थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ था। 30 सितम्बर 2013 को डॉलर का मूल्य घटकर 62.60 रूपये हो गया था और जब 26 मई 2014 को यूपीए की मनमोहन सरकार ने मोदी सरकार को सत्ता सौंपी थी तो उस दिन डॉलर का मूल्य घटकर 58.47 रूपये हो चुका था। हालांकि राजकोषीय घाटा लगभग 5% के बीच ही रहा था। तो फिर यह करिश्मा कैसे हुआ था?  

दरअसल पाकिस्तान की ही तरह भारत मे भी उस समय कोई करिश्मा नहीं हुआ था। अर्थव्यवस्था में कोई सुधार नहीं हुआ था। इसके बजाय तत्कालीन वित्तमंत्री पी चिदम्बरम और उसके चेले, रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के तत्कालीन गवर्नर रघुराम राजन ने सितम्बर 2013 से दिसम्बर के बीच बैंको के माध्यम से FCNR (B) (Foreign Currency Non-Resident (Bank Account) के माध्यम से तीन वर्ष की अवधि वाला 2500 करोड़ डॉलर का कर्ज ले ले डाला था, जिसकी ब्याज दरें बहुत ऊंची थी। मई 2014 आते आते FCNR (B) के माध्यम से ही लगभग 7 बिलियन डॉलर का कर्ज़ और ले डाला था।

यह कुल कर्ज़ लगभग 2 लाख 20 हज़ार करोड़ रूपये का था। इसके अलावा विदेशी मुद्रा डॉलर में खरीदे जाने वाले कच्चे तेल का लगभग 1 लाख 42 हज़ार करोड़ रूपये (लगभग 21 बिलियन डॉलर) का भुगतान करना बंद कर के एक तरह से 21 बिलियन का जो उधार देश पर लाद दिया था, वह भी एक तरह से विदेशी मुद्रा में लिया गया कर्ज़ ही था। इस तरह यूपीए सरकार ने अगले 8 महीनों में डॉलर के मुकाबले रुपये का मूल्य कम करने के लिए लगभग 53 बिलियन डॉलर का कर्ज ले डाला था। यह वही हथकण्डा था जो इन दिनों पाकिस्तान आजमा रहा है। क्योंकि उसकी अर्थव्यवस्था का आकार छोटा है और उसने 1-2 महीने का जुगाड़ किया है, इसलिए उसका काम 2 बिलियन डॉलर से फिलहाल चल गया है। यूपीए ने 53 बिलियन का कर्ज लिया क्योंकि 8 महीने का जुगाड़ करना था।  

उपरोक्त विवरण यह बताता है कि 26 मई 2014 को यूपीए की मनमोहन सरकार ने जब 5% राजकोषीय घाटे की अपनी विकट विषम विरासत मोदी सरकार को सौंपी थी उस दिन डॉलर की वास्तविक कीमत 68.85 रू ही थी, जिसपर 53 बिलियन डॉलर (लगभग 3 लाख 64 हज़ार 5 सौ करोड़ रुपए) के विदेशी मुद्रा कर्ज़ का पर्दा डालकर यूपीए की सरकार 58.47 रू बता रही थी।  

अब यह भी जानिए कि मोदी सरकार FCNR(B) का 32 बिलियन का कर्ज ब्याज समेत चुका चुकी है। लगभग 40 हज़ार ब्याज की रकम के साथ 1 लाख 42 हज़ार करोड़ रुपये की कच्चे तेल की उधारी भी चुका चुकी है। मतलब मोदी सरकार ने लगभग 4 लाख करोड़ रुपये का वह कर्ज विदेशी मुद्रा में चुकाया है जिसका कोई औचित्य नहीं था और जिसे यूपीए ने अपने आर्थिक कुप्रबन्धन और भ्रष्टाचार पर पर्दा डालने के लिए लिया था।

उपरोक्त कर्ज़ लेकर यूपीए ने एक तीर से तीन निशाने साधे थे।
पहला- डॉलर के मुकाबले रुपये का मूल्य कम दिखाने का अपने हथकण्डे में वो सफल हुई थी।
दूसरा- यह कि अपने समय में तेल की कीमत कम वसूलने की उसकी जालसाज़ी भी 1 लाख 42 हज़ार करोड़ की उसकी उधारी से सफल हुई थी।
तीसरा- यह कि वह जानती थी कि उसकी विदाई तो लगभग तय है इसलिए नई सरकार के सत्ता संभालते ही 4 लाख करोड़ के कर्ज को चुकाने की यह जिम्मेदारी उसकी रीढ़ तोड़ देगी।

यह तथ्य उन लोगों को भी समझ लेना चाहिए जो कहते हैं कि विदेशी मुद्रा भंडार बढ़ाने में कच्चे तेल के दामों में गिरावट का लाभ मोदी सरकार को मिला है। क्योंकि जो लाभ मिलता वो लाभ विदेशी मुद्रा में लगभग 4 लाख करोड़ रुपये का कर्ज चुकाने में स्वाहा हुआ।  

अतः उपरोक्त तथ्य यह बताते हैं कि डॉलर के मुक़ाबले रुपये की 68.80 रुपये वास्तविक कीमत की जो विरासत यूपीए सौंप गया था, रूपये की वह कीमत आज भी वहीं स्थिर है। मोदी सरकार ऐसा करने में इसलिए सफल हुई क्योंकि उसने राजकोषीय घाटा 3% से अधिक नहीं होने दिया। कांग्रेस के समय कभी 4.5 से 5 प्रतिशत से कम नहीं हुआ।

यह उपलब्धि बहुत बड़ी इसलिए भी हो जाती है कि मई 2009 में महान अर्थशास्त्री प्रधानमंत्री मनमोहन ने जब दोबारा सत्ता संभाली तब 1 जून को डॉलर के मुकाबले रूपये की कीमत 46.82 थी, जो मात्र 4 साल बाद अगस्त 2013 में 68.80 हो गयी थी। 4 साल में डॉलर की कीमत 22 रूपये बढ़ी थी।
इसलिए जब कांग्रेसी प्रवक्ताओं को रूपये की कीमत 70 पार करने पर जब प्रवचन देते देखा तो मुझे उनपर क्रोध नहीं आया, बल्कि उनसे घिन आने लगी।


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