पुरापाषाण युग |
पुरापाषाणकालीन औजार, जो लगभग 1,00,000 ई.पू. पुराने हो सकते हैं, छोटा नागपुर के पठार में पाये गये हैं। ऐसे औजार जो 20,000-10,000 ई.पू. दौर के हैं, आंध्रप्रदेश के कुरनूल जिले में पाये गये हैं। इनके साथ हड्ड़ियों के औजार और जानवरों के अवशेष भी पाये गये हैं। उत्तरप्रदेश के मिर्जापुर जिले की बेलन घाटी में प्राप्त जानवरों के अवशेष बताते हैं कि उस युग में भी बकरी, भेड़ और मवेशियों का पालन किया जाता था। हालांकि, पुरापाषाणकाल में मनुष्य शिकार के माध्यम से ही भोजन इकट्ठा करता था। पुराण बताते हैं कि ऐसे मनुष्यों का भी दौर था जो कंद और मूल खाकर अपना जीवन निर्वाह करते थे; इनमें से कुछ मनुष्य आज भी पहाड़ियों और गुफाओं मे रहकर प्राचीन तरीके से जीवन जी रहे हैं।
भारत में पुरापाषाणकालीन संस्कृति का विकास हिमयुग के प्रतिनूतन चरण (Pleistocene) में हुआ। यद्यपि अफ्रीका में पाये गये पत्थर के औजारों और मानव अवशेषों को 2.6 मिलियन (26 लाख) वर्ष पुराना माना जाता है। भारत में मानव विकास के प्रारंभिक चिन्ह, जैसा कि पत्थर के औजारों से संकेत मिलता है, मध्य पुरापाषाण काल से ज्यादा पुराने नहीं हैं। पुरापाषाण चरण में पृथ्वी के एक बड़े हिस्से को बर्फ की चादर ने ढँक लिया था, विशेषकर उच्च उन्नातांश और उनकी परिधियों को। किंतु उष्णकटिबंधीय क्षेत्र, पहाड़ों को छोड़कर, बर्फ से मुक्त थे। दूसरी ओर, ये क्षेत्र भारी वर्षा के दौर से गुजरे।
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पुरापाषाण काल के चरण (Palaeolithic phase)
भारत में पुरापाषाण काल को तीन चरणों में विभाजित किया जाता है, जिसमें लोगों के द्वारा उपयोग किये गये पत्थरों के औजारों की प्रकृति और वातावरण की प्रकृति को आधार मानते हैं।
१- पहले चरण को प्रारंभिक या निम्न पुरापाषाणयुग,
२- दूसरे को मध्य पुरापाषाणयुग और
३- तृतीय को उपरि पुरापाषाण कहा जाता है।
जब तक बोरी से प्राप्त कलाकृतियों के बारे में पर्याप्त सूचनायें उपलब्ध नहीं होती हैं, तब तक उपलब्ध वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर, पहले चरण को 2,50,000 ई.पू. से 1,00,000 ई.पू. के बीच रखा जा सकता है; द्वितीय चरण को 1,00,000 ई.पू. से 40,000 ई.पू., और तृतीय चरण को 40,000 ई.पू. से 10,000 ई.पू के बीच विभाजित किया जा सकता है।
पाषाणयुग के औजार |
१- प्रारंभिक या निम्न पुरापाषाणयुग ( Early or Lower paleolithic age)
निम्न पुरापाषाण या प्रारंभिक प्राचीनतम पत्थर का युग, हिमयुग का अधिकांश हिस्सा घेरता है। इस दौर की प्रमुख विशेषताओं में हाथ से बनी कुल्हाड़ी, बड़े चाकू और छुरे का उपयोग है। भारत में पाई जाने वाली कुल्हाड़ी, पश्चिमी एशिया, यूरोप और अफ्रीका में पाई जाने वाली कुल्हाड़ियों के लगभग समान है। पत्थर के औजारों को मुख्य रूप से कटाई करने के लिए, खोदने के लिए और जानवरों की चमड़ी निकालने के लिए उपयोग में लाया जाता था। प्रारंभिक प्राचीनतम पत्थर के युग के केन्द्र सोन नदी घाटी पंजाब में पाये जाते हैं जो अब पाकिस्तान में है। कुछ केन्द्र कश्मीर और थार मरूस्थल में पाए गये हैं। निम्न पुरापाषाणकालीन औजार, उत्तरप्रदेश के मिर्जापुर जिले की बेलन घाटी में पाये गये हैं। राजस्थान के डीडवाना मरूस्थलीय क्षेत्र में पाये गये औजारों, बेलम और नरिनाड़ा घाटियों में पाये गये, तथा भोपाल के निकट भीमबेटका की गुफाओं में प्राप्त अवशेष लगभग 1,00,000 ई.पू. के हैं। चट्टानों के नीचे बने आवास सम्भवतः वर्षा से बचने के लिए उपयोग किये जाते होंगे। हाथ से बनी कुल्हाड़ियों का संग्रहण द्वितीय हिमालय हिमाच्छादन के दौरान हुआ। इस कालखंड में वातावरण थोड़ा कम नम हो गया था।
भारत मे पुरापाषाण काल के प्रमुख स्थान |
२- मध्य पुरापाषाणयुग (Middle Paleolithic Age)
मध्यपाषाणकालीन उघोग/ श्रम मुख्यतः पत्थर की पपड़ीे पर आधारित है। ये पपड़ी भारत के विभिन्न हिस्सों में पाये जाते हैं जिनमें क्षेत्रीय भिन्नतायें भी प्रतीत होती हैं। प्रमुख औजारों में धारदार, नुकीले, छेद करने वाले और पत्थर की पपड़ी से बने हथियार हैं। हमें कई जगह यह हथियार और औजार बड़ी मात्रा में मिलते हैं। मध्य पुरापाषाणकालीन चरण के भौगोलिक केन्द्र लगभग वहीं पाये जाते हैं, जहाँ पर निम्न पुरापाषाणकालीन चरण के। यहाँ हमें कंकरों के बहुतायत में उपयोग की जानकारी मिलती है, जो तृतीय हिमालय हिमाच्छादन युग की समकालीन है। इस दौर की कलाकृतियाँ नर्मदा नदी के किनारों पर और तुगंभद्रा नदी के दक्षिण में भी पाई जाती हैं।
मध्य प्रदेश |
३- उपरी पुरापाषाण युग (Upper Paleolithic age)
उपरि पुरापाषाण चरण तुलनात्मक रूप से कम नम था। यह हिमयुग के उस आखरी दौर के लगभग समानांतर था जो तुलनात्मक रूप से गर्म हो गया था। विश्व संदर्भ में यह यह चकमक पत्थर के उपयोग की शुरूआत का दौर था। जब आधुनिक मानव होमो-सेपियन्स (आधुनिक मानव स्तनपायी सर्वाहारी प्रधान जंतुओं की एक जाति, जो बात करने, अमूर्त्त सोचने, ऊर्ध्व चलने तथा परिश्रम के साधन बनाने योग्य है।) का उदय भी होने लगा था। भारत में नुकीले और धारदार औजारों का उपयोग आंध्रा, कर्नाटक, महाराष्ट्र, केन्द्रीय मध्य प्रदेश, दक्षिणी उत्तर प्रदेश, दक्षिणी बिहार और उससे लगे क्षेत्रों में होने लगा था। भोपाल से 45 कि.मी. दूर भीमबेटका में उच्च पुरापाषाणकाल की गुफाएँ पाई गई हैं। गुजरात में भी उच्च पुरापाषाणकाल के औजारों से मिलते-जुलते हथियार जो तुलनात्मक रूप से बड़े हैं, जैसे कि बड़े धारदार चाकू नुकीले भाले आदि पाये गये हैं।
इस प्रकार ऐसा लगता है कि पुरापाषाणकाल केन्द्र मुख्यतः पहाड़ी ढलानों और नदी घाटियों में पाये जाते हैं; वे सिंधु और गंगा के जलोढ़ मैदानों में उपस्थित नहीं हैं।