फ़िल्म Sacred Games में नवाजुद्दीन सिद्दीकी |
Netflix पर एक फिल्म अभी रिलीज हुई है “Sacred Games”। नवाजुद्दीन सिद्दिकी और सैफ अली खान की इस फिल्म को निर्देशित किया है, लिबरांडों के चहेते अनुराग कश्यप ने। विक्रमचंद्रा के इसी नाम वाले उपन्यास पर आधारित “Sacred Games” नेटफ्लिक्स की भारत में शुरु की गई ओरिजनल फिल्म श्रृंखला की मूवी है।
इस फिल्म पर कांग्रेस और उसके लिबरल ग्रुप को आपत्ति है। बंगाल के कांग्रेस कार्यकर्ता राजीव सिन्हा ने कोलकाता पुलिस को नवाजुद्दीन सिद्दिकी और नेटफ्लिक्स के खिलाफ एक लिखित शिकायत दी है और इस फिल्म को बंद कराने की मांग की है। राजीव सिन्हा ने अपने पत्र में कहा है कि ‘इस फिल्म में हमारे पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को गाली दी गई है। यही नहीं, इसमें तथ्यों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है।’
Congressulations, #SacredGames! pic.twitter.com/FIpZxyoc6k— Shiv Aroor (@ShivAroor) July 10, 2018
रात में कैंडल-मार्च करने वाले और जेएनयू में ‘टुकड़े-टुकड़े’ गैंग का सपोर्ट करने वाले लिबरलों के सरताज कांग्रेसी अध्यक्ष राहुल गांधी खामोश हैं! उनकी तरफ से पूरी छूट है कि इस फिल्म को बंद करा दिया जाए, अन्यथा राजीव सिन्हा को इनके खिलाफ उन्हें उसी तरह उतरना चाहिए था, जैसे कन्हैया-उमर खालिद की लिबरल थिंकिंग के पक्ष में उतरे थे! और न्यूज चैनल में बैठे लिबरांडो का गिरोह भी खामोश है। अभी कोई स्क्रीन काला नहीं कर रहा है!
पहले वह डायलॉग पढ़ लीजिए, जो नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने इस फिल्म में राजीव गांधी के बारे में बोला है-
वो राजीव गांधी ने भी ऐसे इच किया था!शाहबानों को अलग जलाया, देश को अलग!1986 में तीन तलाक दिया उसका पति!वो कोर्ट में केस लड़ी, जीती!लेकिन वो प्रधानमंत्री राजीव गांधी,वो फटटू बोला, चुप बैठ औरतकोर्ट का फैसला उल्टा कर दिया और शाहबानों को मुल्लों के सामने फेंक दिया….
This is what seems to have irked the Congress, their own record on freedom of expression notwithstanding! #SacredGames pic.twitter.com/XHbohm9PC5— Amit Malviya (@amitmalviya) July 10, 2018
अब आते हैं फैक्ट पर
राजीव गांधी देश के पहले ऐसे प्रधानमंत्री बने जिन्होंने मुसलिम तुष्टिकरण में अपने नाना से भी आगे बढ़ते हुए सुप्रीम कोर्ट के निणर्य को ही पलट दिया था। एक बुजुर्ग मुसलिम महिला शाहबानो को उसके पति ने तलाक दिया था। शाहबानो गुजर-बसर के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंची। कोर्ट ने 1986 में उसके पक्ष में फैसला देते हुए उसके पति को गुजाराभत्ता देने का आदेश दिया। देश के मुल्लों को यह मंजूर नहीं था।
मुल्लों ने कहा, ‘यह हमारे शरियत में अदालत की घुसपैठ है।’ इतिहास में सबसे अधिक सीटों से चुनाव जीतने वाले राजीव गांधी मुसलिम तुष्टिकरण के लिए मुल्लों के आगे दुम हिलाने लगे। जो प्रधानमंत्री 400 से अधिक सीटों से जीता हो, उसने वोटों के लिए मुल्लों का तलवा चाटना मंजूर किया और सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को संसद के अंदर अपने बहुमत के घमंड में पलट दिया। उस बेचारी बुजुर्ग औरत को रोटी-रोटी के लिए तरसा दिया और देश के प्रगतिशील मुसलमानों को मध्ययुगीन इसलामी शरिया कानून के हवाले कर दिया। यहीं से देश में सोयी मुसलिम सांप्रदायिकता की शुरुआत हुई।
राजीव गांधी के दौर में भागलपुर, मलियाना, मेरठ, बनारस, अहमदाबाद आदि सहित लगभग 105 छोटे-बड़े सांप्रदायिक दंगे हुए और हर दंगे की शुरुआत मुसलिम कट्टरपंथियों की ओर से हुई। कांग्रेस की सरकार को झुकाने के बाद अपनी जोर-आजमाइश करते हुए देश को डराने के लिए मुसलिम कट्टरपंथियों ने दंगे का रास्ता चुना था।
अब बताइए कि नवाजुद्दीन सिद्दिकी का यह डॉयलॉग किस तरह से गलत है?
उप्र में फटटू (FATTU) उसे कहा जाता है, जिसमें हिम्मत न हो। राजीव गांधी में मुल्लों का विरोध करने और सुप्रीम कोर्ट के पक्ष में खड़े होने की हिम्मत कहां थी? तो फिर उसे फटटू नहीं तो क्या दिलेर कहा जाएगा? ऐसा कायर और डरपोक प्रधानमंत्री, जिसने एक प्रगतिशील कानून को मध्ययुगीन शरिया कानून में बदल दिया, उसने शहबानों सहित देश को नहीं जलाया तो और क्या किया? देश में शरिया कानून लागू करने और देश को दंगों में झोंकने लिए यह देश राजीव गांधी को कभी माफ नहीं कर सकता। इसे अभिव्यक्त करने का अधिकार सबको है। नवाजुद्दीन ने यही किया है।
अब आइए इसके दूसरे पक्ष पर आते हैं!
इस फिल्म के निर्देशक वही लिबरल और गालीबाज अनुराग कश्यप हैं, जिनको इस देश के हिंदुओं से दिक्कत है। महाशय, हर फिल्म में हिंदुओं को गरियाने का मौका नहीं छोड़ते। इस गेम्स में भी ‘रामायण’ के बहाने हिंदुओं को गरियाया है। हिंदुओं ने जब-जब इनका विरोध किया, महाशय ने कहा मैं देश छोड़ दूंगा। ‘इंडिया टुडे’ में तो बकायदा साक्षात्कार दिया कि मैं फ्रांस की नागरिकता ले लूंगा!
लेकिन इस लुल्ले को आज लकवा मार गया है। अपनी फिल्म का कांग्रेस द्वारा विरोध किए जाने पर भी यह ‘लिबरल लुल्ला’ चुप है! और यही नहीं, इसके साथ झाउं..झाउं. करने वाला पूरा लिबरल जमात चुप है! कांग्रेसी पट्टे को गले में पहनने वाले लुटियन के ‘पीडी पत्रकार’ और ‘राज-दरबारी’ बुद्धिजीवी व कलाकार स्कॉच के साथ ‘अभिव्यकित की आजादी’ और ‘फ्रि-थिंकिंग’ जैसी अवधारणा को गटक गये हैं और उन्हें इंतजार है कि कब कोई हिंदुवादी कुछ बोले और यह उसे उगलें!
दोगलों का पूरा पाखंड सामने आ गया है। नवाजुद्दीन सिद्दिकी ने ठीक कहा-फटटू। ये सारे ‘लिबरल लुल्ले’ गांधी परिवार के ‘फटटू कुत्ते’ हैं, जो तभी भौं-भौं करते हैं, जब इनका मालिक इन्हें इशारा करता है! मालिक और उसके परिवार के खिलाफ इनकी ‘फ्री थिंकिंग’ तेल लेने चली जाती है!