इक बंगला बनाया था न्यारा अब हाथ से निकल गया |
एकतरफ जहां अखिलेश और मुलायम ने अपने बंगलों को खाली करने के पहले सारी ताकत झोंक दी वहीं दूसरी तरफ कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह ने बिना किसी झगड़े के अपने घरों का कब्जा सौंप दिया।
अखिलेश यादव की बौखलाहट
ठीक साढ़े तीन महीने पहले जब मैंने अखिलेश यादव से उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री के रूप में आवंटित बंगले के बारे में सवाल किया था वो लाल-पीले हो गए थे। लखनऊ के पॉश एरिया विक्रमादित्य मार्ग स्थित 60,000 वर्ग फुट के बंगले के बारे में बात करने से उन्होंने साफ इंकार कर दिया था। मैं तो बस इस आरोप की तरफ उनका ध्यान आकर्षित करना चाह रहा था कि पूर्व मुख्यमंत्री मायावती को उन्होंने उनके बंगले की शानो शौकत के लिए हमेशा ही निशाने पर रखा। मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद नए बंगले के निर्माण पर 103 करोड़ रुपये खर्च करने वाली मायावती की वो लगातार आलोचना करते रहे थे, लेकिन इसमें वो खुद भी बहुत पीछे नहीं थे। कथित तौर पर अपने घर के नवीनीकरण और विस्तार पर उन्होंने लगभग 50 करोड़ -60 करोड़ रुपये खर्च किए थे।
अखिलेश अचानक मुझपर चिल्ला उठे, "मैंने 1000 करोड़ रुपये खर्च किए हैं, जाओ और जो कुछ भी कर सकते हो करो। अब तो मैं पावर में ही नहीं हूं, सत्ता से बाहर हूं।"
उन्होंने कहा, "मत भूलना, मैं सामने से वार करने में विश्वास करता हूं. मैं पीछे से हमला नहीं करता"। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मुझे ये कहा। अब मेरे पास उस पार्टी को छोड़कर जाने के अलावा कोई और विकल्प नहीं था।
इसके बाद किसी ने मुझे दस्तावेज दिखाए जिससे पता चला कि अखिलेश यादव के घर में 21 करोड़ रुपये के सिर्फ फर्नीचर और सामान थे। तब मुझे समझ आया कि आखिर पूर्व मुख्यमंत्री उस घर से संबंधित प्रश्न पूछने पर इतना विफर क्यों गए थे।
1970 के दशक की शुरुआत में उत्तर प्रदेश ने सभी पूर्व मुख्यमंत्री को जीवनपर्यंत के लिए घर आवंटित करने का यह अनूठा अभ्यास शुरू किया था। 1980 के दशक के उत्तरार्ध तक मुख्यमंत्री अपने आधिकारिक निवास से निकल कर मामूली घरों में चले जाते थे। 1990 के दशक के साथ वो मुख्यमंत्री खेमा आया जो अपने "पूर्व मुख्यमंत्री" वाले दिनों के लिए एक शानदार घर रख सके। अब क्योंकि मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठे व्यक्ति ने इस बात की घोषणा की थी तो फिर खर्च की कोई सीमा नहीं थी।
जैसे-जैसे साल बीते, घरों के नवीनीकरण और साजसज्जा पर बिल बेतहाशा बढ़ते गए
मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठकर अपने घर में अतिरिक्त निर्माण और उसके नवीनीकरण करने पर खर्च करने वाले मुलायम सिंह यादव पहले पूर्व मुख्यमंत्री थे। उनके उत्तराधिकारी, बीजेपी नेता कल्याण सिंह ने शुरुआत में तो खुद को रोक लिया, लेकिन अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान उन्होंने भी इस प्रथा को गले लगा ही लिया। हालांकि, उन्होंने अपने बंगले से ज्यादा ध्यान पास वाले बंगले के बड़े पैमाने पर नवीनीकरण में दिया। इस बंगले को उन्होंने अपने सबसे भरोसेमंद सहयोगी कुसुम राय को आवंटित किया था। जिन्हें न केवल राज्यसभा सदस्य बनाया गया था, बल्कि उनके बंगले का आवंटन 30 साल की अवधि के लिए उनके पिता के नाम पर बनाए गए ट्रस्ट को स्थानानतरित भी कर दिया।
मुलायम के दूसरे और तीसरे बार मुख्यमंत्रीत्व काल में उनके घर में और ज्यादा रिनोवेशन देखने को मिला। लेकिन मायावती ने अपने चौथे कार्यकाल के दौरान तो सारी हदें ही तोड़ डाली। उन्होंने न सिर्फ अपने पहले कार्यकाल के दौरान खुद को "पूर्व मुख्यमंत्री" के रूप में अलॉट किए गए घर को तुड़वा डाला बल्कि दूसरे और तीसरे कार्यकाल के दौरान तो उसका नवीनीकरण भी कराया गया था।
अगर इतना ही काफी नहीं था तो उन्होंने अपने पास की इमारत का भी अधिग्रहण कर लिया जिसे राज्य के गन्ना आयुक्त के कार्यालय के रुप में रखा गया था। और इसे अपने बंगले के साथ मिला लिया और राज्य की राजधानी के वीआईपी मॉल एवेन्यू में लगभग 60,000 वर्ग फुट की संपत्ति तैयार कर ली। इस जगह पर एक विशाल किला नुमा हवेली का निर्माण कराकर उसके चारों ओर 18 फीट ऊंची दीवारों से घेर दिया। उनके इस गुलाबी धोलपुर पत्थर से बने इस घर की अनुमानित लागत लगभग 103 करोड़ रुपये थी, जो सरकार द्वारा खर्च की गई थी।
मायावती से भी दो कदम आगे
हालांकि अखिलेश ने हमेशा ही इस फिजुलखर्ची के लिए मायावती को अपमानित किया और उनकी निंदा की। लेकिन जब अपनी बारी आई तो उनके ही नक्शे कदम पर चलने में उन्होंने जरा भी देर नहीं लगाई। उनकी पहली पसंद ये विक्रमादित्य मार्ग बंगला नहीं था। इससे पहले, उन्होंने कालिदास मार्ग के पड़ोस में एक डबल-स्टोरी हाउस को पसंद किया था। वहां से मुख्य शहर योजनाकार के कार्यालय को स्थानांतरित कराया। ठीक उसी तरह जैसे मायावती ने गन्ना आयुक्त के कार्यालय को स्थानांतरित करा दिया था।
लेकिन उसके नवीनीकरण पर कुछ करोड़ खर्च करने के बाद, अखिलेश ने अपना मन बदल लिया और विक्रमादित्य मार्ग बंगले पर अपनी आंखें जमा ली, जो तब राज्य के मुख्य सचिव का आधिकारिक निवास था। एक बार फिर, मायावती की तरह, उन्होंने पीछे वाले घर को को मिला लिया और विक्रमादित्य मार्ग घर को 60,000 वर्गफुट की निजी संपत्ति तैयार कर ली। कुछ महीने पहले ही इसमें एक जिम बनाने, एक इनडोर बैडमिंटन कोर्ट, गेस्ट रुम बनाने इत्यादि के लिए खर्च कराया गया।
एक पीआईएल ने अखिलेश यादव का खेल बिगाड़ दिया
नवीनीकरण ने इसे मुख्यमंत्री के आधिकारिक निवास की तुलना में कहीं अधिक शानदार और भव्य बना दिया। लेकिन किसी ने भी अपने सपने में भी ये नहीं सोचा था कि वही मुख्यमंत्री एक दिन इसी घर को उजाड़ देगा, इसे मिट्टी में मिला देगा। वास्तव में, अखिलेश को इस बात का पूरा भरोसा था कि उन्हें अपने जीवनकाल में तो ये घर छोड़ना नहीं होगा। आखिरकार, ऐसा ही हुआ था। लेकिन एक पीआईएल पर आए सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने इनका सारा खेल ही बिगाड़ दिया। 14 साल पहले एक पूर्व विधान सभा सचिव डीएन मित्तल द्वारा ये पीआईएल दायर किया गया था। उनकी मृत्यु के बाद एक पूर्व आईएएस अधिकारी एसएन शुक्ला ने इसकी कमान संभाली। इसी पीआईएल के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों को अपने सरकारी बंगले छोड़ने का फैसला सुनाया था।
अखिलेश यादव ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को दर किनार कर नया नियम बनाया
अखिलेश ने सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश को रोकने के लिए जमीन आसमान एक कर दिया। 2016 में जब आदेश आया तब अखिलेश सत्ता में थे। उन्होंने सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों को घरों के आवंटन के लिए एक नया कानून बनाया। इस कानून के जरिए अदालत के आदेश को धत्ता बताया गया। सभी प्रतिद्वंद्वी राजनीतिक दलों ने भी इस मामले से आंखे मूंद रखी थी क्योंकि ये उनके घरों में भी आग लगा देता। आखिर इस विशेषाधिकार का आनंद लेने वाले चार अन्य पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह (बीजेपी), वर्तमान में राजस्थान के गवर्नर, केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह, मायावती (बीएसपी) और नारायण दत्त तिवारी (कांग्रेस) भी तो शामिल थे।
अखिलेश यादव की चालाकी न चल सकी
लेकिन याचिकाकर्ता द्वारा लगातार इस मामले को लगातार आगे ले गए। अंततः सर्वोच्च न्यायालय ने एक और आदेश दिया, जिससे नए कानून को रद्द कर दिया गया। वह अखिलेश के लिए एक बड़ा झटका था, लेकिन वह अभी भी हारने के लिए तैयार नहीं था। इस बार, उन्हें अपने पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव को वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मदद मांगने के लिए आगे किया। ताकि वे और उनके पिता अपने संबंधित बंगलों का कब्जा बरकरार रख सकें। माना जाता है कि मुलायम ने मुख्यमंत्री और विधान परिषद में विपक्ष के नेता के रूप में अपने संबंधित क्षमताओं में समाजवादी पार्टी के नेताओं राम गोविंद चौधरी और अहमद हसन को अपना और अपने बेटे का घर आवंटित करने का सुझाव दिया था। इससे पिता और पुत्र को अपने बंगले पर कब्जा बनाए रखने में सफलता मिल जाती, क्योंकि चौधरी और हसन दोनों के अपने घर हैं।
हालांकि, किसी ने इनका पूरा खेल बिगाड़ दिया और दोनों की मुलाकात मीडिया की सुर्खियों में आ गई। अपने सचिवालय में ही कोई जासूस होने के संदेह पर मुख्यमंत्री ने अपने दो ओएसडी को बाहर का रास्ता दिखा दिया। लेकिन नुकसान हो चुका था। और अब ऐसा कोई रास्ता नहीं बचा था जिससे कि योगी आदित्यनाथ मुलायम की मदद कर पाते।
अखिलेश यादव को सुप्रीम कोर्ट से भी निराशा ही हाथ लगा
इसके बाद अखिलेश ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया। उन्होंने ये अनुरोध किया कि क्योंकि उनके पास अपना कोई घर नहीं है, इसलिए उन्हें और उनके पिता को अपने संबंधित बंगलों में दो और सालों तक रहने की इजाजत दी जाए, ताकि वे खुद के लिए घर बना सकें। याचिका को एक वैकेशन न्यायाधीश के समक्ष ले जाया गया था, जिसने याचिका में किसी तरह की कोई भी तात्कालिकता नहीं देखी थी। इसके बाद अब अखिलेश के पास घर छोड़ने के अलावा कोई रास्ता ही नहीं बचा था।
अखिलेश यादव के पास लखनऊ में जमीनों का अंबार
इसी बीच, एसपी नेताओं द्वारा बार-बार ये तर्क दिया गया कि अखिलेश को आम लोगों से मिलने के लिए कुछ जगह चाहिए। ये तर्क भी औंधे मुंह गिर गया, क्योंकि इसी दौरान उसी इलाके में उनके कब्जे वाली विभिन्न संपत्तियां भी सार्वजनिक हो गईं। एसपी राज्य मुख्यालय, के अलावा जो उनके बंगले से सिर्फ 200 मीटर की दूरी पर है। साथ ही लोहिया ट्रस्ट और जनेश्वर मिश्रा ट्रस्ट के नाम पर एसपी द्वारा अधिग्रहित दो अन्य बंगले भी थे। और 200 मीटर की और दूरी पर ही सड़क के उस पार 30,000 वर्ग फीट की एक निजी जमीन अखिलेश और मुलायम के नाम की पड़ी है। इस जमीन पर दो घरों का निर्माण भी शुरु हो चुका है। उसी सड़क पर लगभग 300 मीटर आगे एक और वाणिज्यिक संपत्ति अखिलेश के नाम पर है। जिसे एक अग्रणी बैंक को किराए पर दिया गया है।
एकतरफ जहां अखिलेश और मुलायम ने अपने बंगलों को खाली करने के पहले सारी ताकत झोंक दी, वहीं दूसरी तरफ कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह ने बिना किसी झगड़े के अपने घरों का कब्जा सौंप दिया। एनडी तिवारी, जिन्हें दिल्ली में अस्पताल में भर्ती कराया गया है, उन्होंने अभी तक घर नहीं सौंपा है। मायावती ने आधिकारिक परिसर को खाली कर दिया। लेकिन वो इसे कांशीराम मेमोरियल में परिवर्तित होने की पूरी कोशिश कर रही थी। साथ ही चार अन्य स्मारक भी जिनका लखनऊ में लगभग 2000 करोड़ रुपये की लागत है।
फिर भी, हालांकि, अखिलेश यादव द्वारा खाली किए घर में टूट फूट साफ दिख रही है। लेकिन फिर भी यादव परिवार राज्य के इतिहास में दर्ज हो ही गए हैं। एक तरफ जहां अखिलेश यादव घर में तोड़ फोड़ के आरोपों को खारिज करने में व्यस्त थे तो वहीं, आधिकारिक मशीनरी के पास यह मानने का पर्याप्त कारण है कि यह किसी और का कार्य हो ही नहीं सकता है।
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लेखक: शरत प्रधान
Twitter: @sharatpradhan21