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कांग्रेस सत्ता में रहते हुए न्यायालय व्यवस्था का अपहरण कर लिया था। |
कांग्रेस ने जब 1973 में जब जस्टिस ऐ. ऐन. राय को उनसे तीन वरिष्ठ न्यायाधीशों जेएम शेलत, केएस हेगड़े और एऐन ग्रोवर को नजरअंदाज करके मुख्य न्यायाधीश बनाया था। तब लोकसभा में बड़ी बेशर्मी से यह बयान दिया था कि, “यह हमारी सरकार का दायित्व है कि हम उसी को मुख्य न्यायाधीश बनाये जो हमारी सरकार की फिलॉसफी और द्रष्टिकोण के करीब है”।
जस्टिस राय ने कांग्रेस द्वारा उन पर किये गये इस उपकार का बदला आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों के हनन को 1976 के ऐतिहासिक केस एडीएम, जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ल मुकदमे में सही ठहरा कर किया था। इस केस में बहुमत से मौलिक अधिकारों को निलंबित करने के पक्ष में फैसला मुख्य न्यायाधीश ए एन राय, जस्टिस एच आर खन्ना, एम एच बेग, वाई वी चंद्रचूड़ और पी एन भगवती ने दिया था। जस्टिस खन्ना ही एक मात्र न्यायाधीश ने जिन्होंने इसको गलत ठहराया था। इसका दण्ड भी जल्दी ही उन्हें मिल गया जब जस्टिस खन्ना की वरिष्ठता को किनारे करते हुये उनसे कनिष्ठ एम एच बेग को मुख्य न्यायाधीश, इंद्रा गांधी की कांग्रेस की सरकार ने बनाया था।
आपातकाल के लिए इंदिरा गांधी ने कैसे न्यायालयों को घुटने टेकाई थी? और ज्यादा जानकारी यहाँ से ले -
“The Darkest Hour In Indian Judicial History - When The Supreme Court Surrendered Its Autonomy During Emergency”
“A trojan horse at the judiciary’s door”
http://www.thehindu.com/todays-paper/tp-opinion/a-trojan-horse-at-the-judiciarys-door/article4812743.ece
http://www.thehindu.com/todays-paper/tp-opinion/a-trojan-horse-at-the-judiciarys-door/article4812743.ece
जस्टिस बेग का कांग्रेस से सम्बंध
जस्टिस बेग जब सेवानिर्वित्त हुये तब उनको कांग्रेस के अखबार नेशनल हेराल्ड का निदेशक बना दिया गया और फिर जब 1980 में इंद्रा गांधी की कांग्रेसी सरकार वापस आयी तो जस्टिस बेग को अल्पसंख्यक आयोग का अध्यक्ष बनाया गया और वे 1988 तक उस पड़ पर बने रहे। यही नही राजीव गांधी ने 1988 में बेग साहब को उनकी सेवा के लिये पद्मविभूषण से पुरस्कृत भी किया था।
न्यायाधीश बदरुल इस्लाम का कांग्रेस से गठजोड़
कांग्रेस और जस्टिस बेग से भी ज्यादा मजेदार, कांग्रेस द्वारा बनाये गये न्यायाधीश बहरुल इस्लाम का है। ये इस्लाम साहब कांग्रेसी थे जिन्हें 1962 में कांग्रेस ने राज्यसभा का सदस्य बनाया था। 1967 में वे कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े और हार गये तब 1968 में फिर राज्यसभा भेजे गये। 1972 में उन्होंने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया और इंद्रा गांधी ने उनको गोहाटी हाईकोर्ट का न्यायाधीश बना दिया! ये वहां अपनी सेवानिवृति, मॉर्च 1980 तक न्यायाधीश रहे। जब इंद्रा गांधी फिर से 1980 में प्रधानमंत्री बनी तो उन्होंने सेवानिवृति प्राप्ति के 9 महीने बीत जाने के बाद भी, जस्टिस बहरुल इस्लाम को सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश बना दिया! जस्टिस इस्लाम ने कांग्रेसियों के खिलाफ मुकदमों में कानून और न्याय की ऐसी तैसी करके उन्हें बचाने में महारत हासिल थी। जस्टिस इस्लाम ने अपनी सेवानिवृति के डेढ़ महीने पहले ही इस्तीफा दिया और असम के बारपेटा से कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा के चुनाव में खड़े हो गये थे। लेकिन असम की अशांति के चलते वहां जब चुनाव नही हो पाया तो कांग्रेस ने उनको तीसरी बार राज्यसभा का सदस्य बनाया था।
"When the bench buckled"
कांग्रेस की सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों को उनके हितों की रक्षा करने पर पुरस्कृत करने की परंपरा रही है और उसका अनुपालन राजीव गांधी में भी किया है। 1984 में हुये सिक्खों के नरसंहार की जांच के लिये जस्टिस रंगनाथ मिश्रा को राजीव गांधी ने नियुक्त किया था और उन्हें अपनी जांच में सिवाय पुलिस की लापरवाही के अलावा किसी भी कांग्रेसी का हाथ नही दिख था। इसका परिणाम यह हुआ कि उन्हें बाद में पुरस्कृत कर नेशनल ह्यूमन राइट कमीशन का प्रथम अध्यक्ष बनाया गया। 1998 में कांग्रेस ने जस्टिस मिश्रा को राज्यसभा का सदस्य भी बनाया। यही नही 2004 में जब सत्ता में कांग्रेस की वापसी हुई तो जस्टिस रंगनाथ मिश्रा को नेशनल कमीशन फ़ॉर रिलीजियस एंड लिंगविस्टिक मिनोरटीएस का अध्यक्ष बनाया और फिर नेशनल कमीशन फ़ॉर शेड्यूल कास्ट एंड शेड्यूल ट्राइब का अध्यक्ष बनाया।
जजों के भ्रष्टाचार पर कांग्रेस बचाव भी करती है!
इतना ही नही भारत के मुख्य न्यायाधीश रहे जस्टिस खरे को गोधरा कांड में तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ टिप्पणियां करने पर उन्हें पद्मविभूषण से पुरस्कृत किया था। मामला यही तक सीमित नही है, कांग्रेस का न्यायाधीशों को महाभियोग से बचाने में भी योगदान रहा है। जब जस्टिस रामास्वामी पर भृष्टाचार के आरोप लगे थे और महाभियोग की कार्यवाही चली थी तब कपिल सिब्बल, जो आज मुख्य न्यायाधीश के विरुद्ध महाभियोग का प्रस्ताव सामने लाये है, उन्होंने जस्टिस रामास्वामी के पक्ष के वकील थे और जस्टिस रामास्वामी का बचाव किया था। सिर्फ यही नही, प्रशांत भूषण ने भी इस महाभियोग चलाने के औचित्य पर प्रश्न खड़ा करते हुऐ कहा था कि 'चंद कालीनों और सूटकेसों के खरीदने पर जस्टिस रामास्वामी पर महाभियोग चलाना बचकानी हरकत है'। जब जस्टिस रामास्वामी पर 14 आरोपो में 11 सही पाये गये तब कांग्रेस ने वोटिंग से अपने आपको अलग करके, रामास्वामी को सज़ा होने से बचाया था।
जस्टिस रामा स्वामी और कांग्रेस के संबंधों का खुलासा यहाँ से जाने -
कांग्रेस का पूरा इतिहास सुप्रीम कोर्ट में अपने लोगो को न्यायाधीश बनाने व अपने हितों की रक्षा के उपलक्ष में उनको पुरस्कृत करने का रहा है। आज जो कांग्रेस व कपिल सिब्बल और प्रशांत भूषण ऐसे वकीलों का जो आक्रोश व हताशा है वह इसी कारण से है की आज भारत के सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा बैठे है जिन्होंने कांग्रेस के 10 जनपथ से सोनिया गांधी के इशारों को समझना बन्द कर दिया है। आज उनके अंदर यह डर भी बैठ गया है कि उनके पुराने पापों पर सुप्रीम कोर्ट के आगामी निर्णय कही उनको भारत की राजनीति से विलुप्त न कर दे।
आज उनको सुप्रीम कोर्ट से विश्वास उठ गया है क्योंकि जस्टिस दीपक मिश्रा उनसे न ब्लैकमेल हो रहे है और न उनके प्रकोप से डर रहे है।
साभार: वीरेंद्र कुमार द्विवेदी