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महामना पंडित मदन मोहन मालवीय |
देश की आजादी के पूर्व अंग्रेजों ने समाज के हर क्षेत्र में गुलामी की जंजीरें फेंक रखी थीं। इन जंजीरों में धार्मिक आजादी को भी जकड़ने का पूरा प्रयास शुरू हो गया था। प्रयाग में आस्था का केंद्र रहे संगम में गंगा स्नान पर रोक लगाने और कुंभ मेले जैसी धार्मिक गतिविधियों को रोकने का प्रयास किया तो पूरे देश में उबाल आ गया था। तब धार्मिक आजादी के लिए सबसे पहले एक युवा ने संगम में छलांग लगाई थी, जिसने देशवासियों को अंगे्रजों से लड़ने की अगाध ताकत दे दी थी। वह युवा थे पंडित मदन मोहन मालवीय।
धार्मिक स्वतंत्रता की जब बात आती है तो पंडित मदन मोहन मालवीय का नाम सबसे ऊपर रहता है। राष्ट्र निर्माण में अपनी अहम भूमिका के साथ गहन चिंतन रखने वाले महामना ने हर क्षेत्र में नवीन विचारधाराओं और मूल्यों का सूत्रपात किया था। सोमवार को उनकी जयंती के विशेष मौके पर उनके विराट व्यक्तित्व को याद किया जाएगा।
शहर में लगी महामना की प्रतिमाओं की साफ- सफाई शुरू की गई है। वर्ष 1861 में प्रयाग में जन्मे मालवीय जी ने इलाहाबाद डिस्ट्रिक स्कूल से अपनी पढ़ाई शुरू की। उच्च शिक्षा के साथ मालवीय जी ने इलाहाबाद के डिस्ट्रिक कोर्ट (जिला अदालत) से वकालत की शुरुआत की।
उन्होंने पत्रकारिता में भी बेहतर रुझान दिखाते हुए 1909 में “द लीडर अखबार” निकाला था। यूं तो ‘महामना’ यानी मदन मोहन मालवीय ने समाज के हर क्षेत्र में बहुआयामी कार्य किया था लेकिन इलाहाबाद में उनका हर सारगर्भी प्रयास समाज के लिए प्रेरणा और प्रेरक बन गया। गंगा की स्वच्छता के लिए पंडित जी ने 1905 में ही जंग छेड़ दी थी। इतना ही नहीं, माघ और कुंभ मेले में आम लोगों की सेवा के लिए उन्होंने आल इंडिया सेवा समिति का गठन 1914 में किया था। पहले स्काउट चीफ बने महामना महामना ने बच्चों में सेवाभाव जागृत करने के लिए स्काउट एंड गाइड की स्थापना की, जिसके वह पहले स्काउट चीफ बने, जबकि हृदयनाथ कुंजरू प्रथम चीफ स्काउट कमिश्नर थे। इसकी शुरुआत माघ मेला से हुई थी।
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