“बोफर्स घोटाला” भारतीय इतिहास में एक काले धब्बे की तरह है, इस घोटाले में कई लोगो पर अंगुली उठी, लेकिन आज तक किसी व्यक्ति पर आरोप तय नही हुए! या यूं कहें कि सरकार ने तो हमेशा जांच करने से मना ही करता रहा कि “कोई घोटाला हुआ ही नही है !” जबकि प्रमाण सामने चीख-चीख कर बता रहे थे। जांच कराने की कुब्बत तब होती है, जब हाथ खुद के काले न हुआ हो। मंच से जनता को ऊंची-ऊंची बातों से संबोधित करने और वास्तविक धरातल पर दिखाना! दोनों में बहुत बड़ा फर्क होता है।
तो आइए शुरू करते है बोफोर्स घोटाले के इतिहास के जड़ को। सबसे पहले राजीव गांधी के राजनीति में आने के बाद से, जब माँ इन्द्रीरा गांधी की मृत्यु हो जाती है, आम चुनाव में राजीव गांधी को प्रचंड बहुमत मिलता है और प्रधानमंत्री बनते है!
राजीव गांधी की चुनाव में इतिहासिक जीत
1984 में प्रधानमंत्री व राजीव गांधी की माँ इन्द्रीरा गांधी की हत्या हो चुकी थी। कुछ ही दिनों बाद दुबारा चुनाव हुए, इस चुनाव में कांग्रेस को 400 से ज्यादा सीटें मिली। ऐसा बहुमत इंदिरा गांधी क्या जवाहरलाल नेहरु को भी नहीं मिला था। राजीव गांधी कंप्यूटर क्रांति की बात की, करप्शन के खिलाफ लड़ाई की बात की।
राजीव गांधी प्रधानमंत्री बनने के बाद अपने भाषणों में कहा कि-
“आजादी के बाद संविधान में वायदा करा था कि हमारे लोकतंत्र की जो तीसरा कतार है, उसे मजबूत करें, पहला व दूसरा जो दिल्ली व राजधानी में चलता है वह तो खूब मजबूत हो गए। इसे हमें ठीक करना है तो हमें नीचे पंचायती राज की संस्थाओं को मजबूत करना है! …..”
कांग्रेस के 100 वर्ष पूरे होने पर राजीव गांधी का भाषण
1985 में कांग्रेस की 100 साल पूरे हो गए थे उसके मनाने के लिए बड़ा अधिवेशन हुआ और उसमें राजीव गांधी ने जोरदार भाषण दिया -
“देश भर में कांग्रेस के लाखों कार्यकर्ताओं हमारे नीतियों और प्रोग्राम को लेकर उत्साहित है। वो देश और पार्टी के नाम पर कुछ भी करने को तैयार हैं। लेकिन कुछ कर नही पाते! क्यो ? क्योंकि उनके कंधे पर सत्ता के दलाल बैठे हुए हैं और ये सत्ता के दलाल रेवड़ियां बांट रहे होते है। और नतीजा क्या होता है? कांग्रेस पार्टी जो एक मास मूवमेंट है, एक आंदोलन है, कुछ लोगो ने अपनी जागीर बना ली है। …. ...”
राजीव गांधी ने इसी तरह पर 75 मिनट भाषण दिया, राजीव गांधी उस वक्त कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष भी थे। वे 1985 के कांग्रेस शताब्दी अधिवेशन में नए युग की नई भाषा बोल रहे थे।
राजीव गांधी की मंशा पर लोगों को भरोसा होने लगा था, वह भारतीय राजनीति के मिस्टर क्लीन बन गए थे। इसी दौरान कांग्रेस की वर्किंग प्रेसिडेंट “कमला पति त्रिपाठी” और दूसरे नेता राजीव गांधी के नाम पर एक चिट्ठी तैयार कर रहे थे।
कांग्रेसी नेताओं का प्रधानमंत्री व कांग्रेस अध्यक्ष राजीव गांधी को चिट्ठी
चिट्ठी में लिखा था …
आदरणीय अध्यक्ष महोदय,
आप सत्ता के दलाल किसे कह रहे है? आपका मतलब उन लोगों से है जो आपसे नजदीकी की वजह से एडमिनिस्ट्रेशन और पावर का सुख भोग रहे है? क्या सत्ता के दलाल अपने उन लोगों को कहा, जिन्होंने संगठन को मजबूत करने के लिए जिंदगी में कुछ भी नहीं किया। लेकिन आप दूसरों के संघर्ष और मेहनत का मजा ले रहे है। 12 नवंबर 1984 को जब आप सत्ता में आए और 19 जनवरी 1986 तक आप पार्टी की 9 जनरल सेक्रेटरी बदल चुके है। एक महत्वपूर्ण मंत्रालय में 5 बार मंत्री बदल गए है। इस तरह से आपने न सिर्फ उन लोगों से अन्याय कर रहे है। बल्कि पूरी व्यवस्था में असमंजस और अस्थिरता बना रहे है।
आपका
कमला पति त्रिपाठी
पंडित कमलापति त्रिपाठी में 22 अप्रैल 1986 को प्रधानमंत्री और कांग्रेस के अध्यक्ष राजीव गांधी को यह चिट्ठी भेजी। चिट्ठी में निशाने पर थे राजीव गांधी। अभी सत्ता में आए डेढ़ वर्ष भी नहीं हुए थे कि पार्टी के अंदर से ही उनके कामकाज पर सवाल उठ रहे थे।
ये चिट्ठी गई थी कमला पति त्रिपाठी के नाम पर, लेकिन इस चिट्ठी को बनाने वाले थे प्रणव मुखर्जी। लेकिन एक महीने के बाद जब मीडिया को इसकी जानकारी मिली तो प्रणब मुखर्जी को पार्टी से निकाल दिया गया। राजीव गांधी की इस कार्रवाई के पीछे अरुण नेहरु का नाम बताया जाता था। उन दिनों अरुण नेहरु का कद पार्टी और सरकार दोनों में काफी बढ़ गया था।
(अरुण नेहरु, अरुण सिंह और वीपी सिंह तीनों नाम उन दिनों बहुत अहमियत रखती थे। लेकिन हालत जल्द ही बदल गए।)
राजीव गांधी ने अरुण नेहरू से गृहराज्यमंत्री पद छीन लिए
अरुण नेहरु गृहराज्य मंत्री थे, उनके पास आंतरिक सुरक्षा का स्वतंत्र चार्ज था। 22 अक्टूबर 1986 को राजीव गांधी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद 26वीं बार अपने कैबिनेट में फेरबदल किया और उस फेरबदल में नाते में भाई और बेहद करीबी सलाहकार अरुण नेहरु को जगह नहीं दी। जब अरुण गांधी को गृहराज्यमंत्री बनाया गया था तो अरुण गांधी नाराज थे। और राजीव गांधी को लग रहा था हमारे खिलाफ साजिश कर रहे हैं। और अरुण नेहरू को विश्वास था अगर परिवार की किसी सदस्य को राज करना है तो वो शख़्स खुद अरुण नेहरु क्यों नहीं वो सकते हैं?
ये तो छोटी-मोटी दिक्कतें थी, लेकिन राजीव गांधी की असली मुश्किल तो आने वाली थी। और उसके पीछे थे उनके अपने ही वित्तमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह।
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🌶 बोफोर्स घोटाले की पूरी कहानी! भाग-02
साभार: ABP NEWS के कार्यक्रम “प्रधानमन्त्री”
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