विश्लेषण: विश्व की दो प्रचीनतम धर्म- “हिन्दू और यहूदी” में समानता और असमानता



कई समानताएं व कई भिन्नताएं

समानताएं तो यह कि दोनों केवल धर्म नहीं अपितु संस्कॄति भी है और जीवन पद्यति भी है। दोनों का उदय एशिया महाद्वीप में हुआ, एक इस छोर में दूसरा उस छोर में। दोनों को इसाई व मुस्लिम आक्रान्ताओं से अपने अस्तित्व को बचाने के लिए सदियों तक संघर्ष करना पडा जो अब भी जारी है।

अब जरा इनकी असमानताओं का भी जिक्र कर लें!

जहां प्राचीन हिन्दू समाज आर्यवर्त से बाहर जाकर बसने या अपने साम्राज्य का विस्तार देने में कोईरुचि नहीं रखता था; जहां तक कि उसके शास्त्रों ने भी समुद्र पार जाने को निषेध करार दे दिया। परिणाम यह हुआ कि हिन्दू समाज आक्रामक न होकर आत्मरक्षात्मक बन गया। इस आत्मरक्षात्मक नीति को हिन्दू समाज ने इतना आत्मसात कर लिया कि अनेक बार यही नीति आत्मघाती साबित हुई ! न केवल हिन्दू समाज के लिए, अपितु देश के लिए भी।
राड से बाड अच्छी” आज भी यह कहावत जन-जन के मुख से सुनी जा सकती है। इस आत्मघाती पलायन व सहनशीलता की परिणति आर्यवर्त के विभाजन के रुप में हो चुकी है और आगे कितने खण्ड होंगे यह इस बात पर निर्भर करेगा कि इस आत्मघाती नीति को कब तक व किस सीमा तक जारी रखा जाता है ।

यहां तक प्राचीन यहुदी समाज का संबंध है इसने भारतीय हिन्दू समाज के विपरीत घर-बार छोडकर सदूर व्यापार करने की नीति को अपनाया। इससे देश के रक्षार्थ जनसंख्या में कमी होती गई; परिणामस्वरूप एक दिन ऐसा भी आया कि प्राचीनतम धर्म व संस्कॄति युक्त यहुदी देश विश्व के मानचित्र से विलुप्त हो गया। हिन्दू व यहुदी, दोनों समाजो ने समान गलतियां की कि दोनों ने देश की रक्षा की ओर ध्यान नहीं दिया! परिंणाम भी समान ही रहे, दोनों देश विदेशी आक्रान्ताओं द्वारा अधिगॄहीत कर लिए गए।

समय ने दुबारा करवट बदली, द्वितीय विश्व युद्ध हुआ और दोनों देश व समाज को पुनः मुक्ति का अवसर मिला। यद्यपि दोनों देश अपने मूल स्वरूप व आकार में नहीं थे। जहां इजराइल को अपने मूल के छोटे से टुकडे से संतोष करना पडा वहीं आर्यवर्त से ब्रह्मा, पुर्वी व पश्चिमी पाकिस्तान, जो संसाधनो व सामरिक दृष्ति से अत्यंत मह्त्वपूर्ण र्हे, गवाने पडे। यह वो कीमत थी जो दोनों प्राचीनतम व महानतम सभ्यताओं को केवल और केवल इसलिए चुकानी पडी कि उन्होंने सामर्थ्य होते हुए भी अपने देश की सुरक्षा का ध्यान नहीं दिया।

भारत और इजराइल की इतनी समानता होने के बावजूद वर्तमान में दोनों में एक प्रमुख भिन्नता उभर कर सामने आई है और वो यह कि जहां इजराइल ने इतिहास से सबक सीखा है वहीं भारत ने इतिहास से जरा भी सबक नहीं लिया !

इजराइल ने अपना मातृ भाषा अपनाया

पुनः स्वतंत्रता के बाद इजराइल ने “यदि जिन्दा रहोगे, तो ही लड पाएंगे” नीति को आत्मसात करते हुए इसका अक्षरतः पालन किया है। इसके साथ ही उसने अपनी प्राचीन संस्कृतिहिब्रु भाषा के पुनरुथान के लिए भी कडे निर्णय लिए है। स्वतंत्रता के बाद इजराइल के प्रथम प्रधानमन्त्री ने शिक्षाविदों की बैठक में पूछा कि हिब्रु भाषा को स्थापित करने मे कितना समय लगेगा। कम से कम पांच साल तो लग ही जाएंगे, शिक्षाविदों ने जवाब दिया। यह समझ लो कि आज पांच वर्ष पूरे हो गए है, इसलिए आज से ही हिब्रु का अमल में लाया जाए- प्रधानमन्त्री ने कहा। और उसी दिन से इजराइल में हिब्रु लागू हो गई। सस्कॄति व भाषा का संरक्षण सुनिश्चित करने के साथ-साथ इजराइली राज्य व इजराइली राष्ट्र दोनों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का पूरा-पूरा प्रयास किया।

इजराइल ने सुरक्षा सर्वोपरि रखा

जहां इजरायली राज्य की सुरक्षा का प्रश्न था वहां इजराइल ने जीरो-टोलरेन्स की नीति का अनुसरण किया जिसमें इजराइल ने विश्व में जहां भी आत्म अस्तित्व का खतरा महसूस हुआ, आक्रमण की पहल करने में जरा भी देरी नहीं की। दूसरी तरफ इजराइली राष्ट्र की रक्षा हेतु इजराइल ने न केवल अपने गौरवमयी इतिहास व धरोहर को पुनः संजोया, हिब्रु भाषा का पुनरुथान किया अपितु जो सबसे महत्वपूर्ण कदम उठाया वह यह था- “विश्व के सभी यहुदियों को इजराइल की नागरिकता देना”।

इजराइल के इस महत्वपूर्ण कदम ने विश्व के सभी यहुदियों को एक राष्ट्र के रुप में एकत्व की भावना से भर दिया। इस समय स्थिति यह है कि यहुदी चाहे किसी देश में निवास करता हो, इजराइल के हित में काम करता है।

इजराइल के विपरीत भारत ने इतिहास से कोई सबक नहीं लिया। यह सर्वविदित और अकाल सत्य है कि जो स्वभाविक लगाव बहुसंख्यक को “अपने राष्ट्र” से होता है वह स्वभाविक लगाव किसी अल्पसंख्यक को “अपने देश” से नहीं हो सकता। इस आधर पर एक हिन्दू, चाहे वह विश्व में कहीं भी रहता है, जिस लगाव एक अनुभव अपने भारत राष्ट्र के साथ करता है, वैसा अनुभव कोई गैर-हिन्दू अपने देश से नहीं कर सकता।

(अपना देश वो है जिसमें व्यक्ति निवास करता है, अपना राष्ट्र वो है जिससे व्यक्ति एकत्व व लगाव अनुभव करता है बेशक वो उस देश का निवासी न हो )

कुछ दिन पूर्व ही स्वतंत्रता दिवस पर सारे राष्ट्र ने देखा कि सुनिता विलियम, जो भारत देश की नागरिक नहीं है, ने अंतरिक्ष में तिरंगा फहराया। ऐसा इसलिए हुआ कि सुनिता विलियम भले ही भारत देश की नागरिक नहीं है न ही उसका जन्म भारत में हुआ है, लेकिन फिर भी वह भारत राष्ट्र की आज भी नागरिक है। विश्व में जो-जो भी भारत राष्ट्र के नागरिक है वे भारत के हित में ही सोचेगा, चाहे वो नागरिक किसी भी देश का हो किन्तु सत्य यह भी है कि इस भारतीय राष्ट्र की भावना केवल हिन्दू में ही हो सकती है, क्योंकि एक तो वह बहुसंख्यक है दूसरा उसका मूल उद्भव भारत है।

इसलिए यह राष्ट्रहित में होगा कि भारत ठीक उसी प्रकार से विश्व के सभी हिन्दूओं को अपने देश की नागरिकता दे जैसे इजराइल ने विश्व के सभी यहुदियों को इजराइल की नागरिकता प्रदान की है !
विश्व के तमाम हिन्दू अपने को अनाथ और असुरक्षित अनुभव न करे व भारत से एकत्व अनुभव कर भारत के हित में कार्य करने को प्रेरित हो।

हमने आजादी के बाद भारत देश की अवधारणा को अपनाया न कि भारत राष्ट्र की अवधारणा!

परिणाम यह हुआ कि हम आज भी देश की सुरक्षा को लेकर उतने चिंतित नहीं हुए है जितना इतिहास व वर्तमान परिस्थिति को देखकर होना चाहिए। यद्यपि भारत ने अप्रवासी भारतीयों को दोहरी नागरिकता की पेशकश की है और इस दिशा में कुछ कदम भी उठाए है किन्तु ये अपर्याप्त व सापेक्ष है।  तत्काल घोषणा करनी चाहिए की विश्व के सभी हिन्दू उस देश के साथ-साथ अपने मूल देश भारत के भी नागरिक है और वे जब चाहे भारत आ सकते है और जब तक चाहे, स्थाइ या अस्थाई रूप से रह सकते है। इससे न केवल भारत का पर्यटन एवं व्यापार बढेगा अपितु विदेशों में भारत के हितों की रक्षा भी सुनिश्चित हो सकेगी। इससे भरत के धर्मनिर्पेक्ष ढांचे पर भी असर नही पडने वाला क्योंकि इजराइल भी धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, उसने भी सभी यहुदियों को नागरिकता दी है।

दोहरी नागरिकता वाला इसराइल अकेले नही है

दूसरी बात यह कि अपने धर्म या नस्ल या विचारधारा वालों को केवल इजराइल ही दोहरी नागरिकता नहीं देता अपितु अन्य राष्ट्र भी अपने हित साधने के लिए ऐसा ही करते है।

चीन को ही देख लो, वह ताइवान ही नहीं भारत के अरुणाचल के नागरिकों को भी अपना नागरिक मानता है और इनको वीजा जारी नहीं करता, क्यूंकि उसका कहना है कि यह चीन का ही अंग है और इनको वीजा देने की जरुरत नहीं है। इसी प्रकार फाकलेन्ड द्वीप के निवासियों को इंग्लैंडअर्जेन्टाइना दोनों अपना नागरिक मानते है। यह सब राष्ट्रवाद के जज़्बे व राष्ट्रहित के कारण ही है !

इसी प्रकार भारत को भी अपने हितों की रक्षार्थ विश्व के तमाम हिन्दुओं को अविलंब दोहरी नागरिकता (जो हिन्दूओं का अपने मूल देश होने के नाते अधिकार भी है) घोषणा कर देनी चाहिए।

विश्व भर के यहुदियों के लिए जो महत्व इजराइल का है, वही महत्व विश्व भर के हिन्दुओ के लिए भारत का होना चाहिए ।"

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