बौखलाई कांग्रेसी मीडिया का बौखलाहट



"मुझे लिखना चाहिए या नहीं, मुझे नहीं पता! पर खुद को रोक नहीं पाया,  वजह ये कि विनोद वर्मा जैसे भी हैं! मुझसे सीनियर हैं, लेकिन वर्मा टेस्ट केस हैं, टेस्ट केस कैसे? जरा गौर कीजिए!

ये कांग्रेस की मीडिया में गहरी जड़ों का उदाहरण है! कैसे ये कांग्रेसी वरिष्ठ पत्रकार का चोला ओढ़कर अखबारों के संपादक बन जाते हैं, बीबीसी को तो खैर जंचते ही ये लोग हैं। अब समझ आता है कि राहुल गांधी के चुनाव प्रचार पर निकलते ही उत्सवी और विजयी माहौल बन जाता है। कैसे प्रियंका की फोटो ऐसे छपती है, मानो किसी आराध्य की फोटो छापी गई हो। फिर ये एक मुकाम पर आकर अपने असली रंग में आते हैं। पत्रकार का चोला उतार फेंकते हैं, मूल कांग्रेसी स्वभाव, ब्लैकमेलिंग पर उतर आते हैं।

मुझे किसी राजनीतिक विचारधारा से परहेज नहीं। लेकिन प्लान्ड ब्रीडिंग से डर लगता है। ये पौध जो पिछले 25 साल में कांग्रेसी खाद-पानी पाकर बड़ी हुई है, अब बौखलाहट में है। बौखलाहट स्वाभाविक है। इन परजीवियों को जहां से प्राणऊर्जा मिलती थी, उस मूल स्रोत की ही जड़े सूख रही हैं। इसलिए ये आर्टिफिशियल आक्सीजन देने के लिए मैदान में उतर आए हैं। सफेद बाल, मोटा सा चश्मा, बाहर निकली शर्ट और बात-बात पर संघ की साजिश जुमला बोलते ये लोग अब बेरोजगार होते जा रहे हैं। मोदी सरकार के बनने पर बहुत से कांग्रेसी संपादक खौफ में थे। फिलहाल इन में से कई ने दिखावे के लिए कांग्रेस से दूरी बनाई है। लेकिन ये मौके की फिराक में हैं।

विनोद वर्मा कितने बड़े पत्रकार रहे होंगे, इस बात का अंदाजा लगाइये कि उनके पास से पांच सौ सेक्स सीडी बरामद हुई है। हो सकता है ये किसी के जुर्म, रंगरलियों का सुबूत हो। सुबूत है, तो पेश कीजिए, सजा दिलाइये। लेकिन विनोद वर्मा जैसे कांग्रेसी सिर्फ पेटी के नीचे वार करना जानते हैं। इनसे सावधान रहिए, ये अब बिलों से बाहर निकलने के लिए कुलबुला रहे हैं..."  

(मृदुल त्यागी द्वारा लिखी गई यह पोस्ट, आशीष कुमार अंशु के फेसबुक दीवार से साभार)

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