वैज्ञानिक प्रयोग: एक घंटे में 94 प्रतिशत विषाणु नष्ट हो गए हवन के धुएं से




इस रिसर्च के बाद ही वैज्ञानिकों को इस गैस और इसे बनाने का तरीका पता चला।  गुड़ को जलाने पर भी ये गैस उत्पन्न होती है। एनबीआरआई के वैज्ञानिकों ने रिसर्च में पाया टाइफाइड के जीवाणु भी खत्म हो गए!
पूजापाठ में होने वाले हवन का महत्व बेहद वैज्ञानिक है, यह शोध में सिद्ध हो चुका है। फ़्रांस के ट्रेले नामक वैज्ञानिक ने हवन पर रिसर्च की, जिसमे उन्हें पता चला कि हवन मुख्यतः आम की लकड़ी पर किया जाता है। जब आम की लकड़ी जलती है तो फ़ॉर्मिक एल्डिहाइड नामक गैस उत्पन्न होती है जो की खतरनाक बैक्टीरिया और जीवाणुओं को मारती है  तथा वातावरण को शुद्द करती है। इस रिसर्च के बाद ही वैज्ञानिकों को इस गैस और इसे बनाने का तरीका पता चला।  गुड़ को जलाने पर भी ये गैस उत्पन्न होती है।

टौटीक नामक वैज्ञानिक ने हवन पर की गयी अपनी रिसर्च में यह पाया कि  यदि आधे घंटे हवन में बैठा जाये अथवा हवन के धुएं से शरीर का सम्पर्क हो तो टाइफाइड जैसे खतरनाक रोग फ़ैलाने वाले जीवाणु भी मर जाते हैं और शरीर शुद्ध हो जाता है।

लखनऊ में भी परीक्षण हुआ

हवन की महत्ता देखते हुए राष्ट्रीय वनस्पति अनुसन्धान संस्थान लखनऊ के वैज्ञानिकों ने भी इस पर एक रिसर्च की क्या वाकई हवन से वातावरण शुद्द होता है और जीवाणु नाश होते  हैं अथवा नही। उन्होंने ग्रंथों में वर्णित हवन सामग्री जुटाई और जलाने पर पाया कि ये विषाणु नाश करती है। फिर उन्होंने विभिन्न प्रकार के धुएं पर भी काम किया और देखा कि सिर्फ आम की लकड़ी 1 किलो जलाने से हवा में मौजूद विषाणु बहुत कम नहीं हुए पर जैसे ही उसके ऊपर आधा किलो हवन सामग्री डाल कर जलायी गयी एक घंटे के भीतर ही कक्ष में मौजूद बॅक्टीरिया का स्तर 94% कम हो गया।

यही नही! उन्होंने आगे भी कक्ष की हवा में मौजुद जीवाणुओं का परीक्षण किया और पाया कि  कक्ष के दरवाज़े खोले जाने और सारा धुआं निकल जाने के २४ घंटे बाद भी जीवाणुओ का स्तर सामान्य से 96 प्रतिशत कम था। बार बार परीक्षण करने पर ज्ञात हुआ की इस एक बार के धुएं का असर एक माह तक रहा और उस कक्ष की वायु में विषाणु स्तर 30 दिन बाद भी सामान्य से बहुत कम था।

यह रिपोर्ट एथ्नोफार्माकोलोजी के शोध पत्र (resarch journal of Ethnopharmacology 2007) में भी दिसंबर 2007 में छप चुकी है। रिपोर्ट में लिखा गया की "हवन के द्वारा न सिर्फ मनुष्य बल्कि वनस्पतियों फसलों को नुकसान पहुचाने वाले बैक्टीरिया का नाश होता है जिससे फसलों में रासायनिक खाद का प्रयोग कम हो सकता है।"


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