राहत और बचाव का काम चल रहा है और जो लोग बचाकर लाए जा रहे हैं वे सुना रहे हैं रोंगटे खड़े करने वाली आपबीती. ख़ौफ़ की ऐसी ही छह कहानियाँ-
लक्ष्मीः 23 घंटे तक लगातार बस में
जबलपुर से आई लक्ष्मी कहती हैं, "हमने छह जून को तीर्थयात्रा शुरू की थी. गंगोत्री और यमुनोत्री के दर्शन के बाद हम केदारनाथ पहुंचे ही थे कि आफत आ गई. जैसे ही हमने नीचे उतरना शुरू किया बारिश बहुत तेज होने लगी."
उन्होंने कहा, "हम 23 घंटे तक लगातार बस में बैठे रहे. मौसम इतना ख़राब था कि शौच जाने के लिए भी बस से उतरना मुश्किल था. बस में लोग लगातार उल्टियां कर रहे थे. बच्चे बस में ही पेशाब कर रहे थे. बस में ठंड इतनी बढ़ गई थी कि बच्चों को बचाने के लिए उन्हें सीट के नीचे सुलाया गया. हमारी आंखों के सामने ही भूस्खलन हो रहा था."
लक्ष्मी ने कहा, "बस से बाहर निकलने की हिम्मत कोई नहीं जुटा सका. हमारे पास खाने के लिए कुछ भी नहीं था, जो कुछ था वह भी खत्म हो चुका था. बाहरी दुनिया से हमारा संपर्क कट गया था. मेरा परिवार और पति समझ रहे थे कि मैं मर गई हूं, भगवान का शुक्र है कि मैं जिंदा हूं."
आर एस सोनीः दोस्त ने तोड़ा दम
मध्य प्रदेश के कटनी से आए आर एस सोनी ने कहा, "मैं तो बच गया हूं लेकिन अपने एक साथी की मौत का दर्द मुझे जीवन भर परेशान करता रहेगा. मैं केदारनाथ से इस बस में चढ़ा था. नीचे उतरते वक्त हमारे सामने तीन बार बादल फटा. मेरे एक साथी को तेज बुखार हो गया.
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रुद्रप्रयाग से पहले ही हम फंस गए थे.
उन्होंने कहा, "हम 36 घंटे तक रास्ते में फंसे रहे. दो दिन बाद जब हम अस्पताल पहुंचे तब तक वह दम तोड़ चुका था. रुद्रप्रयाग में ही हमने उसका अंतिम संस्कार किया. वहां प्राधिकरण के लोगों के पास मेरे मित्र का मृत्यु प्रमाण पत्र तक जारी करने का वक्त नहीं था. उसकी पत्नी हमारे साथ ही है और उसके जाने के बाद से उसने खाना पीना छोड़ दिया है. मुझे डर है कि कहीं उसे भी कुछ हो न जाए."
गीता देवीः एक गिलास पानी लिए 180 रुपये
राजस्थान के भीलवाड़ा से आई गीता देवी ने कहा, "यह मेरे जीवन के सबसे खराब पांच दिन हैं. मैंने अपने जीवन में पानी की इतनी कीमत कभी नहीं चुकाई है. एक गिलास पानी पीने के लिए 180 रुपए चुकाने पड़े. अब मेरे पास कोई पैसा नहीं है. खाने-पीने का सामान खरीदने के लिए मुझे सहयात्रियों से उधार लेना पड़ रहा है. बद्रीनाथ यात्रा हमने अधूरी छोड़ दी है. मेरा ट्रेन टिकट कंफर्म नहीं है. अंतिम उम्मीद अब हरिद्वार रेलवे स्टेशन का रेस्ट रूम ही है."
उन्होंने कहा, "मैंने अपने जीवन में कभी किसी को मरते हुए नहीं देखा था लेकिन इस यात्रा के दौरान चिकित्सकीय सेवाओं की कमी के कारण एक व्यक्ति ने मेरे सामने ही दम तोड़ दिया. सरकार कहां है और यहां आए हजारों यात्रियों को सुविधाएं देने के लिए क्या इंतजाम किए गए हैं. मुझे नहीं लगता कि किसी को भी सरकार से किसी भी प्रकार की मदद अभी तक मिल पाई है. मैं आप सबसे अनरोध करती हूं कि हमारी मदद करें ताकि हम सुरक्षित घर पहुंच सकें."
प्रकाश कुमारः बस पत्थर ही नजर आते हैं
इंदौर से आए प्रकाश कुमार ने कहा, "सरकार की लापरवाही के कारण मेरे एक सहयात्री की रास्ते में ही मौत हो गई. हम घंटों तक रास्ते में अटके रहे. बस के चलने के बाद भी हमारी जान जाने का डर बना रहा. सड़कें आधी से ज्यादा गायब हो गई हैं. बस पत्थर ही नज़र आते हैं. पानी के जाने के बाद अब सड़कों पर कीचड़ ही बची है."
उन्होंने कहा, "हम अपने बीमार साथी को रुद्रप्रयाग स्थित पुलिस पोस्ट में लेकर गए थे लेकिन मदद करने के लिए वहां कोई था ही नहीं. कुछ गांव वालों ने बताया कि पोस्ट पर तैनात चार पुलिस वालों का भी दो दिनों से कुछ पता नहीं है."
हर्षित काशिवः पैरों पर चिपक गए थे जोंक
बैंगलोर से अपने पांच दोस्तों के साथ ट्रैकिंग करने उत्तराखंड आए हर्षित काशिव ने भारी बारिश से हुई तबाही का मंजर देखा. उन्होंने कहा “हम रूपकुंड ट्रैक पर ट्रेकिंग कर रहे थे. यह उत्तराखंड के चमोली जिले में आता है. हमने लोहाजंग से ट्रैकिंग शुरू की थी. पांच दिन की ट्रैकिंग के बाद हम शुक्रवार को वाण गांव पहुंचे थे. वाण गांव से ग्वालदम तक पहुंचने में हमे तीन दिन लगे. हम 35 किलोमीटर तक पैदल चले और मुख्य मार्ग तक पहुंचे.”
उन्होंने कहा, “हमारे पैरों में जोंक चिपक गए थे और खून बह रहा था. लेकिन चलते रहने के सिवा हमारे पास कोई विकल्प नहीं था. हमारे एक साथी को चिकित्सीय मदद की जरूरत थी लेकिन रास्ते में हमें कोई मदद उपलब्ध नहीं थी. हल्द्वानी पहुंचने के बाद ही हमारा इलाज हो सका.”
दिनेश बगवाड़ीः 15 मिनट में तबाह हो गया केदारनाथ
केदारनाथ मंदिर के पुरोहित दिनेश बगवाड़ी ने कहा, “रविवार की रात भारी बारिश हुई थी जिससे केदारनाथ में इमारतों को काफ़ी नुकसान हुआ था, हालांकि लोग सलामत थे. लेकिन सोमवार की सुबह केदारनाथ में प्रलय बनकर आई.”
उन्होंने कहा, “सुबह सवा आठ बजे प्रलय आया. मलबे और पानी का प्रवाह इतना तेज था कि 15 मिनट में केदारनाथ तबाह हो गया. बड़े-बड़े पत्थर, रेत, कंक्रीट और पानी के प्रवाह ने केदारनाथ को बर्बाद कर दिया. चारों ओर हाहाकार मच गया. दो घंटे बाद तबाही का मंजर नजर आने लगा.”
Source: bbc