गुजरात में जीत की हैट्रिक बनाकर मोदी नरेंद्र [नमो] ने प्रधानमंत्री पद की दावेदारी को मजबूत कर लिया है. मोदी की चुंधिया देने वाली जीत के आगे हिमाचल प्रदेश में धूमल की हार या कांग्रेस की जीत भी धूमिल हो गई. लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माना जा रहा यह मुकाबला आंकड़ों के लिहाज से एक - एक की बराबरी पर छूटा. लेकिन मोदी की बड़ी जीत के आगे कांग्रेस हिमाचल में अपनी जीत का कायदे से जश्न भी नहीं मना पा रही है.
सांत्वना की खोज में सभी मोदी विरोधी या कांग्रेस के नेता अब दिल्ली में उन्हें आटे - दाल का भाव पता चलने की चुनौती जरूर दे रहे हैं, मगर सभी मान रहे हैं कि गुजरात में नमो नमो नमो यानी तीसरी बार मोदी नरेंद्र की जीत के बाद उनका अश्वमेघ का घोड़ा गांधीनगर से दिल्ली की ओर बढ़ चुका है | गुजरात में कांग्रेस व मोदी विरोधियों के पूरी ताकत लगाने के बाद भी भाजपा की पिछली बार के मुकाबले सिर्फ दो ही सीटें घटीं | पिछले विधानसभा चुनाव 182 में में भाजपा के खाते 117 में सीटें थीं तो इस दफा यह 115 आंकड़ा रहा.
ताजा चुनावी नतीजों ने गुजरात में मोदी की लगातार चौथी पारी तय कर दी है. वहीं, सिंह वीरभद्र चौथी बार हिमाचल के मुख्यमंत्री बनने की ओर हैं, हालांकि, इसकी अभी औपचारिक घोषणा नहीं हुई है, लेकिन जिस तरह से चुनावों के दौरान ने वीरभद्र दबदबा दिखाया, उसके बाद उनकी ताजपोशी तय है. हिमाचल 68 की सीटों में कांग्रेस के खाते 36 में तो भाजपा 26 को सीटें मिली हैं. इस तरह उत्तराखंड के बाद कांग्रेस को एक और पहाड़ी राज्य ने ही चेहरा बचाने का मौका दिया है. कांग्रेस नेता भी गुजरात की करारी शिकस्त के मुकाबले इस जीत को ही उपलब्धि गिना रहे हैं | उनका कहना है कि दोनों राज्य भाजपा के पास थे, उनमें एक राज्य कांग्रेस ने स्पष्ट बहुमत से छीन लिया |
इसके बावजूद गुजरात ही दिल्ली तक सबके सिर चढ़कर बोल रहा है. भाजपा को दो तिहाई सीटें दिलाकर मोदी ने गुजरात में तो सबसे ज्यादा बार और सबसे अधिक समय तक मुख्यमंत्री बनने का रिकार्ड अपने नाम कर ही लिया. इसके साथ ही वह ज्योति बसु, पवन चामलिंग, शीला दीक्षित और तरुण गोगोई जैसे मुख्यमंत्रियों की जमात में शामिल हो गए, जिन्होंने तीन या उससे ज्यादा बार लगातार विजय हासिल की. मोदी ने खुद अपनी मणिनगर सीट से भी 86 रिकार्ड हजार से ज्यादा मतों से जीतकर कांग्रेस के भावनात्मक दांव को ध्वस्त कर दिया. इस दफा कांग्रेस ने उनके खिलाफ चर्चित आइपीएस अधिकारी संजीव भंट्ट की पत्नी श्वेता भंट्ट को उतारा था. पिछली दफा मोदी ने केंद्रीय मंत्री दिनशा पटेल को भी लगभग इतने ही अंतराल से हराया था |
कांग्रेस को जीत की उम्मीद तो यहां थी नहीं, लेकिन केशूभाई पटेल फैक्टर की वजह और अपनी रणनीति की वजह से उसे भरोसा था कि मोदी को वह सौ सीटों पर रोक अपना 75 आंकड़ा तक ले जाएगी. मगर केशूभाई की तरफ से भाजपा का वोट काटने के बावजूद गुजरात में कांग्रेस के ज्यादातर दिग्गज ढेर हो गए. सिर्फ शंकर सिंह वाघेला अपनी सीट बचा सके और राज्य में कांग्रेस के अन्य प्रमुख चेहरे अर्जुन मोढवाडिया और शक्ति सिंह गोहिल खुद अपनी सीटें तक नहीं बचा सके. यही नहीं, कांग्रेस पिछली बार की तुलना में दो सीटें 61 ज्यादा सीट तक ही पहुंच सकी. कांग्रेस लगातार छठी बार गुजरात में हारी है और पांच बार से तो यहां भाजपा की सरकारें ही रही हैं.
आखिरकार तीसरी बार गुजरात मोदी का हुआ. इससे पहले तमाम सर्वे में भी मोदी की जीत पक्की बताई गई थी. आइए मोदी के बारे में कुछ रोचक बातें आपको बताते हैं ..
- मोदी नरेंद्र का जन्म दामोदारदास मूलचंद मोदी व उनकी पत्नी हीराबेन मोदी के घर मेहसाणा जिले में हुआ - बेहद साधारण परिवार 17 में सितंबर, 1950 को जन्मे मोदी अपने विद्यार्थी जीवन से ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ गए थे
- 14 महज वर्ष की में उम्र ही रेलवे स्टेशन पर पिता की चाय की दुकान में हाथ बंटाना शुरू किया
- जब पियासी रेलवे स्टेशन पर कोई ट्रेन आती तो हाफ पैंट में मोदी चाय की केतली लेकर दौड़ पड़ते थे. चाय के अलावा वे पांच - पांच पैसे में पानी के ग्लास पियासी बेचा करते थे
- छोटी सी में उम्र ही वे वडनगर में एक ऑयल कंपनी में तेल के पीपे उठाया करते थे, हर पीपे पर उन्हें पांच पैसे की मजदूरी मिलती थी
- संघ प्रचारकों की चाय के लिए मोदी सुबह पांच बजे उठकर दूध लेने जाया करते थे
- वह पढ़ने में काफी होशियार थे. उनकी विशेष रुचि और समाजशास्त्र इतिहास में थी
- उनकी याददाश्त हमेशा से ही बहुत तेज रही. एक बार वे किसी से मुलाकात कर लें तो फिर उसका नाम कभी नहीं भूलते
अगली चुनौती गठबंधन का गणित
नई दिल्ली [प्रणय उपाध्याय]. गुजरात की जीत ने मोदी नरेंद्र के लिए दिल्ली का रास्ता तो साफ कर दिया. लेकिन 2014 की परीक्षा पास करने के लिए उन्हें गठबंधन का गणित सही करना होगा. अगले आम चुनावों में मोदी के नेतृत्व परजदयू के मुखर विरोध के बीच राजग एकता को बनाए रखने के साथ - साथ नए दोस्त जुटाने की चुनौती उनके आगे है. गुजरात की तर्ज पर 'एकला चलो' का राग दिल्ली के राजपथ पर उनके लिए कारगर साबित नहीं होगा.
मोदी के बढ़ते कद को लेकर राजग के भीतर गठबंधन के सबसे बड़े साथी जदयू की असहजता जगजाहिर है. प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी की दावेदारी पर जदयू राजी नहीं है. चुनावी नतीजों पर मोदी को बधाई के बारे में वरिष्ठ जदयू नेता शिवानंद तिवारी का कहना था कि परिणाम अपेक्षित तर्ज पर आए हैं. बधाई न देने का कोई सवाल ही नहीं है. वहीं राजग की ओर से प्रधानमंत्री पद के लिए मोदी की दावेदारी के बारे में उन्होंने कहा कि यह किसी एक दल का नहीं, गठबंधन का मामला है, लिहाजा मिल बैठकर फैसला होगा. जदयू तो पहले से मांग कर रहा है कि गठबंधन की ओर से प्रधानमंत्री के उम्मीदवार का नाम घोषित किया जाए. हालांकि यह ध्यान रखा जाना चाहिए कि विरोधाभासों से भरे इस मुल्क में सत्ता की कमान ऐसे नेता को हाथ हो जो सबको साथ लेकर चल सके.
हालांकि मोदी को लेकर जदयू का मुखर एतराज है तो कुछ नई साथियों के जुड़ने के संकेत भी मिलने लगे हैं |अन्नाद्रमुक प्रमुख और तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता गुजरात के नतीजों पर मोदी नरेंद्र को बधाई देने वाली पहली गैर - भाजपा नेता थीं | इससे पहले राष्ट्रीय आतंकवाद निरोधक को केंद्र लेकर 2012 अप्रैल में केंद्र सरकार की बुलाई बैठक के हाशिये पर मोदी से जयललिता और उड़ीसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की मुलाकात ने नई राजनीतिक संभावनाओं की सुगबुगाहट बढ़ा दी थी | हालांकि पटनायक ने चुनाव नतीजों पर दी प्रतिक्रिया में किसी का नाम लिए बिना विजेताओं को बधाई दी |
महत्वपूर्ण है कि सितंबर, 2012 में सद्भावना उपवास के बहाने मोदी गठबंधन राजनीति में अपनी मान्यता का परीक्षण कर चुके हैं. इस कार्यक्रम में मोदी नरेंद्र के न्योते पर शिरोमणि अकाली दल प्रमुख और पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल अहमदाबाद पहुंचे थे, वहीं शिव सेना, अन्नाद्रमुक, तेलुगुदेशम, बीजू जनता दल जैसे क्षेत्रीय दलों के नेता पियासी मौजूद थे. हालांकि अटल बिहारी वाजपेयी की तर्ज पर राजग को सत्ता में लाने के लिए कई चुनौतियां पार करनी होंगी क्योंकि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस और जम्मू कश्मीर में नेशनल कांफ्रेंस जैसे पुराने सहयोगी मोदी की अगुवाई से दूर ही रहना चाहेंगे |